राजस्थान की प्रमुख झील ऐतिहासिक महत्व

शिक्षा डेस्क : - राजस्थान का एक शाही इतिहास है जिसने इस राज्य के हर नुक्कड और कोने को प्रतिबिंबित किया गया है। राजस्थान की संस्कृति बहुत जीवंत और रंगीन है। शहर में कई झीलें उदयपुर शहर के मौसम को पूरे वर्ष सुखद बनाए रखता है।

राजस्थान में कई झीलें हैं जो राज्य के समृद्ध संस्कृति को भी दर्शाता हैं। झीलों में राजसमंद झील, उदय सागर झील, नक्की झील, कल्याना झील, राज बाग तलाब, मल्लिक तलाब, फतेह सागर झील, गद्दीसर झील, पिगोला झील, स्वरूप सागर झील, उदय सागर झील, राज बाग तलाब, और कई अन्य शामिल हैं।

राजस्थान की खारे पानी की झीले

सांभर झील:- प्रशासनिक दृष्टि से सांभर झील जयपुर जिले के फुलेरा गांव में स्थित है तथा इसका कुछ भाग नागौर जिले के अंतर्गत आता है। इस झील में प्रशासनिक कार्य जयपुर से किया जाता है। सांभर झील राजस्थान की सबसे बड़ी प्राकृतिक एवं खारे पानी की झील है। सांभर झील भारत की दूसरी सबसे बड़ी खारे पानी की झील ( चिल्का झील, उड़ीसा के बाद ) है। बिजोलिया शिलालेख के अनुसार सांभर झील का निर्माण वासुदेव चौहान द्वारा करवाया गया था। सांभर झील का तल समुद्र तल से भी नीचा है। सांभर झील में मेंथा, रुपनगढ़, खारी तथा खंडेला नदियां आकर गिरती है। सांभर झील से भारत के कुल नमक उत्पादन का (देश का सर्वाधिक नमक) 8.7 प्रतिशत नमक उत्पादित होता है। यहां से प्राप्त नमक उत्तम किस्म का नमक होता है। सांभर झील तीन जिला - जयपुर, अजमेर एवं नागौर की सीमा बनाती है।यहां पर म्यूजियम सॉल्ट की स्थापना की गई जिसे पर्यटन के क्षेत्र में रामसर साइट के नाम से पुकारा जाता है। सांभर झील से नमक प्राप्त करने के लिए केंद्र सरकार ने हिंदुस्तान सांभर साल्ट लिमिटेड नामक कारखाने की स्थापना 1964 में की थी। सांभर झील के लिए नमक समझौता 1869 में किया था। रियासत काल में सांभर झील के नमक पर जयपुर और जोधपुर रियासतों का साझा अधिकार था।  सांभर झील में नमक क्यारी पद्धति से बनाया जाता है। सन 1990 में सांभर झील को रामसर साइट घोषित किया गया। 

 पचपदरा झील:-इस झील का निर्माण पंचा नामक भील द्वारा दलदल को सुखा कर करवाया गया था। यहाँ खारवाल जाति के लोग मोरली झाड़ी की टहनियाँ का उपयोग नमक के स्फटिक बनाने में करते हैं। यहाँ उत्तम किस्म का नमक तैयार होता है जिसमें 98 प्रतिशत तक सोडियम क्लोराइड(NaCl) की मात्रा पाई जाती है। पचपदरा जिला बाड़मेर के बालोतरा क्षेत्र में स्थित है। पचपदरा झील राजस्थान की नहीं बल्कि भारत की भी सबसे खारी झील है। 

