राजस्थान के वन वन्यजीव आभरणय एवं राष्ट्रीय उद्यान महत्व।

 

शिक्षा डेस्क :-राष्ट्रीय उद्यान

राजस्थान में 3 राष्ट्रीय उद्यान स्थित है : –

1. रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान (सवाई माधोपुर) – 1980 में

2. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (भरतपुर) – 1981 में

3. मुकन्दरा हिल्स / दर्रा अभ्यारण्य (कोटा , झालावाड़) – 2012 में

रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान, सवाईमाधोपुर - रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान देश का सबसे छोटा बाघ अभ्यारण्य है। इस अभ्यारण्य को 1955 में वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित किया गया। अप्रैल, 1974 में रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान को 'टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट' में शामिल किया गया।1 नवंबर, 1980 में रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान को राजस्थान का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।

रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान को 'भारतीय बाघों का घर' कहते है। राजस्थान में सर्वप्रथम बाघ परियोजना यहीं से शुरू की गयी।  इस अभ्यारण्य के प्रबंधन के लिए अलग से "रणथम्भौर बोर्ड" का गठन किया गया। यह अभ्यारण्य दुर्लभ काला गरुड़ एवं रेटेड तीतर के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर जोगी महल, त्रिनेत्र गणेश मंदिर दर्शनीय स्थल है। यहां पर तीन झील - मलिक तालाब, पदम तालाब एवं राजबाग झील स्थित है। इस अभ्यारण्य में घूमने के लिए 1960 में एलिजाबेथ, 1985 में राजीव गाँधी, 2000 में बिल क्विंटन तथा वर्ष 2005 में मनमोहन सिंह घूमने आ चुके है।

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर -केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को घना पक्षी विहार अभ्यारण्य भी कहा जाता है। केवलादेव घना पक्षी अभयारण्य का निर्माण किशन सिंह ने स्विजरलैंड की झीलों के आधार पर करवाया था। यह अभयारण्य भारत के प्रमुख पर्यटक परिपथ "सुनहरा त्रिकोण" (दिल्ली, आगरा, जयपुर) एवं राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 11 पर 'राजस्थान के प्रवेश द्वार' भरतपुर में बाणगंगा एवं गंभीरी नदियों के संगम पर स्थित है। इस अभयारण्य को 1956 में पक्षी अभयारण्य घोषित किया गया। 26 अगस्त 1981 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया ( राजस्थान का दूसरा व सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान) | इस अभयारण्य को 1985 में यूनेस्को की विश्व प्राकृतिक धरोहर की सूची में शामिल किया गया। यह अभयारण्य एशिया की सबसे बड़ी पक्षियों की प्रजनन स्थली है, इसलिए इसे 'पक्षियों का स्वर्ग' (पक्षी अभ्यारण) भी कहते हैं। यह अभ्यारण्य विश्व के शीर्ष 10 अभयारण्य में शामिल है। यहां पर हाल ही में राज्य की प्रथम वन्यजीव प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है। यहां पर लाल गर्दन वाले दुर्लभ तोते एवं साइबेरियन सारस पाए जाते हैं। इस अभयारण्य में ऐंचा घास में फंसकर सर्वाधिक पक्षी मरते हैं। इस अभयारण्य के लगभग मध्य में शिव (केवलादेव) का मंदिर स्थित है इसलिए इसको केवलादेव अभयारण्य के नाम से जाना जाने लगा।

मुकंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान - यह अभ्यारण्य कोटा एवं झालावाड़ जिलों में स्थित है। वर्ष 2003 में इस अभयारण्य का नाम दर्रा अभयारण्य से बदलकर राजीव गांधी नेशनल पार्क कर दिया था तथा 2006 में वसुंधरा सरकार ने इसका नाम बदलकर मुकुंदरा हिल्स पार्क रखा तथा इसे राष्ट्रीय उद्यान का स्तर प्रदान करने के लिए प्रस्ताव पारित किया था लेकिन इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार ने मंजूरी नहीं दी। इस अभयारण्य में राजस्थान का दूसरा ताजमहल (अबली मीणी का महल) कोटा जिले में स्थित है। इसके अलावा यहां पर गुप्तकालीन हूणों का शिव मंदिर स्थित है। इस अभयारण्य में गागरोनी/हीरामन तोते/हिंदुओं का आकाश लोशन (मनुष्य की आवाज में बोलने वाला), सारस तथा सर्वाधिक घड़ियाल पाए जाते हैं। इस अभयारण्य को राजस्थान का तीसरा राष्ट्रीय उद्यान 9 जनवरी, 2012 को घोषित किया गया तथा राजस्थान का तीसरा टाइगर प्रोजेक्ट अभयारण्य 9 अप्रैल 2013 को घोषित किया गया। इस अभयारण्य के अंतर्गत तीन अभयारण्य आते हैं - दर्रा वन्यजीव अभयारण्य, जसवंत सागर वन्यजीव अभयारण्य, चंबल वन्य जीव अभ्यारण्य। 

सरिस्का वन्य जीव अभ्यारण्य, अलवर - सरिस्का वन्य जीव अभ्यारणय की स्थापना 1955 में की गई थी। सरिस्का वन्य जीव अभ्यारण्य को  "बाघों की मांद" नाम से भी जाना जाता है। यह अभ्यारण्य 1978-79 में राज्य की दूसरी बाघ परियोजना के अंतर्गत शामिल हो गया। यह अभ्यारण्य हरे कबूतरों के लिए प्रसिद्ध है। कांकणवाडी का किला भी सरिस्का अभ्यारण में स्थित है। यह अभ्यारण्य 'रीसस बन्दर"  के लिए प्रसिद्ध है।

राष्ट्रीय मरू उद्यान, बाड़मेर-जैसलमेर -मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के थार मरुस्थल में अवस्थित है। यह जैसलमेर जिले से 40 किलोमीटर दूर है। यह उद्यान न केवल राज्य का सबसे बड़ा उद्यान है बल्कि पूरे भारत में इसके बराबर का कोई राष्ट्रीय उद्यान नहीं है। उद्यान का कुल क्षेत्र 3162 वर्ग किलोमीटर है। देश का सबसे अधिक दुर्लभ पक्षी गोडावण है जो राजस्थान के बीकानेर, बाड़मेर और जैसलमेर जिले में अधिक संख्या में मिलता है राजस्थान में 5 राष्ट्रीय उद्यान, 4 बाघ परियोजना 27 वन्य जीव अभ्यारण्य 16 कंजरवेशन रिजर्व एवं 33 आखेट निषेद क्षेत्र घोषित किए जा चुके हैं। मरू उद्यान जैसलमेर की स्थापना 1981 हुई?

दर्रा वन्यजीव अभयारण्य -1955 में दर्राह को वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया। 2004 में मुकुंदरा हिल्स नेशनल पार्क घोषित किया गया। 2013 में NTCA से मंजूरी मिली और टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। दर्राह राष्ट्रीय उद्यान या राष्ट्रीय चम्बल वन्य जीव अभयारण्य भारत के राजस्थान राज्य में कोटा से 50 कि॰मी॰ दूर है जो घड़ियालों (पतले मुंह वाले मगरमच्छ) के लिए बहुत लोकप्रिय है। यहां जंगली सुअर, तेंदुए और हिरन पाए जाते हैं। बहुत कम जगह दिखाई देने वाला दुर्लभ कराकल यहां देखा जा सकता है।


कैला देवी वन्य जीव अभ्यारण्य, करौली -यह अभ्यारण्य राजस्थान-मध्यप्रदेश सीमा से लगा हुआ करौली जिले में स्थित है। इस अभ्यारण्य के पश्चिमी किनारे से बनास नदी बहती है तथा दक्षिण-पूर्व दिशा में चम्बल नदी का प्रवाह होता है। इस अभ्यारण्य में चिंकारा, जंगली सूअर, सियार, भेड़िया, हाइना, चीतल, साम्भर, लोमड़ी आदि वन्य जीव पाए जाते है। यहां पर कैला देवी मंदिर के कारण इस अभ्यारण्य का नाम कैला देवी वन्य जीव अभ्यारण्य पड़ा। इस अभ्यारण्य में मुख्यत: धोक वन पाए जाते है।

