राजस्थान के प्रमुख लोकगीत एवं लोक नृत्य महत्वपूर्ण विशेषताएं।
शिक्षा डेस्क :-भारत का राष्ट्रीय गीत “वंदेमातरम” है। यह गीत आनंदमठ उपन्यास से लिया गया है। जिसके रचयिता बकिमचंद्र चटर्जी है, इस गीत को गाने में 1 मिनट 5 सेकण्ड (65 सेकण्ड ) का समय लगता है। रविंद्र नाथ टैगोर ने लोक गीतो को संस्कृति का सुखद संदेश ले जाने वाली कला कहा है। भारत का राष्ट्रीयगान “जन-गन-मन” है, जिसके रचयिता रविंद्रनाथ टैगोर है । यह गीतांजलि उपन्यास से लिया गया है। इसे गाने में 52 सेकण्ड का समय लगता है। राजस्थान का राज्य गीत “केसरियाबालम पधारो नी म्हारो देश” है, यह एक विरह गीत है, जिसे उदयपुर की मांगी बाई ने सबसे पहले गाया था। इस गीत को सबसे ज्यादा अल्हा जिल्हा बाई ने गाया था। भारत की कोकिला सरोजनी नायडू है (सरोजनी नायडू भारत की प्रथम महिला राज्यपाल (उतरप्रदेश ) है। राजस्थान की कोकिला गवरी देवी (पाली) है तथा मरुकोकिला अल्लाहाजिल्हा बाई है जिनके गुरु उस्ताद – हुसैन बक्स थे।
मूमल यह जैसलमेर में गाया जाने वाला श्रृंगारिक लोक गीत है जिसमें मूमल का नखशिख वर्णन किया गया है। यह गीत एक ऐतिहासिक प्रेमाख्यान है।
ढोलामारू यह सिरोही जिले का लोक गीत है। इसे ढाढ़ी जाति के लोग गाते हैं। इसमें ढोलामारू की प्रेमकथा का वर्णन है।
गोरबंद यह ऊँट के गले का आभूषण होता है, जिस पर राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में लोकप्रिय गोरबंद गीत पचलित है।
ओल्यूं यह किसी की याद में गाया जाने वाला गीत है, जैसे बेटी की विदाई पर उसके घर की स्त्रियाँ इसे गाती हैं।
काजलियो हमारी संस्कृति में काजल सोलह श्रृंगारों में से एक है। काजलियो एक श्रृंगारिक गीत है, जो विशेषकर होली के अवसर पर चंग पर गाया-बजाया जाता है।
कुरजाँ यह एक प्रवासी पक्षी है। राजस्थानी लोक जीवन में विरहनी द्वारा अपने प्रियतम को संदेश भिजवाने हेतु कुरजाँ पक्षी को माध्यम बनाकर यह गीत गाया जाता है।
तेजा गीत खेती शुरू करते समय तेजाजी की भक्ति में गाया जाने वाला यह गीत किसानों का प्रेरक गीत है।
घूमर यह लोक गीत राजस्थान के प्रसिद्ध लोक नृत्य घूमर के साथ गाया जाता है। इस लोक गीत गणगौर के त्योहार व विशेष पर्वों तथा उत्सवों पर गाया जाता है।
पणिहारी पानी भरने वाली स्त्री को पणिहारी कहा जाता है। यह राजस्थान का प्रमुख लोक गीत है।
कांगसियो यह कंघे का राजस्थानी शब्द है। इस पर गाया जाने वाला लोक गीत कांगसियो कहलाता है।
पावणा यह लोक गीत नवविवाहित दामाद के ससुराल आगमन पर स्त्रियों द्वारा गाया जाता है। ये गीत भोजन कराते समय व उसके बाद गाए जाते हैं।
रातीजगा विवाह, पुत्र जन्मोत्सव, मुंडन आदि शुभ अवसरों पर अथवा मनौती मनाने पर पूरी रात जाग कर गाए जाने वाले किसी लोक देवता के गीत रातीजगा कहलाते हैं।
हिचकी आम जन में ऐसी मान्यता है कि किसी के द्वारा याद किए जाने पर हिचकी आती है। निम्न हिचकी गीत अलवर-मेवात का प्रसिद्ध गीत है।
पपैयो यह गीत पपीहा पक्षी को ध्यान में रखते हुए गाया जाता है। इसमें प्रेयसी अपने प्रियतम से उपवन में आकर मिलने की प्रार्थना करती है।
सुंवटिया भील स्त्री द्वारा परदेस गए पति को एस गीत के द्वारा संदेश भेजा जाता है।
हमसीढो यह उत्तरी मेवाड़ के भीलों का प्रसिद्ध लोक गीत है। इसे स्त्री व पुरुष साथ मिलकर गाते हैं।
हरजस राजस्थान में महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले ऐसे सगुणभक्ति लोक गीत, जिसमें मुख्यतः राम व कृष्ण दोनों की लीलाओं का वर्णन होता है।
जलो और जलाल जब वधू के घर से स्त्रियाँ वर की बारात का डेरा देखने जाती है, तब यह गीत गाया जाता है।
रसिया ये ब्रज, भरतपुर, धौलपुर आदि क्षेत्रों में गाए जाने वाले लोक गीत हैं।
इंडोणी यह सिर पर भार रखने हेतु सूत, मूंज, नारियल की जट या कपड़े की बनाई गई गोल चकरी होती है। इंडोणी पर स्त्रियों द्वारा पानी भरने जाते समय यह गीत गाया जाता है।
सिठाणे विवाह समारोहों में ख़ुशी व आत्मानंद के लिए गाए जाने वाले इन गीतों को गाली भी कहा जाता है।
बधावागित ये लोक गीत शुभ कार्य सम्पन्न होने पर गाये जाते हैं।
घोड़ी ये गीत लड़के के विवाह पर निकासी पर गाए जाते है।
कागा इन गीतों में विरहणी नायिका कौए को संबोधित करके अपने प्रियतम के आने का शगुन मनाती है और कौए को लालच देकर उड़ने को कहती है।
बिछूड़ो हाड़ौती क्षेत्र में गाया जाने वाला यह प्रसिद्ध लोक गीत है। जिसमें एक पत्नी, जिसे बिच्छु ने डस लिया है और मरने वाली है, अपने पति को दूसरा विवाह करने का संदेश देती है।
घुड़ला यह लोक गीत मारवाड़ क्षेत्र में होली के बाद घुड़ला त्योहार के समय कन्याओं द्वारा गाया जाता है।
पंछिड़ा यह लोक गीत हाड़ौती व ढूँढाड़ क्षेत्र में मेलों के अवसर पर अलगोजे, ढोलक व मंजीरे के साथ गाए जाते है।
केसरिया बालम यह एक रजवाड़ी गीत है। इस गीत में पति की प्रतीक्षा करती हुई एक नारी की विरह व्यथा है।
मोरिया इस सरस लोक गीत में ऐसी बालिका की व्यथा है जिसका संबंध तो तय हो चुका है लेकिन विवाह में देरी है।
जीरो इस लोक गीत में पत्नी अपने पति से जीरे की फलस नहीं बोने की विनती करती है।
हालरिया यह लोक गीत जैसलमेर क्षेत्र में बच्चे के जन्म के अवसर पर गाया जाता है।


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