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राजस्थान के भौतिक प्रदेश एव सबसे बड़ा बेसिन कोनसा है।

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  शिक्षा डेस्क : - राजस्थान का भौतिक  वेगनर सिद्धांत के अनुसार प्रागैतिहासिक काल इयोसीन व प्लास्टोसीन काल में विश्व दो भूखंडों 1 अंगारा लैंड और 2 गोंडवाना लैंड में विभक्त था जिस के मध्य टेथिस सागर विस्तृत था राजस्थान विश्व के प्राचीनतम भूखंडों का अवशेष है राजस्थान के उत्तर पश्चिम मरुस्थलीय प्रदेश व पूर्वी मैदान टेथिस सागर के अवशेष माने जाते हैं जो कालांतर में नदियों द्वारा लाई गई तलछट के द्वारा पाठ दिए गए थे राज्य के अरावली पर्वतीय एवं दक्षिणी पूर्वी पठारी भाग गोंडवाना लैंड के अवशेष माने जाते हैं धरातलीय स्वरूप के आधार पर थार का मरुस्थल अरावली पर्वत माला पूर्वी मैदान दक्षिणी पूर्वी पठार उत्तरी पश्चिमी मरुस्थल प्रदेश भारत में थार मरुस्थल भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित एक बड़ा और शुष्क क्षेत्र है। थार नाम ‘थुल’ से लिया गया है जो कि इस क्षेत्र में रेत की लकीरों के लिये प्रयुक्त होने वाला एक सामान्य शब्द है। मरुस्थल को लोकप्रिय रूप से ग्रेट इंडियन डेजर्ट के रूप में भी जाना जाता है। थार रेगिस्तान एक शुष्क क्षेत्र है जो 2,00,000 वर्ग किमी से अधिक के विशाल क्षेत्र म...

राजस्थान की प्रमुख झील ऐतिहासिक महत्व

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शिक्षा डेस्क : - राजस्थान का एक शाही इतिहास है जिसने इस राज्य के हर नुक्कड और कोने को प्रतिबिंबित किया गया है। राजस्थान की संस्कृति बहुत जीवंत और रंगीन है। शहर में कई झीलें उदयपुर शहर के मौसम को पूरे वर्ष सुखद बनाए रखता है। राजस्थान में कई झीलें हैं जो राज्य के समृद्ध संस्कृति को भी दर्शाता हैं। झीलों में राजसमंद झील, उदय सागर झील, नक्की झील, कल्याना झील, राज बाग तलाब, मल्लिक तलाब, फतेह सागर झील, गद्दीसर झील, पिगोला झील, स्वरूप सागर झील, उदय सागर झील, राज बाग तलाब, और कई अन्य शामिल हैं। राजस्थान की खारे पानी की झीले सांभर झील:- प्रशासनिक दृष्टि से सांभर झील जयपुर जिले के फुलेरा गांव में स्थित है तथा इसका कुछ भाग नागौर जिले के अंतर्गत आता है। इस झील में प्रशासनिक कार्य जयपुर से किया जाता है। सांभर झील राजस्थान की सबसे बड़ी प्राकृतिक एवं खारे पानी की झील है। सांभर झील भारत की दूसरी सबसे बड़ी खारे पानी की झील ( चिल्का झील, उड़ीसा के बाद ) है। बिजोलिया शिलालेख के अनुसार सांभर झील का निर्माण वासुदेव चौहान द्वारा करवाया गया था। सांभर झील का तल समुद्र तल से भी नीचा है। सांभर झील में मेंथा, ...