फुलवारी की नाल अभयारण्य, उदयपुर - फुलवारी की नाल वन्य अभयारण्य भारत के राजस्थान राज्य के उदयपुर ज़िले में स्थित एक वन्य अभयारण्य है। फुलवारी की नाल अभयारण्य स्थित पानरवा में प्रदेश का पहला ऑर्किडेरियम स्थापित किया गया है। उदयपुर शहर से करीब 120 किमी दूर कोटड़ा में बना यह ऑर्किडेरियम उदयपुर के ईको टूरिज्म के लिहाज से एक नया आयाम है। उदयपुर के पश्चिम में 160 किलोमीटर की दूरी पर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित इस अभयारण्य की पहाड़ी से मानसी वाकल नदी का उद्गम होता है। यहां से सोम नदी प्रवाहित होती है। इस अभयारण्य में बाघ, बघेरा, चीतल, सांभर आदि वन्य जीव पाए जाते हैं। यहां पर देश का पहला ह्यूमन एनाटॉमी पार्क स्थित है।
 
रामगढ़ विषधारी वन्य जीव अभयारण्य, बूंदी - रामगढ़ विषधारी वन्य जीव अभयारण्य  सांपों के लिए प्रसिद्ध है। रामगढ़ विषधारी वन्य जीव अभयारण्य को "रणथम्भोर के बाघों का जच्चा घर" एवं "सांपों की शरणस्थली" भी कहते हैं। रामगढ़ विषधारी वन्य जीव अभयारण्य में नीलगाय, बाघ, हिरण, रीछ, बघेरा, जंगली मुर्गे एवं अन्य कई प्रकार के जंगली जीव पाए जाते है। 16 मई, 2022 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने बताया कि राजस्थान के बूंदी ज़िले में स्थित रामगढ़ विषधारी अभयारण्य को देश का 52वाँ टाइगर रिज़र्व घोषित किये जाने की अधिसूचना जारी कर दी गई है। वर्तमान में रणथंभौर में 80 बाघ हैं, जो 1,334 वर्ग किमी में फैला हुआ है। नर बाघों में से एक, टी-115, रामगढ़ विशाधरी तक फैल गया और अक्सर वहां देखा जाता है।

कुम्भलगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य -कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य कैसे पहुँचे। अभयारण्य कुंभलगढ़ किले से 3 किमी, नाथद्वारा से 51 किमी, राजसमंद से 48 किमी और उदयपुर से 98 किमी की दूरी पर स्थित है। चूंकि वन विभाग के पास अपना वाहन नहीं है, इसलिए आगंतुकों को कुंभलगढ़ या केलवाड़ा से वाहन किराए पर लेने चाहिए। यह अभ्यारण्य राजसमंद, उदयपुर तथा पाली जिलों में फैला हुआ है।  इस अभ्यारण्य को भेड़ियों की प्रजनन स्थली भी कहा जाता है। यह राजस्थान का एकमात्र अभयारण्य है, जहां से प्रदेश की दो अलग-अलग दिशा में बहने वाली बनास एवं साबरमती नदी का उद्गम होता है। यहां पर जंगली धूसर मुर्गे, कुंभलगढ़ दुर्ग, रणकपुर के मंदिर, परशुराम महादेव मंदिर, चंदन के वृक्ष आदि प्रसिद्ध है। 

