सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले जीवनी
सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले एक प्रमुख भारतीय सामाजिक सुधारक शिक्षाविद और कवियत्री थी। जिन्होंने उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान महिला शिक्षा और सशक्तिकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्हें उस समय की कुछ साक्षर महिलाओं में गिना जाता है। सावित्रीबाई को पुणे में अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ भिडवाडा में स्कूल स्थापित करने के लिए श्रेय दिया जाता है। उन्होंने बाल विवाह के प्रति शिक्षित करने और उन्मूलन करने, सती प्रथा के खिलाफ प्रचार करने और विधवा पुनर्विवाह के लिए वकालात करने के लिए बहुत मेहनत की महाराष्ट्र के सामाजिक सुधार आंदोलन का एक प्रमुख व्यक्तित्व और उन्हें बी आर अम्बेडकर, अन्नाभाऊ साठे की पसंद के साथ दलित मंगल जाति का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने अस्पृश्यता के खिलाफ अभियान चलाया और जाति व लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त करने में सक्रिय रूप से काम किया।
देश-दुनिया के इतिहास में 3 जनवरी की तारीख काफी अहम है। यह तारीख कई महत्वपूर्ण घटनाओं का गवाह रही है। आज ही के दिन 1831 में भारत की पहली महिला शिक्षिक सावित्रीबाई फुले का जन्म हुआ था। 3 जनवरी 1993 को ही अमेरिका और रूस इस बात पर राजी हुए कि वे अपने-अपने परमाणु हथियारों के भंडार को आधा कर देंगे।
सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 को नायगांव वर्तमान में सातारा जिले में कृषि परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम खंडोजी नेवसे पाटील और माता का नाम लक्ष्मी था। वे परिवार की सबसे बड़ी बेटी थी। उन दिनों की लड़कियों का जल्दी ही विवाह कर दिया जाता था। इसलिए प्रचलित रीति-रिवाजों के बाद नौ वर्षीय सावित्रीबाई की शादी 1840 में 12 वर्षीय ज्योतिराव फुले से साथ हुई। ज्योतिराव एक विचारक, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और जाति-विरोधी सामाजिक सुधारक थे। उन्हें महाराष्ट्र के सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रमुख आंदोलनकारियों में गिना जाता है। सावित्रीबाई की शिक्षा उनकी शादी के बाद शुरू हुई। यह उनके पति ही थे जिसने सावित्रीबाई को सीखने और लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने एक सामान्य स्कूल से तीसरी और चौथी की परीक्षा पास की जिसके बाद उन्होंने अहमदनगर में मिस फरार इंस्टीट्यूशन में प्रशिक्षण लिया। ज्योतिराव अपने सभी सामाजिक प्रयासों में सावित्रीबाई के पक्ष में दृढ़ता से खड़े रहते थे।
भारत में महिलाओं को एक लम्बे समय तक दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता रहा है। यही कारण है कि उनकी जिंदगी को खाना बनाने और वंश को आगे बढ़ाने तक सीमित समझा गया था। लेकिन इस पुरानी सोच वाले समाज में भी सावित्री बाई फुले जैसी महिला ने अन्य महिलाओं के उत्थान के लिए पढाई-लिखाई के लिए शिक्षा के इंतजाम मात्र 17 वर्ष की उम्र में सन 1848 में पुणे में देश का पहला गर्ल्स स्कूल खोलकर किया था।
सावित्रीबाई फुले की गंदगी की कहानी
सावित्रीबाई फुले जब स्कूल जाती थी तब लोग रास्ते में इनपर कीचड़ फेंक देते थे लेकिन समाज के इस घटिया सोच से उन्होंने है नही मानी और वे हमेशा अपने बस्ते में 2 साड़ियां रखती थी और कीचड़ में हुई साड़ी को वो विद्यालय में जाकर बदल लेती थी। 1 दिन सावित्रीबाई फुले को उनके पिताजी ने अंग्रेजी किताब के पन्ने पलटते हुए देख लिया फिर उन्होंने कहा कि शिक्षा पर केवल उच्च जातियों का हक है दलितों और महिलाओं का शिक्षा लेना पाप है और उनकी किताबें फेंक दी। लेकिन सावित्रीबाई फुले उन किताबों को वापस लेकर आई और प्रण लिया कि आज से वे पढ़ना जरूर सीखेंगी।
विद्यालय की स्थापना
1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा। इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में।
‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना
सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य ब्राह्मणवाद और उसकी कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठाना था। इन्होंने मूर्ति पूजा, कर्मकांडों, पुजारियों के वर्चस्व, कर्म, पुनर्जन्म और स्वर्ग के सिद्धांतों का विरोध किया। इन्होंने विधवा विवाह की परंपरा शुरू की। इस संस्था द्वारा 25 दिसंबर 1873 को प्रथम विधवा पुनर्विवाह कराया गया। 28 नवंबर 1890 को ज्योतिबा फुले की मृत्यु के पश्चात सत्यशोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले ने बखूबी निभाई।
सावित्रीबाई फुले के बारे में रोचक तथ्य
सावित्रीबाई फुले को मराठी की आदिकवियत्री माना जाता है।
इन्होंने नाइयों के खिलाफ आंदोलन किया जिससे वह विधवाओं का मुंडन नहीं करें।
प्रेगनेंट रेप से पीड़ित लड़कियों के लिए बालहत्या प्रतिबंधक गृह नामक देखभाल केंद्र खोला। वैसे तो सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले की कोई संतान नहीं थी लेकिन उन्होंने एक ब्राह्मण पुत्र यशवंत राय को गोद लिया लेकिन इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है। सगुनाबाई के साथ उन्होंने कई स्कूल में पढ़ाई करवाई।
आधुनिक मराठी काव्य
सावित्रीबाई एक निपुण कवियित्री भी थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत भी माना जाता है। वे अपनी कविताओं और लेखों में हमेशा सामाजिक चेतना की बात करती थीं। सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका होने के साथ-साथ अपना पूरा जीवन समाज के वंचित तबके खासकर स्त्री और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष में देने के लिए हमेशा याद की जाएंगी।
निधन
10 मार्च, 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गयी।
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