राजस्थान की अंतर्राज्यीय व अंतरराष्ट्रीय सीमा का विस्तार।

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शिक्षा डेस्क : -  राजस्थान की अंतर्राजीय व अन्तराष्ट्रीय सीमा राजस्थान की कुल सीमा 5920 कि.मी. है।  जिसमे से 4850 कि.मी. अंतर्राजीय व 1070  कि.मी. अन्तराष्ट्रीय सीमा है। राजस्थान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा  राजस्थान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा = 1070 km. राजस्थान के कितने जिलों की सीमा पाकिस्तान के साथ लगाती है = (चार ) गंगानगर, 210  KM   बीकानेर,  168 KM   जैसलमेर, 464 KM बाड़मेर, 228 KM पाकिस्तान के कितने जिलों की सीमा राजस्थान के साथ लगाती है = ( तीन ) बहावलपुर, खैरपुर, मीरपुर खास पाकिस्तान की सीमा के सर्वाधिक निकट का नगर = गंगानगर पाकिस्तान की सीमा के सर्वाधिक दूर स्थित नगर = बीकानेर पाकिस्तान के साथ सर्वाधिक सीमा लगाती है = जैसलमेर 464 km पाकिस्तान के साथ न्यूनतम सीमा लगाती है = बीकानेर 168 km ➯राजस्थान व हरियाणा के मध्य कुल 1262 किलोमीटर लम्बी सीमा लगती है। ➯राजस्थान के साथ हरियाणा के कुल 7 जिलों की सीमा लगती है तथा हरियाणा के साथ भी राजस्थान के कुल 7 जिलों की सीमा लगती है।  ➯हरियाणा के साथ राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की सीमा सर्वाधिक व...

राजस्थान की सरकार ने वन नीति कब आरंभ की थी।

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 शिक्षा डेस्क : - राजस्थान में वन सम्पदाभू क्षेत्र जहाँ वृक्षों का घनत्व सामान्य से अधिक है उसे वन (जंगल) कहते हैं। अंग्रेजी शासन से पहले भारत में जनता द्वारा जंगलों का इस्तेमाल मुख्यतः स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुसार होता था। भारत में सबसे पहले लार्ड डलहौजी ने 1855 में एक वन नीति घोषित की, जिसके तहत राज्य के वन क्षेत्र में जो भी इमारती लकड़ी के पेड़ हैं वे सरकार के हैं और उन पर किसी व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं है। राजस्थान सरकार ने फरवरी 2010 में पहली राज्य वन नीति के साथ पशुधन विकास और जल पर नई नीतियों को मंजूरी दी। यह रेगिस्तान राज्य में वन क्षेत्र को 9.5% से 20% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखती है। राजस्थान के कुल भौगोलिक क्षेत्र का केवल 9.56% क्षेत्र पर वन है। 30-Nov-2022 भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति वर्ष 1894 में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रकाशित की गई थी।  स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार द्वारा पहली वन नीति 1952 में बनाई गई। इस वन नीति को 1988 में संशोधित किया गया। इस नीति के अनुसार राज्य के 33% भूभाग पर वन होना अनिवार्य है। संविधान के 42वें संशोधन 1976 के द्वारा वनों का विषय राज्...

राजस्थान के वन वन्यजीव आभरणय एवं राष्ट्रीय उद्यान महत्व।

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  शिक्षा डेस्क :- राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान में 3 राष्ट्रीय उद्यान स्थित है : – 1. रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान (सवाई माधोपुर) – 1980 में 2. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (भरतपुर) – 1981 में 3. मुकन्दरा हिल्स / दर्रा अभ्यारण्य (कोटा , झालावाड़) – 2012 में रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान, सवाईमाधोपुर - रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान देश का सबसे छोटा बाघ अभ्यारण्य है। इस अभ्यारण्य को 1955 में वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित किया गया। अप्रैल, 1974 में रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान को 'टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट' में शामिल किया गया।1 नवंबर, 1980 में रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान को राजस्थान का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान को 'भारतीय बाघों का घर' कहते है। राजस्थान में सर्वप्रथम बाघ परियोजना यहीं से शुरू की गयी।  इस अभ्यारण्य के प्रबंधन के लिए अलग से "रणथम्भौर बोर्ड" का गठन किया गया। यह अभ्यारण्य दुर्लभ काला गरुड़ एवं रेटेड तीतर के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर जोगी महल, त्रिनेत्र गणेश मंदिर दर्शनीय स्थल है। यहां पर तीन झील - मलिक तालाब, पदम तालाब एवं राजबाग झील स्थित है। इ...

