राजस्थान की पशु सम्पदा एवं उनकी प्रमुख नस्ल
शिक्षा डेस्क :- राजस्थान में 20 वीं पशुगणना:-20 वीं पशुगणना के अनुसार राजस्थान में कुल पशुधन 56.8 मिलियन(5.68 करोड़) है। जो कि 2012 की 57.7 मिलियन(5.77 करोड़) था। इस प्रकार 2019 में कुल पशुओं की संख्या में 1.66 प्रतिशत की कमी देखी गई है। राजस्थान 56.8 मिलियन पशुओं के साथ भारत में दूसरे स्थान पर है।पशु सम्पदा: -19वीं पशुगणना में पशु सम्पदा में राजस्थान में सर्वाधिक वृद्धि खच्चर (280.93%) व कुक्कुट (60.69%) में हुई। सर्वाधिक कमी :- ऊँट (-22.79%)
राज्य में सर्वाधिक संख्या वाला पशु :- बकरी (216.66 लाख) यहाँ पर पशुधन घनत्व 169 प्रति वर्ग किलोमीटर है। वर्तमान में प्रदेश में प्रति हजार जनसंख्या पर पशुओं की संख्या 842 हो गई है। राजस्थान में देश का 6.98% गौवंश, 11.94% भैंस वंश, 16.03% बकरी वंश, 13.95% भेड़ वंश तथा 81% ऊँट वंश उपलब्ध है।
वर्ष 2012 में वर्ष 2007 की तुलना में राज्य की पशु-सम्पदा में 10.69 लाख (1.89%) की वृद्धि हुई है। 2012 की पशुगणना के अनुसार राज्य में सर्वाधिक पशु बकरियाँ (37.53%) है।
◼️ गोवंश की दृष्टि से देश में पश्चिम बंगाल प्रथम स्थान रखता है , जबकि राजस्थान का छठा स्थान है । राजस्थान में सर्वाधिक गाय बीकानेर में सबसे न्यूनतम गाय धौलपुर में पाई जाती है । राजस्थान में - आयरशर , होल्सटीन, स्विस ब्राउन, जर्सी , रेड डेन आधी विदेशी नस्लें पाई जाती है ।
राठी गोवंश :- ▪️ यह राजस्थान की सर्वश्रेष्ठ गो नस्ल है जो सर्वाधिक दूध देती है इसलिए इसे राजस्थान की कामधेनु कहा जाता है । यह लाल सिंधी व साहिवाल गाय की मिश्रित नस्ल है। इसका प्रजनन केंद्र नोहर हनुमानगढ़ में , बीकानेर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित है । इस नस्ल की गोवंश मुख्यत - श्री गंगानगर हनुमानगढ़ बीकानेर में पाई जाती है ।
कांकरेज गोवंश :-▪️ इसकी मूल उत्पत्ति स्थल गुजरात का कच्छ का रण है। यह सबसे भारी नस्लें है। इसके सिंग बहुत मजबूत होते हैं । यह द्वि प्रयोजनीय नस्ल है। यह तेज दौड़ने वह बोझा ढोने के लिए प्रसिद्ध है । इसका प्रजनन केंद्र चौहटन बाड़मेर में स्थित है । यह नस्ल मुख्यत बाड़मेर जालौर क्षेत्र में पाई जाती है ।
नागौरी गोवंश :- इसका मूल स्थान नागौर का सुहालक प्रदेश है । यह मजबूत कद काठी की नस्ल है। इस नस्ल का बेल भार ढोने वह हल जोतने के लिए विश्व प्रसिद्ध है । इसका प्रजनन केंद्र नागौर में स्थित है।
हरियाणवी –चूरू, हनुमानगढ़, सीकर, झुन्झुनूं, जयपुर, अलवर (बहरोड़) आदि जिलों में। कान सबसे छोटे होते हैं। मस्तक पर एक छोटी हड्डी उभरी रहती है। पिछला भाग, अगले भाग से ऊँचा होता है। अगले स्तन पिछले स्तनों से बड़े होते हैं।
थारपारकर / मालाणी/ थारी गोवंश:- इसका मूल उत्पत्ति स्थान सिंध क्षेत्र व मालाणी गांव बाड़मेर है। इसका प्रजनन केंद्र बुलमदर फार्म चांदन गांव जैसलमेर व केंद्रीय पशु प्रजनन केंद्र सूरतगढ़ श्री गंगानगर में है। गाय की नस्ल पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्र व जैसलमेर में मुख्यतः पाई जाती है। इस नस्ल की गाय जैसलमेर बाड़मेर में मुख्यता पाई जाती है।
