राजस्थान के प्रमुख पशु मेले का आयोजन महत्वपूर्ण जानकारी।
पशु प्रजनन व अनुसंधान केन्द्रकेन्द्र सरकार :- पशुमाता उन्मूलन योजना – पशुओं मे संक्रामक रोकथाम हेतु 1958-59 में यह योजना राजस्थान में शुरू की गई। केद्रीय पशु प्रजनन फार्म – सूरतगढ़ (गंगानगर) -1956 में। केन्द्रीय भेड़ प्रजनन व ऊन अनुसंधान केन्द्र – अविकानगर (टोंक)। इसका एक उपकेन्द्र है मरू क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र बीछवाल, बीकानेर। केन्द्रीय ऊंट प्रजनन व अनुसंधान केन्द्र – जोडबीर, शिवबाड़ी-बीकानेर। इसकी स्थापना 5 जुलाई, 1984 को हुई। पश्चिम क्षेत्रीय बकरी अनुसंधान केन्द्र – अविकानगर (टोंक)। स्थापना – 1986 में। भारतीय पशुपालन विकास एवं अनुसंधान लि. 2010 में बनीपार्क, जयपुर में स्थापित किया गया। केन्द्रीय अश्व प्रजनन व अनुसंधान केन्द्र – जोडबीर, शिवबाड़ी-बीकानेर। राज्य सरकार :-राज्य सरकार का पहला पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर में खोला गया।
मल्लीनाथ पशु मेला⟶ यह पशु मेला तिलवाडा (बाड़मेर) में लगता है । यह मेला चेत्र कृष्ण 11 से चैत्र शुक्ल 11 को लगता हैं । वि.सं. 1431 को प्रारम्भ। सबसे प्राचीन मेला, राजस्थान सरकार के पशु पालन विभाग द्वारा पहली बार 1957 में राज्य स्तरीय दर्जा।
बलदेव पशु मेला- बलदेव राम मिर्धा की स्मृति में। मेड़ता सिटी (नागौर) में 1947 से प्रारम्भ। राज्य सरकार द्वारा 1957 से। यह चैत्र शुक्ला प्रतिपाद से चैत्र पूर्णिमा (15 दिन) तक। यह पशु मेला मेड़ता सिटी में चैत्र सुदी १ से चैत्र सुदी 15 तक आयोजित होता है। इस मेले में अधिकांशतः नागौरी बैलों की बिक्री होती है। यह पशु मेला प्रसिद्ध किसान नेता श्री बलदेव राम जी मिर्धा की स्मृति में अप्रैल 1947 से राज्य का पशुपालन विभाग द्वारा संचालित किया जा रहा है।
झालावाड़ पशु मेला :- इस मेले का आयोजन झालावाड़ के पास झालापाटन में किया जाता है इस मेले में गाय बेल भैस ऊँट की बिक्री बड़े पैमाने पर होती है इसका आयोजन कार्तिक माह में किया जाता है।
गोमती सागर पशुमेला – झालरापाटन में, 1959 से राज्य सरकार द्वारा प्रारम्भ। यह वैशाख शुक्ला 13 से ज्येष्ठ कृष्ण 5 तक (8 दिन)। झालावाड़ जिले के झालरापाटन कस्बे में यह पशु मेला प्रतिवर्ष वैशाख सुदी तेरस से ज्येष्ठ बुदी पंचम तल गोमती सागर की पवित्रता पर बढ़ता है यह पशु मेला हाड़ौती अंचल का सबसे बड़ा एवं प्रसिद्ध मेला है। पशुपालन विभाग मई 1959 से इस पशु मेले को आयोजित कर रहा है।
तेजाजी पशु मेला:- आय की दृष्टि से राज्य का सबसे बड़ा मेला।परबतसर (नागौर) में वि.सं. 1791 में महाराजा अजीत सिंह द्वारा प्रारम्भ। 1957 से राज्य सरकार द्वारा प्रारम्भ। यह श्रावण पूर्णिमा से भाद्रपद पूर्णिमा (1 माह) तक।
गोगाजी पशु मेला :- गोगामेड़ी राजस्थान के पांच पीरों में से एक वीर तथा लोक देवता गोगा जी का समाधि स्थल है यह वर्तमान में हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में है यहां प्रतिवर्ष श्रावण सुदी पूनम से भादवा सुदी पूनम तक पशु मेले का आयोजन होता है इस मेले के संचालन का काम पशुपालन विभाग द्वारा अगस्त 1959 से हो रहा है।