राजस्थान के प्रमुख लोकगीत एवं लोक नृत्य महत्वपूर्ण विशेषताएं।

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  शिक्षा डेस्क :- भारत का राष्ट्रीय गीत “वंदेमातरम” है। यह गीत आनंदमठ उपन्यास से लिया गया है। जिसके रचयिता बकिमचंद्र  चटर्जी है, इस गीत को गाने में 1 मिनट 5 सेकण्ड (65 सेकण्ड ) का समय लगता है। रविंद्र नाथ टैगोर ने लोक गीतो को संस्कृति का सुखद संदेश ले जाने वाली कला कहा है।  भारत का राष्ट्रीयगान “जन-गन-मन” है, जिसके रचयिता रविंद्रनाथ टैगोर है । यह गीतांजलि उपन्यास से लिया गया है। इसे गाने में 52 सेकण्ड का समय लगता है। राजस्थान का राज्य गीत “केसरियाबालम पधारो नी म्हारो देश” है, यह एक विरह गीत है, जिसे उदयपुर की मांगी बाई ने सबसे पहले गाया था। इस गीत को सबसे ज्यादा अल्हा जिल्हा बाई ने गाया था।  भारत की कोकिला सरोजनी नायडू है (सरोजनी नायडू भारत की प्रथम महिला राज्यपाल (उतरप्रदेश ) है। राजस्थान की कोकिला गवरी देवी (पाली) है तथा मरुकोकिला अल्लाहाजिल्हा बाई है जिनके गुरु उस्ताद – हुसैन बक्स थे।  मूमल यह जैसलमेर में गाया जाने वाला श्रृंगारिक लोक गीत है जिसमें मूमल का नखशिख वर्णन किया गया है। यह गीत एक ऐतिहासिक प्रेमाख्यान है।   ढोलामारू यह सिरोही जिले का लोक गी...

राजस्थान में चौहान वंश उत्पति एव चौहान वंश के प्रमुख शासक महत्व।

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  शिक्षा डेस्क :- चौहान वंश की अनेक शाखाओं में 'शाकंभरी चौहान' (सांभर-अजमेर के आस-पास का क्षेत्र) की स्थापना लगभग 7वीं शताब्दी में वासुदेव ने की। वासुदेव के बाद पूर्णतल्ल, जयराज, विग्रहराज प्रथम, चन्द्रराज, गोपराज जैसे अनेक सामंतों ने शासन किया। शासक अजयदेव ने ‘अजमेर’ नगर की स्थापना की और साथ ही यहाँ पर सुन्दर महल एवं मन्दिर का निर्माण करवाया। 'चौहान वंश' के मुख्य शासक इस प्रकार थे चौहान वंश:- इस राजवंश के संस्थापक राजा वासुदेव चौहान माने जाते हैं। इतिहासविदों का मत है कि, चौहानवंशीय जयपुर के साम्भर तालाब के समीप में, पुष्कर प्रदेश में और आमेर-नगर में निवास करते थे। सद्य वे उत्तरभारत में विस्तृत रूप से फैले हैं। अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।   अग्निवंशी- अग्निकुंड का सिद्धान्त चंदबरदाई की पुस्तक पृथ्वीराज रासो में दिया गया था। अग्निकुंड क...

राजस्थान का इतिहास कितना पुराना है और राजस्थान प्रमुख जनपद।

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शिक्षा डेस्क :-  राजस्थान का इतिहास तकरीबन 5 हजार साल पुराना है। भारत की एक मात्र खारे पानी वाली नदी लूनी राजस्थान के थार रेगिस्तान से गुजरती है। इस राज्य के बारे में रोचक बातें जानिए क्षेत्रफल की दृष्टी से भारत का सबसे बड़ा राज्य राजस्थान है। साल 1949 में इसे राज्य के तौर पर भारत में शामिल किया गया था. राजस्थान को 'राजाओं की भूमि' और 'रजवाड़ों की धरती' कही जाती है। यहां के भव्य राजमहल वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं।  राजस्थान हमेशा से पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता है।  राजपूताना शासन के दौरान यहां काफी विकास हुआ। राजस्थान बाप्पा रावल, राणा कुंभा, राणा सांगा और राणा प्रताप जैसे प्रतापी राजाओं की भूमि रही है।   राजस्थान का इतिहास तकरीबन 5 हजार साल पुराना है। इसे तीन भागों में  विभाजित किया जाता है। पहला प्राचीन काल, दूसरा मध्यकालीन और तीसरा आधुनिक काल। सबसे पहले जार्ज थॉमस ने राजपूताना शब्द का प्रयोग किया था। राजस्थान का की यह भूमि प्राचीन सभ्यताओ की जन्मस्थली है।  यहां पाषाणकालीन और सिंधुकालीन सभ्यताओं का विकास हुआ।  राजस्थान प्राचीन काल का इ...