सांचौरी – जालौर की सांचौर तहसील में मिलती है। विदेशी नस्ले : जर्सी – अमेरिका (कम उम्र में दूध), हॉलस्टीन- हॉलैण्ड/नीदरलैण्ड (सर्वाधिक दूध), रेड डेन – डेनमार्क (दूध में दूसरे स्थान पर)।
गिर/ रेंडा/ अजमेरा गोवंश:- ▪️ इस नस्ल का मूल उत्पत्ति स्थान गुजरात के सौराष्ट्र का गिर वन है । यह दूध व बोझा ढोने हेतु प्रसिद्ध नस्ल है । इसे द्वीप प्रयोजना नस्लें भी कहते हैं । यह शरीर में मोटी होती है । इसका प्रजनन केंद्र डग झालावाड़ व रामसर अजमेर में स्थित है । यह मुख्यत , बांसवाड़ा डूंगरपुर उदयपुर में पाई जाती है ।
मेवाती/ काठी गोवंश:- इस का उत्पत्ति स्थान मेवात प्रदेश है । यह सबसे शक्तिशाली गाय की नस्ल है । जिसका प्रजनन केंद्र व राज्य का पहला सीमन बैंक बस्सी जयपुर में स्थित है
राजस्थान में भैंस वंश राज. में सर्वाधिक भैस पशुधन जयपुर, अलवर में तथा न्यूनतम जैसलमेंर में है। भैंसों की दृष्टि से राजस्थान का भारत के राज्यों में दूसरा स्थान है। सर्वाधिक भैंसे उत्तर प्रदेश में है। मुर्राह, मेहसाना, सूरती, जाफराबादी, नागपुरी, भदावरी हैं।
मुर्रा भैंस वंश :- ▪️ इसका मूल स्थान मोंटगोमरी मुल्तान पाकिस्तान में स्थित है । यह भैंस की सर्वश्रेष्ठ नस्ल है जिसके दूध में वसा की मात्रा 7 से 8% होती है । यह प्रतिदिन 20 से 25 लीटर दूध देती है । राज्य में इसी वंश के सर्वाधिक भैंस पाई जाती है । इसका प्रजनन केंद्र कुम्हेर भरतपुर , तथा डग झालावाड़ व नागौर में स्थित है । भैंस मुख्यत जयपुर अलवर भरतपुर जिले में पाई जाती है ।
सूरती:-सिरोही, उदयपुर, मूलतः गुजरात की।
भदावरी भैंस वंश: - इसका मूल उत्पत्ति स्थल उत्तर प्रदेश है । इस भैंस के दूध में सर्वाधिक वसा की मात्रा पाई जाती है । यह मुख्यत अलवर धौलपुर जिले में पाई जाती है ।
जाफराबादी भैंस मुलतः- काठियावाड़ (गुजरात) की नस्ल है। राजस्थान में जाफराबादी भैंस सर्वाधिक दक्षिणी राजस्थान (डूंगरपुर, उदयपुर, सिरोही, झालावाड़) में पायी जाती है। राजस्थान में सर्वाधिक दूध देने वाली भैंस जाफराबादी भैंस है। राजस्थान में सबसे भारी भैंस जाफराबादी भैंस मानी जाती है। जाफराबादी नस्ल की भैंसों की भी दूध देने की क्षमता काफी अधिक होती है। दावा किया जाता है कि ये भैंस इतनी ताकतवर होती है कि ये शेर से भी भिड़ सकती है। ये भैंस भी महीने भर में 1000 लीटर से ज्यादा दूध देने की क्षमता रखती है। पशुपालकों की सबसे पसंदीदा भैंस में सुर्ती नस्ल भी शामिल है।
सुरती भैंस वंश:- भैंस की यह नस्ल गुजरात के खेड़ा और बड़ौदा पायी जाती है। इसका रंग भूरे से सिल्वर सलेटी, काले या भूरे रंग का होता है। मध्यम आकार का नुकीला धड़, लंबा सिर और दराती के आकार की सींग होती है। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 900-1300 लीटर प्रति व्यात होती है, इसके दूध में वसा की मात्रा 8-12 प्रतिशत होती है।