रामसागर वन्य जीव अभ्यारण्य, धौलपुर - इस अभ्यारण्य की स्थापना 1955 में की गयी। यह अभ्यारण्य हिरण, रीछ, नीलगाय, जरख, भेड़िया और बारहसिंघा आदि वन्य जीवों के लिए प्रसिद्ध है।
ताल छापर वन्यजीव अभयारण्य, चूरू - इसका प्राचीन नाम द्रोणपुर (वर्तमान सुजानगढ़) था। यह अभ्यारण्य काले हिरण  एवं कुरंजा पक्षी (स्थानीय नाम खिंचन) की शरण स्थली है। वर्षा ऋतु में इस अभ्यारण्य में  नरम घास "मोथिया'' एवं "मोचिया सायप्रस रोटेन्डस" उगती है। ताल छापर भारत में देखे जाने वाले सबसे सुंदर एंटीलोप "द ब्लैकबक" का एक विशिष्ट आश्रय स्थल है। इसे वर्ष 1966 में अभयारण्य का दर्जा दिया गया था। ताल छापर बीकानेर के पूर्व शाही परिवार का एक शिकार अभ्यारण्य था।

वन विहार वन्य जीव अभ्यारण्य, धौलपुर - इस अभ्यारण्य की स्थापना 1965 में की गयी। यह अभ्यारण्य हिरण, रीछ, नीलगाय, जरख, भेड़िया और बारहसिंघा आदि वन्य जीवों के लिए प्रसिद्ध है।

सीतामाता वन्य जीव अभ्यारण्य, प्रतापगढ़ - सर्वाधिक जैव विविधता वाले इस अभयारण्य को चीतल/चौसिंगे (यह एंटीलॉग प्रजाति का दुर्लभ जीव है स्थानीय भाषा में भेंडल कहते हैं) की शरण स्थली/मातृभूमि व उड़न गिलहरियाे का स्वर्ग के नाम से जाना जाता है। इस अभ्यारण्य में सर्वाधिक सागवान के वन  (एक मात्र इसी अभयारण्य में), उड़न गिलहरी (साधारणतया महुआ के पेड़ पर रहती है तथा इसे देखने का अच्छा समय सूर्य के छिपने के बाद हैं। स्थानीय नाम आशोवा है। ), वन औषधियां (हिमालय के बाद सर्वाधिक), पैंगोलिन मिलते हैं। सीतामाता वन्य जीव अभ्यारण्य में सीता माता मंदिर, लव कुश नामक दो जल स्रोत है। यहां से करमोई व जाखम नदी का उद्गम होता है। यह अभ्यारण्य अरावली व विंध्याचल पर्वतमाला तथा मालवा के पठार के संगम स्थल पर है।

बस्सी वन्य जीव अभयारण्य, चित्तौड़गढ़ - इसे 29 अगस्त, 1988 को अभयारण्य घोषित किया गया। यह अभयारण्य जंगली बाघों के विचरण  हेतु विश्व प्रसिद्ध है।
इसमें से ओरई एवं ब्राह्मणी/बामनी नदी का उद्गम होता है।

रामगढ़ विषधारी वन्य जीव अभयारण्य, बूंदी - रामगढ़ विषधारी वन्य जीव अभयारण्य  सांपों के लिए प्रसिद्ध है। रामगढ़ विषधारी वन्य जीव अभयारण्य को "रणथम्भोर के बाघों का जच्चा घर" एवं "सांपों की शरणस्थली" भी कहते हैं। रामगढ़ विषधारी वन्य जीव अभयारण्य में नीलगाय, बाघ, हिरण, रीछ, बघेरा, जंगली मुर्गे एवं अन्य कई प्रकार के जंगली जीव पाए जाते है।

माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य, सिरोही - यह अभ्यारण्य राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी पर स्थित अभयारण्य है, जो जंगली भालूओं, मुर्गों, युबलेफरीस (सबसे सुंदर छिपकली) एवं डिकिल पटेरा आबू एंसिस घास (विश्व में एकमात्र यही पाई जाती है) हेतु प्रसिद्ध है। वर्तमान में यह अभयारण्य की गिनती में नहीं आता है। ग्रीन मुनिया नाम की चिड़िया आबू पर्वत पर पाई जाती है।
नाहरगढ़ जैविक वन्य जीव अभ्यारण्य, जयपुर -  नाहरगढ़ जैविक वन्य जीव अभ्यारण्य की स्थापना 22 सितम्बर, 1980 में की गयी थी।  इसमें भारत का दुरसा "बायोलॉजिकल पार्क" एवं देश का तीसरा "बियर रेस्क्यू सेण्टर" स्थित है। यह राजस्थान का एकमात्र जैविक पार्क है। यह अभ्यारण्य जंगली सूअर, काला भालू, चीतल, बघेरा, सांभर, चिंकारा, हिरण आदि के लिए प्रसिद्ध है।

