मौर्य साम्राज्य के बाद कौनसा शासक आया था और उसके प्रमुख शासक।

 

शिक्षा डेस्क : -वैसे तो भारत वीर और महान राजाओं, जिनकी वीरता और महानता इतिहास आज भी कह रहा है, की ही भूमि है लेकिन कभी कभी कुछ मामले ऐसे हो जाते हैं जिन्हें हम अपवाद कहने लगते हैं। ऐसे ही एक महाप्रतापी राजा हुए हैं जिनका नाम है पुष्यमित्र शुंग। आपको बता दें कि शुंग वंश की शुरुआत पुष्यमित्र शुंग से ही होती है। वह जन्मना ब्राह्मण और कर्मणा क्षत्रीय थे। क्यों पुष्यमित्र शुंग को मौर्य साम्राज्य का खात्मा करना पड़ा। 

जब भारत में चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन काल था तब ये कहानी आरम्भ होती है।  जैसा कि आपको मालूम ही होगा कि चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु स्वयं आचार्य चाणक्य थे।  आचार्य ने हमेशा ही राष्ट्रवाद को आगे ले जाने का मार्ग सबके लिए प्रशस्त किया।  लेकिन जब आचार्य चाणक्य की मृत्यु हुई तो चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म अपना लिया और उसके प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दिया। 

शुंग कौन थे? :-अंतिम मौर्य सम्राट ब्रहद्रथ की हत्या करके पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य साम्राज्य को समाप्त किया और एक नए वंश की नीवं रखी। यह नया वंश शुंग वंश के नाम से जाना जाता है। यह कहा जाता है कि जब ब्रहद्रथ अपनी सेना का निरीक्षण कर रहा था तब उसके सेनापति पुष्यमित्र ने उसकि वध कर शासन की बागडोर अपने हाथ मे ले ली थी। शुंग की इस कार्यवाही को " ब्राह्मण-पुनः स्थापन-काल" के नाम से जाना जाता है। तात्कालिक स्थिति मे विदेशी आक्रमणकाणों से सुरक्षा के लिए एक शक्तिशाली शासक की आवश्यकता थी, जिसे पुष्यमित्र ने पूरा किया।

शूंग वंश की उत्पत्ति:-पुष्यमित्र के खानदान के बारे मे विद्वानों मे मतभेद है। कालिदास " मालविकाग्निमित्रम् " से पता चलता है कि शुंग बैम्बिक वंश के थे। पुराणों मे और " हर्षचरित " मे पुष्यमित्र को शुंगवंशी बतलाया गया है। पाणिनि मे शुंगों तथा ब्राह्मण कुल के भरहूत के एक अभिलेख से यह पता चलता है कि दो तोरणद्वार शुंगो के शासनकाल मे बने थे। तारानाथ ने पुष्यमित्र को स्पष्ट रूप से ब्राह्मण राजा कहा है। अधिकतर विद्वानों ने पुष्यमित्र को शुंग उद्गम का माना है। " बृहद् आरण्यक उपनिषद " मे भी शुंगों को अध्यापक कहा गया है परन्तु उन्होंने कदंबों की तरह लेखनी छोड़कर तलवार क्यों हाथ मे ली, इसके बारे मे कोई सुनिश्चित मत नही है।

शुंग वंश – राज्य विस्तार और शासन:-“मालविकाग्निमित्र”, “दिव्यावदान” व तारानाथ के अनुसार पुष्यमित्र का राज्य नर्मदा तक फैला हुआ था।  पाटलिपुत्र अयोध्या और विदिशा उसके राज्य के मुख्य नगर थे।  विदिशा में पुष्यमित्र ने अपने पुत्र अग्निमित्र को अपना प्रतिनिधि शासक नियुक्त किया। अयोध्या के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ किये।  वहाँ उसने धनदेव नामक व्यक्ति को शासक नियुक्त किया। नर्मदा नदी के तट पर अग्निमित्र की महादेवी धारिणी का भाई वीरसेन सीमा के दुर्ग का रक्षक नियुक्त किया गया था। 

यूनानियों का आक्रमण :-पतंजली के महाभाष्य से दो बातों का हमें पता चलता है पतंजलि ने स्वयं पुष्यमित्र के लिए अश्वमेध यज्ञ कराये। उस समय एक आक्रमण में यूनानियों ने चित्तौड़ के निकट मध्यमिका नगरी और अवध में साकेत का घेरा डाला, किन्तु पुष्यमित्र ने उन्हें पराजित किया। “गार्गी संहिता” के युगपुराण में भी लिखा है कि दुष्य, पराक्रमी यवनों ने साकेत, पंचाल और मथुरा को जीत लिया। संभवतः यह आक्रमण उस समय हुआ जब पुष्यमित्र मौर्य राजा का सेनापति था। संभव है कि इस युद्ध में विजयी होकर ही पुष्यमित्र बृहद्रथ को मारकर राजा बना हो। कालिदास ने यूनानियों के एक दूसरे आक्रमण का वर्णन अपने नाटक “मालविकाग्निमित्र” में किया है।  यह युद्ध संभवतः पंजाब में सिंध नदी के तट पर हुआ और पुष्यमित्र के पोते और अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने इस युद्ध में यूनानियों को हराया।  शायद यह युद्ध इस कारण हुआ हुआ हो कि यूनानियों ने अश्वमेध के घोड़े को पकड़ लिया हो।  सभवतः यह यूनानी आक्रमणकारी, जिसने पुष्यमित्र के समय में आक्रमण किया, डिमेट्रियस था।  इस प्रकार हम देखते हैं कि पुष्यमित्र ने यूनानियों से कुछ समय के लिए भारत की रक्षा की।  यूनानियों को पराजित करके ही संभवतः पुष्यमित्र ने वे अश्वमेध यज्ञ किये जिनका उल्लेख घनदेव के अयोध्या अभिलेख में है। 

