राजस्थान के प्रमुख सम्प्रदाय।

 


सम्प्रदाय स्थापना 

एक ही धर्म की अलग अलग परम्परा या विचारधारा मानने वालें वर्गों को सम्प्रदाय कहते है। सम्प्रदाय हिंदू, बौद्ध, धर्मों में मौजूद है। सम्प्रदाय के अन्तर्गत गुरु-शिष्य परम्परा चलती है जो गुरु द्वारा प्रतिपादित परम्परा को पुष्ट करती है।

दादूदयाल 

जन्म स्थान – अहमदाबाद। 

 1585 ई. में आमेर के राजा भगवानदास ने दादूदयाल को फतेहपुर सीकरी में अकबर से मिलाया।  इनकी मुख्य पीठ नरैना (जयपुर) में हैं, जो दादूदयाल ने 1602 ई. में स्थापित की थी। शाखाएं:- 1. खालसा 2. विरक्त 3. उतरादे 4. खाकी 5. नागा। 

दादू जी के 52 शिष्य थे, जिन्हें 52 स्तम्भ कहा जाता हैं। दाद दयाल ने अपने उपदेश ढुंढाढी भाषा में दिए। दादू पंथ के मंदिरों को ‘दादू द्वारा’ कहते हैं। दादूदयाल को राजस्थान का कबीर कहते हैं।  दादू पंथी विवाह नहीं करते हैं।  मंदिर में कोई मूर्ति नहीं होती हैं, वाणी रखी जाती हैं। दादूपंथी शव को जलाते या दफनाते नहीं हैं। बल्कि पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता हैं। स्वयं दादूदयाल का शव भेराणा की पहाड़ी में छोड़ दिया गया था। इस स्थान को दादू खोल या दादूपालका कहा जाता हैं। दादूपंथियों के सत्संग स्थल को ‘अलख दरीबा’ कहा जाता हैं। दादू ने निपख आंदोलन चलाया।

 रामानन्दी सम्प्रदाय – प्रवर्तक संत जसनाथ जी थे जो महान पर्यावरणविद्ध भी थे इनका जन्म कतरियासर (बीकानेर) में हुआ। ये नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे। इनका जन्म हमीर जाट के यहाँ हुआ था। इनके अधिकांश अनुयायी जाट जाति के लोग है जो बीकानेर गंगानगर, नागौर, चुरू आदि जिलो में थे। ये गले में काली उन का धाना बांधते हैं। इनके प्रमुख ग्रन्थ सिंह भूदना तथा कोण्डों थे। इन्होंने अपने अनुयायियों को 36 नियमों का पालन करने को कहा था। ये अत्यन्त प्रकृति प्रेमी थे। इनके अनुयायी रात्रि जागरण, अग्नि नृत्य करते हैं तथा निर्गुण भ्रम की उपासना करते थे। जीव हत्या का विरोध, तथा जीव भ्रम एकता का समर्थन किया। कतरियासर में प्रतिवर्ष अश्विन शुक्ल सप्तमी में मेला भरता है। ये वैष्णव सम्प्रदाय से संबंधित है। इसकी प्रथा पीठ गलता जयपुर में है। इसे उतरतोदादरी भी कहा जा। इसके प्रवर्तक रामानन्द जी थे जिनके कबीर शिष्य थे इनके शिष्य कृष्णचन्द प्यहारी आमेर थे जिन्होंने इस क्षेत्र में नाथ सम्प्रदाय के प्रभाव को कम कर रामानुज सम्प्रदाय का प्रभाव स्थापित किया। गलता तीर्थ में राम-सीता को जुगल सरकार के रूप में आर्धुय भाव में पूजा जाता है इसमें राम को सर्गुण रूप से पूजा जाता था।

रामदेव जी – नाथ सम्प्रदाय को महाराज की अनुग्रह से इनका जीवन वैभवपूर्ण होता था और राजव्यवस्था में प्रभाव होता है। निम्बार्क उपनाम – हंस, सनकादिक, नारद। प्रवर्तक – निम्बार्काचार्य। उपासना – राधाकृष्ण के युगल स्वरूप की। निम्बार्काचार्य के बचपन का नाम – भास्कर तेलगंन ब्राह्मण थे, जन्म आन्ध्रप्रदेश भारत में मुख्य पीठ – वृन्दावन, राजस्थान में मुख्य पीठ – सलेमाबाद अजमेर। अन्य पीठ – उदयपुर, जयपुर। सलेमाबाद पीठ की स्थापना पशुराम देवाचार्य ठिठारिया (सीकर)  इनके अनुयायी तुलसी की लकड़ी की कंठी तथा आकार तिलक लगाते हैं।