जवाहर सागर वन्यजीव अभयारण्य -  यह अभ्यारण्य कोटा, बूंदी एवं चित्तौड़गढ़ जिलों में फैला हुआ है। यह अभ्यारण्य एक जलीय अभयारण्य है। यह अभ्यारण्य उत्तरी भारत का प्रथम सर्प उद्यान है। इस अभयारण्य में सर्वाधिक मगरमच्छ पाए जाते हैं। यह अभ्यारण्य घड़ियालों के लिए प्रसिद्ध है। इस अभ्यारण्य में गेपरनाथ का मंदिर, कोटा बांध, गरड़िया महादेव मंदिर आदि दर्शनीय स्थल है। 1975 जवाहर सागर


बीसलपुर वन्यजीव अभयारण्य, टोंक - यह अभ्यारण्य टोंक जिले की टोडारायसिंह तहसील के राजमहल गांव में स्थित है।
बस्सी वन्य जीव अभयारण्य, चित्तौड़गढ़ - इसे 29 अगस्त, 1988 को अभयारण्य घोषित किया गया। यह अभयारण्य जंगली बाघों के विचरण  हेतु विश्व प्रसिद्ध है।
इसमें से ओरई एवं ब्राह्मणी/बामनी नदी का उद्गम होता है। बस्सी वन्यजीव अभयारण्य भारत के राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में बस्सी के पास एक वन्यजीव अभयारण्य है। वन्यजीव अभयारण्य 15,290 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है। 

भैंसरोड़गढ़ वन्य जीव अभयारण्य, चित्तौड़गढ़ - यह अभयारण्य भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़) के आस पास के वन प्रदेश को मिलकर 05 फरवरी, 1983 को बनाया गया था। यह अभयारण्य रावतभाटा (चित्तौड़गढ़) में राणाप्रताप सागर बांध पर स्थित है। यह अभयारण्य एक लम्बी पट्टी के रूप में चम्बल एवं बामनी नदियों के सहारे-सहारे फैला हुआ है। यह घड़ियालों के लिए प्रसिद्ध है।

जमुवारामगढ वन्य जीव अभ्यारण्य, जयपुर - जमुवारामगढ वन्य जीव अभ्यारण्य "जयपुर के पुराने शिकारगाह" के लिए प्रसिद्ध है। इस अभ्यारण्य में मुख्यत: धोक वन पाए जाते है। यह अभ्यारण्य लंगूरों,जगली बिल्ली, भेड़िया, जरक, बघेरा नीलगाय आदि के लिए प्रसिद्ध है। इसे 1982 में अभ्यारण्य घोषित किया गया था। यह वन्य जीव अभयारण्य जयपुर जिले में जमवारामगढ़ के पास लगभग 300 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है। इस अभयारण्य में चिंकारा, नीलगाय, चीतल, लंगूर, मोर आदि वन्य जीव पाए जाते हैं।

माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य, सिरोही - यह अभ्यारण्य राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी पर स्थित अभयारण्य है, जो जंगली भालूओं, मुर्गों, युबलेफरीस (सबसे सुंदर छिपकली) एवं डिकिल पटेरा आबू एंसिस घास (विश्व में एकमात्र यही पाई जाती है) हेतु प्रसिद्ध है।वर्तमान में यह अभयारण्य की गिनती में नहीं आता है। ग्रीन मुनिया नाम की चिड़िया आबू पर्वत पर पाई जाती है।

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