राजस्थान की सरकार ने वन नीति कब आरंभ की थी।

 शिक्षा डेस्क : -राजस्थान में वन सम्पदाभू क्षेत्र जहाँ वृक्षों का घनत्व सामान्य से अधिक है उसे वन (जंगल) कहते हैं। अंग्रेजी शासन से पहले भारत में जनता द्वारा जंगलों का इस्तेमाल मुख्यतः स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुसार होता था। भारत में सबसे पहले लार्ड डलहौजी ने 1855 में एक वन नीति घोषित की, जिसके तहत राज्य के वन क्षेत्र में जो भी इमारती लकड़ी के पेड़ हैं वे सरकार के हैं और उन पर किसी व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं है।

राजस्थान सरकार ने फरवरी 2010 में पहली राज्य वन नीति के साथ पशुधन विकास और जल पर नई नीतियों को मंजूरी दी। यह रेगिस्तान राज्य में वन क्षेत्र को 9.5% से 20% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखती है। राजस्थान के कुल भौगोलिक क्षेत्र का केवल 9.56% क्षेत्र पर वन है।30-Nov-2022

भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति वर्ष 1894 में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रकाशित की गई थी।  स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार द्वारा पहली वन नीति 1952 में बनाई गई। इस वन नीति को 1988 में संशोधित किया गया। इस नीति के अनुसार राज्य के 33% भूभाग पर वन होना अनिवार्य है। संविधान के 42वें संशोधन 1976 के द्वारा वनों का विषय राज्यसूची से समवर्ती सूची में लाया गया। 

स्वतंत्रता के पश्चात् राजस्थान वन अधिनियम 1953 में पारित किया गया।

राजस्थान में सर्वप्रथम 1910 में जोधपुर रियासत ने, 1935 में अलवर रियासत ने वन संरक्षण नीति बनाई। राज्य में 1949-50 में वन विभाग की स्थापना की गई। इसका मुख्यालय जयपुर में है।

4 मार्च, 2014 से राजस्थान वन (संशोधन) अधिनियम, 2014 लागू किया गया।  राजस्थान सरकार द्वारा 8 फरवरी 2010 में अपनी पहली राज्य वन नीति घोषित की गई है । साथ ही राजस्थान वन पर्यावरण निति घोषित करने वाला देश का पहला राज्य हो गया। 

भारतीय वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत 1981 में केन्द्रीय वन अनुसंधान संस्थान देहरादून की स्थापना की गई। इसके चार क्षेत्रीय कार्यालय हैं – शिमला, कोलकाता, नागपुर एवं बंगलौर।  

आरक्षित वन – 12,475 वर्ग किलोमीटर

सुरक्षित वन / रक्षित वन – 18,217 वर्ग किलोमीटर

अवर्गीकृत वन – 2,045 वर्ग किलोमीटर

आरक्षित वन :-आरक्षित वनो का क्षेत्रफल 12,475 वर्ग किलोमीटर है जो कुल वनों का 38.11 प्रतिशत है। इन वनों पर पूर्ण सरकारी नियंत्रण होता है। इनमें किसी भी प्रकार का दोहन वर्जित है। सर्वाधिक आरक्षित वन उदयपुर जिले में है।

सुरक्षित वन:-सुरक्षित वनो का क्षेत्रफल 18,217 वर्ग किलोमीटर है जो की कुल वनों का 55.64 प्रतिशत है। इन वनों के दोहन के लिए सरकार कुछ नियमों के आधार पर छुट देती है। इनमें लकड़ी काटने, पशुचारण की सीमित सुविधा दी जाती है तथा इनको संरक्षित रखने का भी प्रयत्न किया जाता है।सर्वाधिक रक्षित वन बारां जिले में है।

अवर्गीकृत वन:-राजस्थान में 2045 वर्ग किलोमीटर या 6.25 प्रतिशत क्षेत्र में अवर्गीकृत वन हैं। इन वनो में पेड़ों के कटने और मवेशियों के चरने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इन वनों में सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क जमा करवाकर वन सम्पदा का दोहन किया जा सकता है। सर्वाधिक अवर्गीकृत वन बीकानेर जिले में है।

वन रिपोर्ट 2019 के अनुसार राजस्थान में कुल वनावरण 16629.51 वर्ग किमी है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 4.86% है। (16630 वर्ग किमी)  वनावरण में वर्ष 2017 की तुलना में 57.51 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है।

वनों के प्रकार

शुष्क सागवान वन:-सागौन का जंगल मुख्य रूप से राजस्थान के बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले में उगता है।सही उत्तर मध्य प्रदेश है। सागौन भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के सबसे महत्वपूर्ण लकड़ी के पेड़ों में से एक है। भारत में सबसे महत्वपूर्ण सागौन के जंगल मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश में हैं। सागौन की लकड़ी पर्णपाती जंगलों में पाई जाती है।