राजस्थान प्रमुख लोक देवता की गाथा

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  लोक देवता से तात्पर्य उन महापुरुषों से है जिन्होंने अपने वीरोचित कार्य तथा दृढ आत्मबल द्वारा समाज में सांस्कृतियों मूल्यों की स्थापना, धर्म की रक्षा एवं जन हितार्थ हेतु सर्वस्व न्यौछावर कर दिया तथा ये अपनी अलौकिक शक्तियों एवं लोक मंगल कार्य हेतु लोक आस्था के प्रतीक हो गये। इन्हें जनसामान्य का दुःखहूत्र्त्ता व मंगलकर्त्ता के रूप में पूजा जाने लगा। इनके धान देवल, देवरे या चबूतरे जनमानस में आस्था के केन्द्र के रूप में विद्यमान हो गये। राजस्थान के सभी लोक देवता छुआछूत, जाति-पाँति के विरोधी व गौ रक्षक रहे है। एवं असाध्य रोगों के चिकित्सक रहे है। 1. रामदेवजी :-रामदेवजी लोकदेवताओं में एक प्रमुख अवतारी पुरूष है। इनका जन्म तंवर वंश के अजमल जी व मैणा दे के घर हुआ। समाज सुधारक के रूप में रामदेवजी ने मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा व जाति व्यवस्था का घोर विरोध किया। गुरू की महत्ता पर जोर देते हुए इन्होंने कर्मों की शुद्धता पर चल दिया। उनके अनुसार कर्म से ही, भाग्य का निर्धारण होता है। वे सांप्रदायिक सौहार्द के प्रेरक थे। मुस्लिम समाज इन्हें ‘राम सा पीर’ के रूप में मानते हैं। राम देव जी का प्रमुख स...

राजस्थान की इतिहास एव स्थापित कला के प्रमुख दुर्ग।

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  राजस्थान में प्राचीन काल से ही हिन्दू, बौद्ध, जैन तथा मध्यकाल से मुस्लिम धर्म के अनुयायियों द्वारा मंदिर, स्तम्भ, मठ, मस्जिद, मक़बरे, समाधियों और छतरियों का निर्माण किया जाता रहा है। इनमें कई भग्नावेश के रूप में तथा कुछ सही हालत में अभी भी विद्यमान है। 1. चित्तौड़गढ़ दुर्ग :- ● स्थान – चितौड़गढ़ ● निर्माता – चित्रांगद मौर्य (सिसोदिया वंश),  निर्माण – सातवीं शताब्दी ● श्रेणी – गिरी दुर्ग ● अन्य नाम – चित्रकूट, राजस्थान का गौरव, राजस्थान का दक्षिणी प्रवेश द्वार, राजस्थान के दुर्गों का सिरमौर ● प्रचलित कहावत – “गढ़ तो चितौड़गढ़, बाकी सब गढ़ैया” यह दुर्ग क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा दुर्ग है। साके :- इस दुर्ग में तीन साके हुए – 1. प्रथम साका :- सन् 1303 ई. में मेवाड़ के महाराणा रावल रतनसिंह के समय चित्तौड़ का प्रथम साका हुआ। रानी पद्मिनी द्वारा जौहर किया गया। आक्रमणकारी अल्लाउद्दीन खिलजी था। उसने दुर्ग का नाम बदलकर खिजाबाद। द्वितीय साका :- 1534-35 ई. में मेवाड़ के शासक विक्रमादित्य के समय शासक बहादुर शाह ने आक्रमण किया। युद्ध के उपरान्त महाराणी कर्मावती ने जौहर किया। तृतीय स...