महाजनपद एवं राजधानी महत्वपूर्ण उल्लेख।

शिक्षा डेस्क : - भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई. पू. को एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना जाता है| इस काल को प्रायः आरंभिक राज्यो, नगरों, लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है| बौद्ध और जैन धर्म के आरंभिक ग्रन्थों में महाजनपद नाम से 16 राज्यो का उल्लेख मिलता है| यद्यपि महाजनपदों के नाम की सूचि इन ग्रन्थों में एकसमान नहीं लेकिन वज्जि, मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गान्धार और अवन्ति जैसे नाम प्रायः मिलते है ।

बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तरनिकाय में 16 महाजनपदों का उल्लेख है, बौद्ध ग्रन्थ महावस्तु तथा जैन ग्रन्थ भगवतीसूत्र में भी 16 महाजनपदों की सुचना मिलती है, किन्तु महावस्तु में गान्धार और कम्बोज के बदले पंजाब में शिवा तथा मध्य भारत में दर्शन का उल्लेख है| उसी तरह भगवती सूत्र में बंग एवं मलय जनपदों का उल्लेख है| चुल्लनिध्देश में 16 महाजनपदों का उल्लेख है| इसमें कम्बोज की जगह कलिंग तथा गांधार की जगह योन का उल्लेख है ।

अवन्ति : - इसकी पहचान मध्य प्रदेश के आधुनिक मालवा क्षेत्र से की जा सकती है | विन्ध्य पर्वत श्रृंखला इसे 2  भाग में विभाजित करती थी ― उत्तरी अवन्ति और दक्षिणी अवन्ति | उत्तरी अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी और दक्षिणी अवन्ति की राजधानी माहिष्मति (आधुनिक माहेश्वर) थी | ये  दोनों राजधानियां उत्तर भारत के एक ओर दक्कन से और पश्चिमी समुद्री तट के बंदरगाहों से जोड़ने वाले व्यापारिक मार्ग पर स्थित होने के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण थीं | प्राचीन काल में यहाँ हैहय वंश का शासन था | प्रद्योत यहाँ का प्रतापी शासक हुआ ।

काशी :- काशी महाजनपद का राजा ब्रह्मदत्त था। काशी की राजधानी वाराणसी थी। काशी के निकट कौशल महाजनपद था जिसका राजा दीक्षित था। कौशल और काशी में पड़ोसी राज्य होने के कारण लड़ते रहते थे। एक बार युद्ध में राजा ब्रह्मदत्त ने राजा दीक्षित को पराजित कर दिया और कौशल को अपने राज्य में मिला लिया। अंततः कई बरसों के बाद कंस नामक राजा ने पूरी सत्ता पलट दी और काशी कौशल में मिला लिया। 

 मगध:- मगध महाजनपद का प्रथम व अन्तिम राजा बृहद्रथ के नाम का था। मगध की प्रारंभिक राजधानी गिरीव्रज एवं राजगृह थी। (पटना और गया वाला क्षेत्र)  बिंबिसार  और अजातशत्रु ने मगध साम्राज्य का विस्तार कर इसे इतना शक्तिशाली बना दिया है कि एक दूसरे के सभी पड़ोसी राज्य इसी में विलीन हो गए । सर्वप्रथम काशी, कौशल और अंग को अपने राज्य में मिलाया था। अजातशत्रु ने अपने शासनकाल में राजधानी राजगृह में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन महाकश्यप की अध्यक्षता में  करवाया था। इसमें बौद्ध  की शिक्षाओं का संकलन हुआ। इसमें गौतम बुद्ध के प्रमुख शिष्य आनंंद  मोपाली भी मौजूद थे। यह बौद्ध संगति बौद्ध की मृत्यु के तुरंत बाद आयोजित की गयी थी।

अश्मक या अस्सक : - पाणिनि की “अष्टाध्यायी” ,मार्कण्डेय पुराण ,बृहत् संहिता व कई यूनानी स्रोतों के अनुसार अश्मक का राज्य उत्तर-पश्चिमी भारत में था |  जबकि बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार यह नर्मदा और गोदावरी नदियों के बीच स्थित था और  दक्षिण भारत का एकमात्र महाजनपद था | इस प्रदेश की राजधानी पोटन (जिसे आधुनिक बोधन से चिन्हित किया जा सकता है) थी। इस राज्य के राजा इक्ष्वाकुवंश के थे। इसका अवन्ति के साथ निरंतर संघर्ष चलता रहता था और अंततः  यह राज्य अवन्ति के अधीन हो गया।

अंग :- यह मगध के पूरब में , बिहार के वर्तमान   मुंगेर और भागलपुर जिले के आसपास का क्षेत्र था | यह चम्पा नदी (आधुनिक चन्दन नदी ) द्वारा मगध से अलग होता था | इसकी राजधानी भी  चंपा ही  थी जिसे पहले मालिनी नाम से भी जाना जाता था । चंपा उस समय भारत के सबसे प्रसिद्ध  नगरों  में से एक थी। अंग का मगध के साथ हमेशा संघर्ष होता रहता था और अंत में मगध ने इस राज्य को पराजित कर अपने में मिला लिया| महाभारत का प्रसिद्द राजा कर्ण इस अंग देश का ही राजा था | दीर्घ निकाय के अनुसार महागोविंद ने इस नगर की निर्माण योजना बनाई थी | बिंबिसार ने अंग के शासक ब्रह्मदत्त को हराकर इस राज्य को मगध साम्राज्य में समाहित कर लिया | तत्पश्चात अजातशत्रु को अंग का उप राजा नियुक्त किया गया 