उष्णकटिबंधीय कंटक वन :- येवन पश्चिमी राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाए जाते हैं।ये वन पश्चिमी भारत-पाक सीमा से प्रारंभ होकर धीरे-धीरे अरावली पहाड़ियों के शुष्क पतझड़ मिश्रित वन और दक्षिण- पूर्वी पठार के साथ विलय हो जाते हैं। इस वन क्षेत्र में प्रमुख रूपसे बबूल, केर, खेजड़ा (खेजड़ी-राज्य वृक्ष), कीकर, विलायती बबूल, बेर, रोहिड़ा, थूहड़ (थोर), नागफनी, ग्वारपाठा आदि वृक्ष पाए जाते हैं। इन वनों मूल रूप से राजस्थान के पश्चिमी भाग अर्थात् जोधपुर , पाली , जालोर , बाड़मेर , नागौर , चुरू , बीकानेर आदि जिलों में पाए जाते हैं।

उष्णकटिबंधीय शुष्क पतझड़ वन : - ये वन राज्य के अरावली पर्वतमाला के उत्तरी और पूर्वी ढलान के कुछ हिस्सों में छोटे-छोटे टुकड़ों में पाए जाते हैं, जो ज्यादातर अलवर, भरतपुर और धौलपुर जिलों में हैं। शुष्क पतझड़ वन की कुछ प्रजातियों की छिटपुट विकास जालौर , नागौर , गंगानगर और बीकानेर जिलों की नदियों के शुष्क प्रवाह क्षेत्रों मेंपाया जाता है। वनों के इस प्रकार में पायी जाने वाली मुख्य वृक्ष प्रजातियां धावा (धावड़ा) , ढाक (पलाश) , बबूल, खैर-कत्था , बहेड़ा , अर्जुन वृक्ष ,सेमल,बांस ,सागवान , गूलर, आम,बरगद,आंवला आदि है।

उष्ण कटिबंधीय कँटीले वन:- इस प्रकार के वन पश्चिमी राजस्थान के शुष्क एवं अर्द्ध-शष्क प्रदेशों में पाए जाते है। मुख्यतः जैसलमेर , बाड़मेर , पाली , बीकानेर , चुरू , नागौर , सीकर , झुंझुनू आदि जिलों में ये वन पाए जाते है । इन वनों में काँटेदार वृक्ष एवं झाड़ियाँ प्रमुख होती है। इन पेड़ों व झाड़ीयों की जड़े लंबी होती है तथा पत्तियां कंटीली होती है । इनमे खेजड़ा, रोहिड़ा, बेर, बबूल, कैर आदि के वृक्ष मिलते है। इनमें खेजड़ा एक बहु-उपयोगी वृक्ष है, जिसे राज्य वृक्ष का दर्जा दिया गया है। फोग , आकड़ा , कैर , लाना , अरणा व झड़बेर इस क्षेत्र की प्रमुख झड़ियाँ है ।यहाँ कई प्रकार की घास भी पाई जाती है जिनमे सेवण व धामण मुख्य है धामण घास दुधारू पशुओं के लिए बहुत ही उपयोगी होती है । जबकि सेवण घास सभी पशुओं के लिए पौष्टिक होती है ।

उप-उष्ण पर्वतीय वन :- इस प्रकार के वन राजस्थान में केवल सिरोही जिले के आबू पर्वतीय क्षेत्र में है। इन वनों में सदाबहार एवं अर्द्ध-सदाबहार वनस्पति होती है।यहां वनों की सघनता अधिक है अतः सालभर हरियाली बनी रहती है । इन वनों में आम ,बांस ,नीम ,सागवान, सिरिस, अम्बरतरी, बेल आदि के वृक्ष पाए जाते है । इन वनो का क्षेत्रफल राज्य के कुल वन क्षेत्र का मात्र 0.4 प्रतिशत है।

विविध मिश्रित वन :- ये वन अधिकतर राजस्थान के दक्षिण पूर्वी और पूर्वी भाग में चित्तौड़गढ़ , कोटा , उदयपुर, सिरोही , बांसवाड़ा , डूंगरपुर, बारां और झालावाड़ जिलों में पाए जाते हैं। इनमें मिश्रित प्रकार के पेड़-पौधे पाए जाते हैं। धावा (धावड़ा) ,ढाक , बबूल, खैर- कत्था , हरड़, बहेड़ा , अर्जुन , सेमल, बांस , शीशम, नीम, सागवान आदि इनमे प्रमुख है।


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