चरणदासी सम्प्रदाय:- चरणदास जी का जन्म अलवर जिले के डेहरा गांव में हुआ। इनकी मुख्य पीठ दिल्ली में हैं।  चरणदा सी सम्प्रदाय के अनुयायी 42 नियम मानते हैं।  चरणदास जी ने नादिरशाह के आक्रमण (1739) की भविष्यवाणी की थी।  चरणदासी सम्प्रदाय के लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं।  इनकी एक शिष्या का नाम दयाबाई था ,जिसने 

(1) ‘दया बोध’ 

(2) ‘विनय मलिका’ नामक पुस्तक लिखी। 

एक अन्य शिष्या सहजाबाई ने ‘सहज प्रकाश’ नामक पुस्तक लिखी। चरणदासी सम्प्रदाय के लोग भगवान श्रीकृष्ण की पूजा सखी भाव से करते हैं।  मेवात क्षेत्र के लोगों में इनका प्रभाव अधिक हैं।

रामानन्दी सम्प्रदाय :-कृष्णदास ‘पयहारी’ ने गलता जी में रामानन्दी सम्प्रदाय की स्थापना की। आमेर का पृथ्वीराज कछवाहा तथा उसकी रानी बालाबाई कृष्णदास जी के भक्त थे।  कृष्णदास जी के अन्य शिष्य अग्रदास ने सीकर जिले के रैवासा गांव में इस सम्प्रदाय की दूसरी पीठ की स्थापना की।  इस सम्प्रदाय के लोग भगवान राम की पूजा ‘रसिक नायक’ के रूप में करते हैं, इसलिए इस सम्प्रदाय को रसिक सम्प्रदाय भी कहते हैं।  सवाई जयसिंह के समय कृष्ण भट्ट ने ‘रामरासा’ नामक ग्रंथ लिखा था। जिसमें भगवान राम व सीता के प्रेम सम्बन्धों का वर्णन हैं।

निम्बार्क सम्प्रदाय :- आचार्य परशुराम ने सलेमाबाद (अजमेर) में इस सम्प्रदाय की मुख्य पीठ की स्थापना की।  इस सम्प्रदाय के लोग राधा को भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी मानते हैं। राधाअष्टमी को मेला लगता हैं।

वैष्णव सम्प्रदाय-वैष्णव सम्प्रदाय की जानकारी घोसुण्डी अभिलेख (चितौड़) से मिलती हैं। भगवान विष्णु को आराध्य देव मानकर उसके विविध रूपों की पूजा करने वाले वैष्णव कहलाते हैं। वैष्णव सम्प्रदाय के प्रमुख 4 भाग- रामानुज, निम्बार्क, वल्लभ, गौड़ीय। वैष्णव सम्प्रदाय का राजस्थान में सबसे कम लोकप्रिय- हितरिवंश/राधावल्लभ।विभिन्न मत- विष्ष्टिाद्वैत मत- रामानुज, द्वैत मत- मध्वाचार्य (ग्रन्थ-प्रज्ञभाष्य), शुद्धा मत-वल्लभाचार्य द्वैताद्वेत मत- निम्बार्काचार्य, वैष्णव मत के चार प्रमुख सम्प्रदाय-रामानुज, निम्बार्क, वल्लभ, गौड़ीय।

रामानुज सम्प्रदाय-रामानुज सम्प्रदाय के संस्थापक रामानुजाचार्य जन्म- तिरूपतिनगर, आन्ध्र प्रदेश रामानुजाचार्य ने ब्रह्मसूत्र पर ’’श्री भाष्य’’ की रचना की तथा रामानुजाचार्य ने ’’विष्ष्टिाद्वैत’’ मत चलाया। रामानुज सम्प्रदाय के उपास्य देव- भगवान राम (राम की मार्धुय भाव में भक्ति की जाती है), रामानुज सम्प्रदाय वैष्णव धर्म की सबसे प्राचीन शाखा है। रामानुज सम्प्रदाय पर कलानिधि से सवाई जयसिंह ने रामरासा ग्रन्थ लिखवाया। रामानुज सम्प्रदाय का सर्वाधिक प्रचार प्रसार रामानन्द ने किया। (इसे रामानन्दी/रसिक/रामावत सम्प्रदाय भी कहते हैं)।रामानुज सम्प्रदाय की प्रधान पीठ- गलता (जयपुर), गलता में गालव तीर्थ है। 

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