राजस्थान प्रदेश में भेड़ वंश :- भेड़ वंश की दृष्टि से देश में तेलंगाना प्रथम स्थान रखता है , जबकि राजस्थान का चौथा स्थान है । राजस्थान में सर्वाधिक भेड़े बाड़मेर में पाई जाती है, जबकि न्यूनतम बेड़े बांसवाड़ा में पाई जाती है । भारत के कुल ऊन उत्पादन का उत्पादक राजस्थान में होता है तो सर्वाधिक उत्पादक जिले जोधपुर , बीकानेर है । न्यूनतम उन उत्पादक जिला झालावाड़ है । राजस्थान ऊन मिल बीकानेर में है । भेड़ प्रजनन फार्म फतेहपुर सीकर, बाकलिया नागौर , मैं है । राजस्थान में रूसी , मेरीनो , डॉरसेट, रेंबुले , केरिडेल , आधी विदेशी नस्ले की भेड़ पाई जाती है । राजस्थान में मुख्यत भीड़ूकी आठ प्रकार के नस्लें पाई जाती है ।
नाली –गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, चूरू जिलों में। ऊन- मध्यम श्रेणी की सबसे लम्बी ऊन (12-14 cm) अधिक ऊन के लिए प्रसिद्ध। गलीचे के लिए प्रयोग की जाती है।
चोकला भेड़ / शेखावाटी:- यह भेड़ की सर्वश्रेष्ठ नस्लें है। इसकी ऊन सबसे अच्छी होती है । इसका प्रजनन एवं अनुसंधान केंद्र कोडमदेसर बीकानेर में है । यह मुख्यत शेखावाटी प्रदेश में पाई जाती है ।
सोनाड़ी (चनोथर):- उदयपुर, कोटा संभाग, डूंगरपुर, चितौड़, बांसवाड़ा, भीलवाड़ा। कान व पूंछ लम्बे। कान चरते समय जमीन को छूते हैं। ऊन साधारण। विदेशी नस्लें रूसी मेरिनो (रूस), डोसेंट (डेनमार्ग), रेम्बुले (फ्रांस)।
मारवाड़ी भेड़ वंश:- राजस्थान में सर्वाधिक भेड़ इसे नस्ल की पाई जाती है । इनमें सर्वाधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता पाई जाती है। यह लंबी दूरी तय करती है ।अनुसंधान केंद्र जोधपुर में है । यह मुख्यत नागौर, पाली, जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर में पाई जाती है ।
पुंगल भेड़ वंश:- यह राजस्थान के बीकानेर जिले के पुगल तहसील की मूल निवासी है। इसका चेहरा काला, हल्के भूरे रंग के जबड़े, नलीदार और छोटे कान, छोटी और पतली पूंछ और कम घनी सफेद ऊन होती है। इसका औसतन दूध उत्पादन 300-500 ग्राम / दिन है। नर भेड़ का वजन 32 किलोग्राम और मादा भेड़ का वजन लगभग 27 किलोग्राम होता है।
बागड़ी भेड़ वंश :- इसका रंग 75 % काला होता है। यह मुख्यत अलवर में पाई जाती है।
मालपुरी भेड़ वंश:- राजस्थान में मालपुरा भेड़ सर्वाधिक टोंक, सवाई माधोपुर तथा जयपुर जिलों में पायी जाती है। राजस्थान में पूगल भेड़ सर्वाधिक जैसलमेर, बीकानेर तथा नागौर जिलों में पायी जाती है। इसकी उन मोटी होती है जो गलीचे के लिए उपयुक्त होती है । इसका अनुसंधान केंद्र जयपुर में।
जैसलमेरी भेड़ वंश :- यह भेड़ सबसे लंबी व सर्वाधिक ऊन देती है जो कि गलीचा हेतु उपयुक्त है। यह पश्चिमी सीमांत क्षेत्रों में पाई जाती है। इसका अनुसंधान केंद्र पोकरण जैसलमेर में मंडोर जोधपुर में स्थित है। यह मुख्यतः जैसलमेर एवं जोधपुर में पाई जाती है।
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