महाशिव रात्रि पशु मेला (माल मेला) – करौली में 1959 से प्रारम्भ यह फाल्गुन कृष्ण 5 से फाल्गुन कृष्णा 14 तक लगता है। करौली जिले में भरने वाला यह पशु मेला राज्य स्तरीय पशु मेलों में से एक है। इस पशु मेले का आयोजन प्रतिवर्ष फाल्गुन कृष्णा में किया जाता है। महाशिवरात्रि के पर्व पर आयोजित होने से इस पशु मेले का नाम शिवरात्रि पशु मेला पड़ गया है। इस मेले के आयोजन का प्रारंभ रियासत काल में हुआ था।
रामदेव पशु मेला: - महाराजा उम्मेद सिंह ने 1958 में प्रारम्भ किया। यह नागौर (मानासरगांव) में माघ शुक्ला 1 से माघ पूर्णिमा (15 दिन) तक।
चन्द्रभागा पशु मेला:- झालरापाटन में 1958 से प्रारम्भ। कार्तिक शुक्ला 11 से मार्ग शीर्ष कृष्णा 5 तक।
आमेट का पशु मेला:- यह मेला आमेट ( राजसमंद ) में लगता है। कार्तिक पशु मेला⟶ यह पशु मेला पुष्कर ( अजमेर ) में लगता है । यह मेला कार्तिक शुक्ल 5 से मार्गशीर्ष 2 तक लगता है । पुष्कर पशु मेला ⟶यह पशु मेला पुष्कर ( अजमेर) में लगता है।
रघुनाथपुर पशु मेला:-10 वर्ष पूर्व हजारों की तादाद में आते थे पशु व पशुपालक : गुजरात राज्य से मात्र 12 किलोमीटर दुर माखुपुरा स्थित बाबा रघुनाथपुरी पशु मेला राजस्थान राज्य के पश्चिमोत्तर का एक विराट पशु मेला हुआ करता था। लेकिन अभी इसमें प्रशासन के द्वारा कोई रूचि नही दिखाई जा रही है। सिर्फ औपचारिकता के आधार पर मेले का आयोजन किया जा रहा है।
पशु विकास से सम्बन्धित योजनाएँ :- गोपाल योजना- पशु नस्ल सुधार के लिए 2 अक्टूबर, 1990 से 10 जिलों में प्रारम्भ की थी। राज. के द.पू. जिलो में संचालित। चयनित ग्रामीण युवक जो दसवीं पास हो गोपाल कहलाता है। कामधेनु योजना- गौशालाओं के उन्नत नस्ल के पशु उपलब्ध कराने के लिए व कृत्रिम गर्भाधान के लिए। यह 1997-98 में, सभी गौशालाओं में प्रारम्भ। राष्ट्रीय गाय-भैंस परियोजना- गाय-भैंस में कृत्रिम गर्भाधान द्वारा नस्ल सुधार के लिए। यह 2001 में प्रारम्भ। पहले 20 जिलों में अब सभी जिलों में चल रही है। दस साल के लिए चलाई गई है।वेटनरी कॉलेज- पहला सरकारी वेटनरी कॉलेज 1954 में बीकानेर में खोला गया तथा निजी क्षेत्र का पहला वेटनरी कॉलेज अपोलो कॉलेज जयपुर में 2002 में प्रारम्भ।
दुग्ध उत्पादन (डेयरी) :- 1970-71 में डेयरी कार्यक्रम वर्गीज कुरियन आणन्द [आनन्द (गुजरात)] नामक स्थान पर अमूल (Amul) डेयरी की स्थापना से प्रारम्भ किया गया। इसे श्वेत क्रांति की शुरूआत कहा जाता है। वर्गीज कुरियन को श्वेत क्रांति का जनक कहा जाता है। इस कार्यक्रम की सफलता को देखकर राजस्थान सहित 10 राज्यों में ’Operation Flood’ शुरू किया गया। इसके तीन चरण थे- (i) 1971 से 1978 तक (ii) 1978 से 1986 तक (iii) 1986 से 1994 तक।वर्तमान में डेयरी विकास कार्यक्रम का संस्थागत ढांचा त्रिस्तरीय है।
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