नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय एवं उनसे जुड़ी महत्पूर्ण घटनाए।

 शिक्षा डेस्क : -सुभाष चंद्र बोस स्वतंत्रता सेनानी और एक मशहूर राजनेता थे भारत की आजादी में इनका योगदान अतुल्य रहा है I भारत को अंग्रेजों से आजाद करवाने के लिए उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना की थी I उन्होंने अपना पूरा जीवन देश को समर्पित किया था ऐसे में हम इस आर्टिकल में नेताजी सुभाष चंद्र के जीवन के प्रत्येक पहलुओं के बारे में चर्चा करेंगे, जैसे सुभाष चंद्र बोस की जीवन कहानी ,प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, परिवार, सुभाष चंद्र बोस जयंती, पुण्यतिथि, सुभाष चंद्र बोस के बारे में 10 लाइन ऐसे तमाम चीजों के बारे में अगर आपको कोई भी जानकारी नहीं है तो हम आपसे निवेदन करेंगे कि हमारे साथ आर्टिकल पर आखिर तक बने रहें चलिए शुरू करते हैं –

जन्म : नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्‍म 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कुट्टक गांव में जानकी नाथ बोस और श्रीमती प्रभावती देवी के घर में हुआ था। साल 1934 में सुभाष चंद्र बोस अपने इलाज के लिए ऑस्ट्रिया गए हुए थे। वहां उनकी मुलाकात एक ऑस्ट्रियन महिला एमिली शेंकल से हुई। दोनों के बीच प्यार हो गया। 1942 में सुभाष चंद्र बोस और एमिली शेंकल ने हिन्दू रीति-रिवाज से शादी कर ली। उसी साल एमिली शेंकल ने एक बेटी को जन्म दिया। जिसका नाम अनिता बोस रखा गया।

सुभाष चंद्र बोस एक प्रतिभाशाली छात्र थे। उन्होंने बी.ए. कोलकाता में प्रेसिडेंसी कॉलेज से दर्शनशास्त्र में किया था। वे स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से गहरे प्रभावित और एक छात्र के रूप में देशभक्ति के लिए जाने जाते थे, एक ऐसी घटना में जहां बोस ने अपने नस्लवादी टिप्पणी के लिए अपने प्रोफेसर (ई.एफ. ओटेन) की पिटाई की, उस घटना ने सरकार की नजर में विद्रोही भारतीय के रूप में कुख्यात किया। उनके पिता चाहते थे कि नेताजी एक सिविल सेवक बने और इसलिए उन्हें भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में बैठने के लिए इंग्लैंड भेजा, बॉस को अंग्रेजी में उच्चतम अंकों के साथ चौथे स्थान पर रखा गया था लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए उनका आग्रह तीव्र था और अप्रैल 1921 में, बॉस को प्रिंस ऑफ वेल्स की भारत यात्रा को चिह्नित करने के लिए समारोह के बहिष्कार के आयोजन के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था।

राजनीतिक जीवन:-भारत वापस आने के बाद नेता जी गांधीजी के संपर्क में आए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए।  गांधी जी के निर्देशानुसार उन्होंने देशबंधु चितरंजन दास के साथ काम करना शुरू किया।  उन्होंने बाद में चितरंजन दास को अपना राजनैतिक गुरु बताया था।  अपनी सूझ-बूझ और मेहनत से सुभाष बहुत जल्द ही कांग्रेस के मुख्य नेताओं में शामिल हो गए।  1928 में जब साइमन कमीशन आया तब कांग्रेस ने इसका विरोध किया और काले झंडे दिखाए।  1928 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कोलकाता में हुआ।  इस अधिवेशन में अंग्रेज सरकार को डोमिनियन स्टेटस देने के लिए एक साल का वक्त दिया गया।  उस दौरान गांधी जी पूर्ण स्वराज की मांग से सहमत नहीं थे।  वहीं सुभाष को और जवाहर लाल नेहरू को पूर्ण स्वराज की मांग से पीछे हटना मंजूर नहीं था।  1930 में उन्होंने इंडीपेंडेंस लीग का गठन किया।  सन 1930 के सिविल डिसओबिडेंस आन्दोलन के दौरान सुभाष को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।  गांधी जी-इरविन पैक्ट के बाद 1931 में उनकी रिहाई हुई।  सुभाष ने गाँधी-इरविन पैक्ट का विरोध किया और  सिविल डिसओबिडेंस आन्दोलन को रोकने के फैसले से भी वह खुश नहीं थे। 