 कंबोज:- गांधार  के पास ही कंबोज महाजनपद था । कंबोज महाजनपद का विस्तार कश्मीर से हिंदू कुश पर्वत तक था। इसकी राजधानी द्वारका थी। इसके दो प्रमुख नगर थे - राजपुर और नंदीपुर राजपुर को वर्तमान समय में राजौरी कहा जाता है। पाकिस्तान का हजारा जिला कंबोज के अंतर्गत ही आता है।

 गांधार :- गांधार महाजनपद की राजधानी तक्षशिला थी। वर्तमान कश्मीर और तक्षशिला इसके मुख्य केंद्र थे।  विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय का निर्माण तक्षशिला में ही किया गया था। जो इतिहास में तक्षशिला विश्वविद्यालय से विख्यात हुआ।

शूरसेन :- शूरसेन महाजनपद की राजधानी मथुरा में थी। बुध के समकालीन राजा प्रद्योत ने मथुरा के राजा शूरसेन की पुत्री से विवाह कर वैवाहिक संबंध स्थापित किए थे। और बाद में शूरसेन की पुत्री से उत्पन्न पुत्र मथुरा का राजा बनता है।

कम्बोज :- यह राज्य गांधार के पड़ोस में था. कश्मीर के कुछ भाग जैसे राजोरी और हजार जिले इसमें शामिल थे. संभवतः राजपुर या हाटक इसकी राजधानी थी। 

मत्स्य :- इस जनपद में आधुनिक राजस्थान राज्य के जयपुर और अलवर जिले शामिल थे।  विराट नगर संभवतः इसकी राजधानी थी। सम्भवतः यह जनपद कभी चेदि राज्य के अधीन रहा था। 

पांचाल  :-यह महाजनपद बरेली, बदायूं, फर्रुखाबाद ,आधुनिक रूहेलखंड के क्षेत्र में फैला था। पांचाल भी दो राजधानियों में विभाजित था ।  उत्तरी पांचाल - उत्तरी पांचाल की राजधानी अहिच्छल थी।

कुरु :- उत्तर वैदिक साहित्य में इस जनपद के पर्याप्त विवरण प्राप्त होते हैं।  इसके थानेश्वर (हरियाणा राज्य में) दिल्ली और मेरठ का क्षेत्र सम्मिलित थे।  इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ (हस्तिनापुर) थी। 

मल्ल :-  कुशीनारा मल्ल की राजधानी थी जो छठी शताब्दी ईसा पूर्व के सोलह महाजनपदों में से एक थी। तब से, यह मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्त, हर्ष और पाला राजवंशों के तत्कालीन साम्राज्यों का एक अभिन्न अंग बना रहा। मध्यकाल में, कुशीनगर कुल्टी राजाओं की अधीनता में पारित हुआ था। शुद्ध सांसी वंश) और मल्ला (मिश्रित वंश के लोग)। कुछ कृषक और मजदूर हैं, हालांकि कई अभी भी खानाबदोश हैं। वे पितृसत्तात्मक रूप से अपने वंश का पता लगाते हैं और जाट, एक किसान जाति के पारंपरिक पारिवारिक वंशावली के रूप में भी काम करते हैं। उनका धर्म सरल हिंदू धर्म है, लेकिन कुछ ने धर्मांतरण किया है। 

कुरु :– राजा कुरु का जन्म पुरु वंश की पच्चीस पीढ़ियों के बाद हुआ था, और उन्होंने कुरु वंश को जन्म दिया। पंद्रह और पीढ़ियों के बाद, पांडवों और कौरवों का जन्म हुआ। इन्द्रप्रस्थ कुरु (संस्कृत: कुरु) उत्तरी लौह युग भारत में एक वैदिक इंडो-आर्यन आदिवासी संघ था, जिसमें हरियाणा, दिल्ली के आधुनिक राज्यों के कुछ हिस्सों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों को शामिल किया गया था, जो मध्य वैदिक काल (सी) में दिखाई दिया था। 

वत्स :-  काशी के पश्चिम भाग में प्रयाग के आसपास क्षेत्र में यह जनपद स्थित था। कौशाम्बी इसकी राजधानी थी। बुद्ध के समय में इसका शासक उदयन था। 

चेदि  :-  यह महाजनपद यमुना नदी के किनारे स्थित था। यह आधुनिक बुन्देलखंड के पूर्वी भाग और उसके समीपवर्ती भूखंड में फैला हुआ था। महाभारत के अनुसार “शुक्तिमती” इसकी राजधानी थी लेकिन “चेतियजातक” के अनुसार “सोत्थिवती” इसकी राजधानी थी। महाभारत के अनुसार शिशुपाल यहीं का शासक था। 

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