डीडवाना झील :-नागौर जिले में डीडवाना नगर के निकट स्थित है। यहाँ निजी क्षेत्र में नमक बनाने वाली संस्थाओं को देवल कहा जाता है। यहाँ राज्य सरकार का उपक्रम राजस्थान स्टेट कैमिकल वर्क्स स्थापित है। डीडवाना मध्यकालीन मुगल साम्राज्य में एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र रहा है जिसका कारण यहां प्रसिद्ध नमक की झील है जिससे नमक तैयार कर पूरे भारत में भेजा जाता रहा है। इस झील के नमक का उपयोग चमड़ा उद्योग, कांच उद्योग एवं कागज उद्योग में किया जाता है। यहां निजी संस्थाओं (जिन्हें देवल कहते हैं) के द्वारा सर्वाधिक नमक उत्पादन किया जाता है। डीडवाना झील से प्राप्त नमक में सर्वाधिक फ्लोराइड पाया जाता है, इसलिए यह नमक खाने के योग्य नहीं है। 

लूणकरणसर झील, बीकानेर :-लूणकरणसर झील उत्तरी राजस्थान की एकमात्र खारे पानी की झील है। यह झील बीकानेर जिले के लूणकरणसर कस्बे में स्थित है, यहां से कम मात्रा में नमक उत्पादन होता है।  लूणकरणसर झील एक प्लाया झील है जो अपस्फीति से बनी है। जब 16 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में राठोड इस एरिया में आए, उस समय यहाँ का शासक था और उसके अधीन 360 गाँव थे। इसी ने अपने नाम पर (तहसील सरदारशहर) बसाया था जिसे बाद में जाटों के पुरोहित पारीक ब्राह्मणों को दे दिया गया। 

राजस्थान की मीठे पानी की झीले
जयसमंद झील, उदयपुर:- यह भारत की दूसरी (गोविंद सागर झील प्रथम)  व राजस्थान की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। जयसमंद झील का प्राचीन नाम ढेबर झील है। जयसमंद झील का निर्माण जयसिंह ने गोमती नदी पर बांध बनाकर 1685 से 1691 की अवधि में करवाया था। जयसमंद झील में गोमती, झावरी व बागर नदियों का जल गिरता है। जयसमंद झील पर कुल 7 टापू है। जयसमंद झील पर स्थित टापू में से सबसे बड़े टापू का नाम बाबा का भांगड़ा तथा छोटे टापू का नाम प्यारी है। जयसमंद झील पर स्थित एक अन्य टापू जिसका नाम बाबा का मगरा पर आइसलैंड रिसोर्ट नामक होटल है। जयसमंद झील से दो नहरें श्यामपुरा नहर व भाट नहर निकाली गई है तथा इसके निकट 6 कलात्मक छतरियां व निकट पहाड़ी पर चित्रित हवामहल/रूठी रानी का महल स्थित है। 
राजसमंद झील:- राजसमंद झील का निर्माण अकाल राहत कार्यो के उद्देश्य से करवाया गया था।  राजसमंद झील का निर्माण गोमती नदी के पानी को रोककर किया गया था।  राजसमंद झील का निर्माण राजस्थान के राजसमंद जिले की कांकरोली नामक जगह पर करवाया गया था। इसका निर्माण सन् 1660 के दशक में मेवाड़ के राणा राज सिंह प्रथम ने करवाया था। यह 2.82 किलोमीटर (1.75 मील) चौड़ी, 6.4 किलोमीटर (4.0 मील) लम्बी और 18 मीटर (59 फीट) गहरी है। इसे गोमती नदी, केलवा नदी और ताली नदी पर बनवाया गया था और इसका जलसम्भर क्षेत्र 510 वर्ग किलोमीटर (200 वर्ग मील) है।

पिछोला झील :-उदयपुर के पश्चिम में पिछोली गांव के निकट इस झील का निर्माण राणा लखा के काल (14 वीं शताब्दी के अंत) में पीछू चिड़िमार बंजारे ने करवाया था। महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने इस शहर की खोज के बाद इस झील का विस्तार कराया था। पिछू बंजारा ने इस कृत्रिम झील पिछोला को 1362 ईस्वी में महाराणा लाखा के समय में 30 फीट की गहराई वाली 3 मील लंबी पिछोला झील बनाया था। महाराणा उदय सिंह ने झील के आकर्षण को प्राप्त किया और इस झील के किनारों पर बांध का और विस्तार किया। पिछौला झील राजस्थान राज्य के उदयपुर शहर की सबसे प्रसिद्ध झील है और यह सबसे सुन्दरतम है। इसके बीच में जग मन्दिर और जग निवास महल हैं, जिनका प्रतिबिम्ब झील में पड़ता है।