पुष्यमित्र की धार्मिक नीति:-बौद्ध धर्म-ग्रन्थों में लिखा है कि पुष्यमित्र ब्राह्मण धर्म का कट्टर समर्थक था। उसने बौद्धों के साथ अत्याचार किया। उसने पाटलिपुत्र के प्रसिद्ध बैद्ध मठ कुक्कुटाराम को, जिसे अशोक ने बनवाया था, नष्ट करने की योजना बनाई। उसने पूर्वी पंजाब में शाकल के बौद्ध केंद्र को भी नष्ट करने का प्रयत्न किया। “दिव्यावदान” में लिखा है कि उसने प्रत्येक बौद्ध भिक्षु के सिर के लिए 100 दीनार देने की घोषणा की। परन्तु यह वृत्तान्त ठीक नहीं प्रतीत होता। भारहुत के अभिलेख से ज्ञात होता है कि इस समय बहुत-से दानियों ने तोरण आदि के लिए स्वेच्छा से दान दिया। यदि पुष्यमित्र की नीति बौद्धों पर सख्ती करने की होती तो वह अवश्य विदिशा के राज्यपाल को आज्ञा देता कि वह बौद्धों को इमारतें बनाने की आज्ञा न दे। संभव है कि कुछ बौद्धों ने पुष्यमित्र का विरोध किया हो और राजनीतिक कारणों से पुष्यमित्र उनके साथ सख्ती का बर्ताव किया है। 

पुष्यमित्र के उत्तराधिकारी:-पुराणों में पुष्यमित्र के बाद नौ अन्य शुंग राजाओं के नाम लिखे हैं। अग्निमित्र का नाम कुछ सिक्कों पर खुदा है जो रूहेलखंड में मिले हैं।  वसुमित्र का भी नाम “मालविकाग्निमित्र” में आता है।  संभवतः हेलियोडोरस के बेस-नगर के गरुड़ध्वज अभिलेख में भागवत नाम के राजा उल्लेख है। संभव है वह भी शुंग वंश का रहा हो। इस वंश का अंतिम राजा देवभूति था जिसे उसके अमात्य वसुदेव ने मारकर 75 ई.पू. के लगभग काण्व वंश की नींव डाली। 

 पुष्यमित्र शुंग (185-149 ईoपूo):- पुष्यमित्र, शुंग वंश के संस्थापक और शुंग साम्राज्य) के प्रथम राजा थे। शुंग वंश के संस्थापक बनने से पहले यह मौर्य साम्राज्य में सेनापति के पद पर कार्यरत थे। 185 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के अंतिम राजा ब्रह्मद्रथ की हत्या कर इन्होंने स्वयं को राजा घोषित कर दिया। इसके बाद अश्वमेध यज्ञ शुरू हुआ, संपूर्ण उत्तर भारत पर इनका अधिकार हो गया। इनके राज्य से संबंधित शिलालेख पंजाब और जालंधर में मिले हैं। इन्होंने सनातन संस्कृति को पुनः जीवित किया था। बौद्ध धर्म को खत्म करके इन्होंने भारत में पुनः वैदिक धर्म की स्थापना की थी।

अग्निमित्र (149-141 ईपू):- शुंग वंश के द्वितीय सम्राट थे जो 149 ईसा पूर्व सिंहासन पर बैठे। मालविकाग्निमित्रम् में कालिदास ने इसको अपने नाटक का पात्र बनाया है, जिससे प्रतीत होता है कि कालिदास का काल इसके ही काल के समीप रहा होगा।

 वसुज्येष्ठ शुंग (141-131 ईसा पूर्व):- शुंग वंश  के तीसरे राजा वसुज्येष्ठ शुंग थे। इन्होंने राजा के रूप में 10 वर्षों तक राज्य किया था। इनके इतिहास से संबंधित अधिक ऐतिहासिक तथ्य मौजूद नहीं है, अतः स्पष्ट रूप से इनके कार्यकाल और इनके इतिहास के बारे में बता पाना मुश्किल है।

वसुमित्र (131-124 ईसा पूर्व):-वो अग्निमित्र से धारीणी के पुत्र थे और वसुजेष्ठ के सौतेले भाई थे शुंग वंश का चौथा राजा वसुमित्र हुआ। उसने यवनों को पराजित किया था। एक दिन नृत्य का आनन्द लेते समय मूजदेव नामक व्यक्‍ति ने उसकी हत्या कर दी। उसने 10 वर्षों तक शासन किया।

देवभूति प्राचीन भारत के शुंग राजवंश का राजा था। भगभद्र के बाद शुंग राजवंश की राजगद्दी पर बैठने वाला 8 वां शासक था। उसने 83 ईसा पूर्व 73 तक शासन किया। इसकी हत्या इसके ही सेनापति द्वारा की गयी।


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