मौर्य साम्राज्य की स्थापना और उसके प्रमुख शासक कौन -कौन थे।
शिक्षा डेस्क :- चन्द्रगुप्त मौर्य ने 322 ईसा पूर्व में इस साम्राज्य की स्थापना की और तेजी से पश्चिम की तरफ़ अपना साम्राज्य का विस्तार किया। उसने कई छोटे-छोटे क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फायदा उठाया जो सिकन्दर के आक्रमण के बाद पैदा हो गये थे। 316 ईसा पूर्व तक मौर्यवंश ने पूरे उत्तरी पश्चिमी भारत पर अधिकार कर लिया था।
मौर्य साम्राज्य के शासनकाल के दौरान भारत एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ था जिसमें वर्तमान अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बलूचिस्तान, नेपाल और कई क्षेत्र शामिल थे इस लेख में मौर्य साम्राज्य से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी जैसे – मौर्य साम्राज्य का इतिहास, मौर्य साम्राज्य के शासक, मौर्य साम्राज्य की शासन व्यवस्था एवं मौर्य साम्राज्य की शासन व्यवस्था से संबंधित संपूर्ण जानकारी दी गई है।
मौर्य वंश से पहले मगध पर नंद वंश का शासन था उस समय मगध एक शक्तिशाली राज्य के रूप में उभरा जिसका शासन नंद वंश के शासक धनानंद के हाथों में था 325 ई. पूर्व में संपूर्ण उत्तर पूर्वी भारत पर सिकंदर का शासन था जब सिकंदर पंजाब पर चढ़ाई कर रहा था तब एक ब्राह्मण मगध के शासक को साम्राज्य विस्तार में प्रोत्साहित करने के लिए आया यह ब्राह्मण और कोई नहीं बल्कि चाणक्य था। राजा धनानंद ने चाणक्य को एक तुच्छ ब्राह्मण कहकर उन्हें अपने राज दरबार में अपमानित किया।
अपने इस अपमान का चाणक्य के हृदय पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा उसी राज दरबार में उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वह धनानंद को सबक सिखा कर रहेंगे। लेकिन इस कार्य के लिए उन्हें एक सच्चे, साहसी और निडर योद्धा की तलाश थी चाणक्य को ये सभी गुण चंद्रगुप्त मौर्य में दिखाई दिए इसलिए चाणक्य नेे चंद्रगुप्त मौर्य को अपना शिष्य बनाया और उन्हें युद्ध विद्या तथा वेदों की भी शिक्षाा दी और उन्हें एक सर्वश्रेष्ठ योद्धा बनाया चाणक्य को कौटिल्य के नाम से जाना जाता है उनका वास्तविक नाम विष्णुगुप्त था।
चाणक्य ने अपनी बुद्धिमता से पूरे राज्य में गुप्तचरों का जाल बिछाया उस समय यह एक अभूतपूर्व कदम था गुप्तचरों के कारण उन्हें राज्य में चल रहे के हालातों के बारे में सभी प्रकार की जानकारी बड़ी ही आसानी से मिल जाती थी। आचार्य चाणक्य ने यूनानी आक्रमणकारियों को मार भगाने के लिए चंद्रगुप्त मौर्य को तैयार किया इस कार्य में चंद्रगुप्त मौर्य को गुप्तचरो के माध्यम से बहुत सहायता मिली ।
मगध के आक्रमण में चाणक्य ने मगध में कई गृह युद्ध को उकसाया उसके गुप्तचरों ने नंद के अधिकारियों को रिश्वत देकर उन्हें अपने पक्ष में कर लिया इसके बाद नंद ने अपना पद छोड़ दिया और चंद्रगुप्त मौर्य को विजय प्राप्त हुआ नंद को निर्वासित जीवन जीना पड़ा इसके अतिरिक्त धनानंद के बारे में और कोई जानकारी नहीं है।
चंद्रगुप्त मौर्य मौर्य साम्राज्य का पहला शासक था चंद्रगुप्त मौर्य ने ही मौर्य वंश की स्थापना की। कुछ विद्वानों के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य की माता का नाम मुरा था मुरा शब्द का संशोधित शब्द मौर्य है और मुरा से ही मौर्य शब्द बना है इतिहास में यह पहली बार हुआ जिसमें माता के नाम से पुत्र का वंश चला हो आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य सर्वश्रेष्ठ योद्धा उन्होंने चंद्रगुप्त को सभी प्रकार की युद्ध विद्या में निपुण बनाया चंद्रगुप्त मौर्य एक शक्तिशाली योद्धा और प्रवल शासक था।
चंद्रगुप्त मौर्य ने एक सबल और सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र की नींव डाली जो आज तक एक आदर्श है आगे चलकर चंद्रगुप्त मौर्य ने जनता का विश्वास भी जीता और इसके साथ ही उसे सत्ता का अधिकार भी मिल गया।
चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य विस्तार :- उस समय मगध भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था मगध पर नियंत्रण के बाद चंद्रगुप्त ने पश्चिमी तथा दक्षिणी भारत पर विजय अभियान आरंभ किया। 316 ई. पूर्व तक चंद्रगुप्त मौर्य ने पूरे उत्तर-पूर्वी भारत पर अपना अधिकार जमा लिया था उत्तर पूर्वी भारत को यूनानी शासन से मुक्ति दिलाने के बाद उसका ध्यान दक्षिण की तरफ गया चंद्रगुप्त ने सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस को 305 ई. पूर्व में हराया था।
कहा जाता है कि इस युद्ध में सेल्यूकस की हार के बाद चंद्रगुप्त और सेल्यूकस के बीच एक संधि हुई जिसके अनुसार 40 वर्ष नी गंधार काबुल हिरात और बलूचिस्तान केे प्रदेश चंद्रगुप्त को दे दिए इसके साथ ही चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहार केेे रूप भेेंट किया कहा जाता है कि चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस की बेटी कर्नालिया (हिलना) से विवाह कर लिया था। इसके साथ ही सेल्यूकस ने मेगास्थनीज को चंद्रगुप्त के दरबार में राजदूत के रूप में भेजा चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी 6 लाख सैनिकों की विशाल सेना से संपूर्ण भारत पर विजय प्राप्त किया और अपने साम्राज्य के अधीन कर लिया। इतिहासकारों के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य ने लगभग 32 वर्षों तक मौर्य साम्राज्य का शासन संभाला इसके प्रश्चात चंद्रगुप्त मौर्य ने अपना राज सिंहासन त्याग कर जैन धर्म अपना लिया था ऐसा कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य अपने गुरु जैन मुनि भद्रवाह के साथ कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में सन्यासी के रूप में रहने लगे थे इसके बाद के शिलालेखों में भी ऐसा ही माना जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने एक सच्चे निष्ठावान जैन की तरह आमरण उपवास करके अपना दम तोड़ा था।



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