फतेहसागर झील:- फतेहसागर एक सुंदर नाशपती फल के आकार की कृत्रिम झील है। इस झील का निर्माण सन् 1688 में उदयपुर के महाराणा जयसिंह ने कराया था।
1687 ई. में फतेहसागर झील का पुनः र्निमाण महाराणा फतेहसिंह के द्वारा करवाया गया था इसीलिए फतेहसागर झील को फतेहसागर झील कहते है। 

नक्की झील:- यहाँ मरणोपरांत महात्मा गांधी की राख का विसर्जन 12 फरवरी 1948 को हुआ था और गांधी घाट का निर्माण किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि नक्की झील उन देवताओं द्वारा बनाई गई थी जिन्होंने राक्षसों से बचने के लिए इस झील को अपने नाखूनों से खोदा था। इसलिए, इसे नक्की झील कहा जाता था। नक्की झील माउंट आबू का एक सुंदर पर्यटन स्थल है। मीठे पानी की यह झील, जो राजस्थान की सबसे ऊंची झील हैं यह राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित हैं । इसे स्थानीय रूप से नक्की झील के नाम से जाना जाता है और यह प्रकृति प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग है। यह सबसे ऊंची, सबसे गहरी, विवर्तनिकी झील है। यह झील राजस्थान में जमने वाली एकमात्र झील है। इस झील में दो चट्टानें हैं जिनकी आकृति टोड रॉक (मेंढक के समान) व नन रॉक (महिला के समान) जैसी है। नक्की झील के किनारे सनसेट का दृश्य निहारने के लिए पर्यटक माउंट आबू आते हैं। गरासिया जनजाति नक्की झील में अस्थियों का विसर्जन करती है। 

उदयसागर झील,:- उदयपुर उदयसागर झील का निर्माण महाराणा उदय सिंह द्वारा 1559 से 1564 ईस्वी की अवधि में करवाया था। आयड़ नदी उदयसागर झील में आकर गिरती है, इसके बाद में आगे इसे बेड़च नदी के नाम से जाना जाता है।

आनासागर झील :-अजमेर यह झील अजमेर जिले के नाग पहाड़ व तारागढ़ के बीच स्थित है।  आनासागर झील का निर्माण तुर्कों की सेना के संहार के बाद खून से रंगी धरती को साफ करने के लिए अर्णोराज ने 1137 में चंद्रा नदी के जल को रोककर करवाया था। आनासागर झील के किनारे जहांगीर ने दौलत बाग/शाही बाग का निर्माण करवाया, जिसे वर्तमान में सुभाष उद्यान के नाम से जाना जाता है। आनासागर झील के किनारे शाहजहां ने संगमरमर की पांच बारहदरी का निर्माण करवाया था।  इस झील में बांडी नदी का पानी आकर गिरता है।

पुष्कर झील :- पौराणिक मान्यता के अनुसार पुष्कर झील का निर्माण भगवान ब्रह्मा ने करवाया था। इसमें बावन स्नान घाट हैं। इन घाटों में वराह, ब्रह्म व गव घाट महत्त्वपूर्ण हैं। प्राचीनकाल से लोग यहाँ पर प्रतिवर्ष कार्तिक मास में एकत्रित हो भगवान ब्रह्मा की पूजा उपासना करते हैं। पुष्कर झील का इतिहास 4 वीं शताब्दी ईसा पूर्व से है। हालांकि पुष्कर झील का सृजन कृत्रिम झील के रूप में 12 वीं शताब्दी में शुरू हुआ था जब लूनी नदी के उपर बांध बनाया गया था। कहा जाता है कि गुरु गोविंद सिंह ने झील के किनारे गुरु ग्रंथ साहिब का पवित्र भाषण दिया था।राजस्थान का पुष्कर जगतपिता बृह्माजी के लिए प्रसिद्ध है।  दुनिया में हिन्दू मान्यता के अनुसार पांचवा तीर्थ भी पुष्कर को माना जाता है।  हरिद्वार की तरह ही पुष्‍कर भी हिन्‍दुओं का बड़ा तीर्थस्‍थल है। तीर्थों में सबसे बड़ा तीर्थ स्थल होने के कारण ही इसे तीर्थराज पुष्‍कर कहा जाता है। पुष्कर झील के पास कुल 52 घाट स्थित है। पुष्कर झील के पास स्थित 52 घाटों में से पहले घाट का निर्माण मंडोर के शासक नरहरि राव ने करवाया था। पुष्कर झील के पास स्थित 52 घाटों में से गौ घाट सबसे बड़ा घाट माना जाता है।