विदेश यात्रा:-पेशावर से अफगानिस्तान के पहाड़ी रास्तों से होते हुए, वे आधी रात को पिस्कन से मायना गांव पहुंचे । पहाड़ी कबीली रास्तों की थकान, पैरों में पड़े छाले, सुन्न कर देने वाली हवा के थपेड़ों से होते हुए काबुल जा पहुंचे । वहां से वे मास्को, फिर बर्लिन जा पहुंचे । 8 जनवरी 1943 को वे जर्मन पनडुब्बी से जापान जा पहुंचे। वहां से 90 कि०मी० की लम्बी यात्रा तय कर वे मनीला, ताइपेई, हामारसत्सु होते हुए टोकियो जा पहुंचे । वहां वे जापानी प्रधानमन्त्री तोजो से जा मिले । नेताजी ने जापान में आजाद हिन्द फौज का हेड क्वाटर बनाया । जापान द्वारा इंग्लैण्ड के विरुद्ध युद्ध की घोषणा ने उन्हें उत्साहित किया । अंग्रेजों द्वारा जापानी सेना के सामने आत्मसमर्पण ने उनके आजादी के प्रयत्न को और मजबूत किया ।

इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना :- सन 1928 ईस्वी में जवाहरलाल नेहरू के पिताजी मोतीलाल नेहरू ने अपनी अध्यक्षता में गठित समिति का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया उसमें भारत के लिए डोमिनियन स्टेटस की मांग की गई थी। सुभाषचंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू ने उसका तीव्र विरोध किया और मांग की पूर्ण स्वतंत्रता के अतिरिक्त कुछ भी मान्य नहीं होगा।  इस लक्ष्य को स्वीकार कर आने के लिए सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू ने इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की। भारत के संविधान को पूर्ण स्वतंत्रता पर आधृत करने के लिए देशभर में आंदोलन छेड़ दिया। यद्यपि कोलकाता कांग्रेस में सुभाष चंद्र बोस को पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव स्वीकार कराने में सफलता नहीं मिली किंतु वे निराश नहीं हुए और अपने प्रयत्न में लगे रहे।

आजाद हिंद फौज का गठन:-द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, सितम्बर 1939, में सुभाष चन्द्र बोस ने एक जन आंदोलन आरंभ करने की योजना बनाई।  उन्होंने पुरे भारत के लोगों को इस आन्दोलन के लिए प्रोत्साहित किया और लोगों को इस आंदोलन से जोड़ना भी शुरू कर दिया।  इस आन्दोलन की शुरुवात की भनक लगते ही ब्रिटिश सरकार ने सुभाष चन्द्र बोस को जेल में डाल दिया। उन्होंने जेल में 2 हफ़्तों तक खाना तक नहीं खाया।  खाना ना खाने के कारण जब उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा तो हंगामे के डर से उन्हें घर में नज़रबंद कर के रखा गया। 

फॉरवर्ड ब्‍लॉक की स्‍थापना की स्थापना :- 1939 में महात्‍मा गांधी के उम्‍मीदवार सीतारमैया को हराकर एक बार फिर कांग्रेस के अध्‍यक्ष बने। बाद में उन्‍होंने फॉरवर्ड ब्‍लॉक की स्‍थापना की। 1940 में उन्‍हें नजरबंद कर दिया गया। 
आजाद हिन्द फौज की स्थापना : वे नौसेना की मदद से जापान पहुंचे और वहां पहुंचकर उन्‍होंने टोकियो रेडियो से भारतवासियों को संबोधित किया। 21 अक्‍टूबर, 1943 को उन्होंने आजाद हिन्‍द सरकार की स्‍थापना की और इसकी स्‍थापना अंडमान और निकोबार में की गई, जहां इसका 'शहीद और स्‍वराज' नाम रखा गया। 1944 में आजाद हिन्‍द फौज अराकान पहुंची और इम्फाल के पास जंग छिड़ी। फौज ने कोहिमा (इम्फाल) को अपने कब्‍जे में ले लिया।

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु –  आजाद हिंद फौज की हार से निराश, नेताजी ने सहायता मांगने के लिए रूस यात्रा करने की योजना बनाई। लेकिन 18 अगस्त 1945 को सुभाष चन्द्र बोस जी के विमान  का ताईवान में क्रेश हो गया, जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई। फिलहाल नेता जी की लाश नहीं मिली थी साथ ही उस दुर्घटना का कोई सबूत भी नहीं मिला था इसलिए सुभाष चन्द्र बोस की मौत आज भी विवाद का विषय है और भारतीय इतिहास में सबसे बड़ी संशय है।

उन्होंने 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' और 'जय हिंद' जैसे नारे दिए।  स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र की जयंती हर साल 23 जनवरी को मनाई जाती है।  सुभाष चंद्र बोस को 'नेताजी' के नाम से भी जाना जाता है। 

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