फॉयसागर झील:- अजमेर  फॉयसागर झील का निर्माण इंजीनियर फॉय के निर्देशन में अकाल राहत कार्य के तहत बांडी नदी पर बांध बनाकर करवाया था। इसमें अधिक जल भरने पर इसका पानी आनासागर झील में जाता है। अकाल राहत के लिए बनाई गई यह राजस्थान की दूसरी झील है। फॉयसागर झील राजस्थान के अजमेर ज़िले में स्थित एक झील है जिसका निर्माण अंग्रेज अभियंता फॉय के निर्देशन मेंबाढ़ 1891 1892 में राहत परियोजना के तहत हुआ था। इसका पानी आनासागर में आता है।

बालसमंद झील:- किनारे वनस्पति-उद्यान तथा पुरातत्व संग्रहालय भी दर्शनीय है। इस कृत्रिम झील का निर्माण 1159 में बालकराव परिहार द्वारा करवाया गया था।जोधपुर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर जोधपुर मंडोर रोड पर बालसमंद झील स्थित है।
 
सरदार समंद झील :- जोधपुर सरदार समंद झील का निर्माण महाराजा उम्मेद सिंह द्वारा करवाया गया था।

कायलाना झील :- जोधपुर  इस झील से जोधपुर शहर को पेयजल दिया जाता है। 
वर्तमान में इस झील में राजीव गांधी नहर का पानी आता है। शुरू में यह प्राकृतिक झील थी, वर्तमान स्वरूप सर प्रताप ने दिया था। इस झील के किनारे माचिया सफारी पार्क स्थित है। 
सिलीसेढ़ झील:-इस झील का निर्माण साल 1845 में अलवर शहर को पानी की आपूर्ति के लिए किया गया था। इस झील को महाराजा विनयसिंह ने बनवाया था। वहीं झील में एक शानदार झील महल है। जो महाराजा का सबसे प्रिय माना जाता था। 

मोती झील :- भरतपुर मोती झील का निर्माण रूपारेल नदी के पानी को रोककर करवाया गया। मोती झील को भरतपुर की लाइफ लाइन/जीवन रेखा भी कहते हैं।मोती झील में प्राप्त नील हरित शैवाल एन-2 से युक्त खाद प्राप्त होती है।

कोलायत झील :- बीकानेर कायलाना लेक। 1892 में सर प्रताप ने पूर्व शासक भीम सिंह व तख्त सिंह द्वारा निर्मित महल व बगीचों को ध्वस्त कर यह झील बनवाई थी। उन्होंने अपने देख रेख में स्वंय के निजी रुपयों से इसका निर्माण करवाया। यह एक प्राकृतिक झील है, यहां पर कपिल मुनि का आश्रम स्थित है। यहां पर कपिल मुनि का मेला प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को भरता है। यह झील राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-15 पर स्थित है, इसे शुष्क मरुस्थल का सुंदर उद्यान के नाम से भी जाना जाता है।

गजनेर पैलेस और झील :-1784 में बीकानेर के महाराजा गज सिंह जी ने गजनेर पैलेस की स्थापना की थी, और तब झील के किनारे बीकानेर के महान महाराज गंगा सिंह ने इसे पूरा किया। यह शाही परिवार के साथ ही अतिथियों के लिए शिकारगाह और आरामगाह था।

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