अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार किस तरह से किया था

शिक्षा डेस्क : - बहादुर शाह ज़फर (1775-1862) भारत में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह, और उर्दू के जानेे-माने शायर थे। उन्होंने 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया। युद्ध में हार के बाद अंग्रेजों ने उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) भेज दिया जहाँ उनकी मृत्यु हुई ।

1857 में जब अंग्रेज़ों का दिल्ली पर फिर कब्ज़ा हो गया तो कैप्टन विलियम हॉडसन क़रीब 100 सैनिकों के साथ बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र को पकड़ने शहर से बाहर निकले।  हॉडसन को ज़रूर इस बात की फ़िक्र थी कि पता नहीं हुमायूं के मकबरे पर मौजूद लोग उनके साथ कैसा सलूक करें, इसलिए उन्होंने अपने आप को पहले मकबरे के पास मौजूद खंडहरों में छिपा लिया। 

हाल ही में 1857 के विद्रोह पर किताब 'द सीज ऑफ़ डेल्ही' लिखने वाले और इस समय लंदन में रह रहे अमरपाल सिंह बताते हैं, 'हॉडसन ने मकबरे के मुख्यद्वार से महारानी ज़ीनत महल से मिलने और बादशाह को आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार करने के लिए अपने दो नुमाइंदों मौलवी रजब अली और मिर्ज़ा इलाही बख़्श को भेजा। 

बहादुर शाह जफर आखिरी मुगल सम्राट था, जिसने भारत पर साल  1837 से 1857 में आजादी के पहले स्वतंत्रता संग्राम के समय तक शासन किया था। उसका शासनकाल काफी संकट भरा रहा है, जब वह मुगल साम्राज्य की गद्दी पर बैठा था, उस समय तक मुगलों की शक्तियां कमजोर पड़ने लगीं थी और भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना प्रभुत्व जमा लिया था।

साथ ही अंग्रेजों की भारत में नींव मजबूत होती जा रही थी। वहीं बहादुर शाह जफर को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के द्धारा दी गई पेंशन से गुजारा करना पड़ता था। वह महज एक नाममात्र का शासक था। हालांकि, 1857 में हुए विद्रोह में बहादुर शाह जफर ने हिन्दुस्तान से अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए विरोद्रियों और क्रांतिकारियों का एक सम्राट के रुप में साथ दिया और हिन्दू-मुस्लिम को एकजुट कर भारत की एकता की शक्ति को प्रमाणित किया।

हालांकि इस लड़ाई में उन्हें अंग्रेजों से पराजय का सामना करना पड़ा था। इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें गिफ्तार कर लिया गया था और रंगून निर्वासित कर दिया था, जहां उन्होंने अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ली थी। वहीं बहादुर शाह जफर के शासनकाल के दौरान उर्दू शायरी का काफी विकास हुआ। वे खुद भी एक बेहद अच्छे शायर और कवि थे, जिनकी उर्दू शायरी और हिन्दुस्तान से उनकी मोहब्बत का जिक्र आज तक होता है।

उन्होंने साहित्यिक क्षेत्र में भी अपना काफी योगदान दिया था। वह राजनेता और कवि होने के साथ-साथ संगीतकार एवं सौंदर्यानुरागी व्यक्ति थे। उन्हें सूफी संत की उपाधि भी दी गई थी, आइए जानते हैं बहादुर शाह जफर के बारे में कुछ खास बातें-

उधर बादशाह को पकड़े जाने के एक दिन बाद 22 सितंबर तक जनरल आर्चडेल विल्सन ये तय नहीं कर पाए थे कि उस समय तक जीवित शहज़ादों का क्या किया जाए जो अभी भी हुमांयू के मक़बरे के अंदर मौजूद थे.

कैप्टेन हॉडसन का मानना था कि इससे पहले कि वो भागने की कोशिश करें उन्हें हिरासत में ले लिया जाए। इन शहज़ादों में शामिल थे विद्रोही सेना के प्रमुख मिर्ज़ा मुग़ल, मिर्ज़ा ख़िज़्र सुल्तान और मिर्ज़ा मुग़ल के बेटे मिर्ज़ा अबूबक्र। जनरल विल्सन की सहमति से हॉडसन ने 100 सैनिकों का एक गिरफ़्तारी दल बनाया जिसमें उनकी मदद कर रहे थे लेफ़्टिनेंट मेकडॉवल।  ये पूरा दल घोड़ों पर धीरे धीरे चलते हुए हुमायूं के मक़बरे के लिए रवाना हुआ। हॉडसन ने अपने साथ शाही परिवार के एक सदस्य और बादशाह के भतीजे को ले जाने की एहतियात बरती थी। उससे वादा किया गया था कि अगर वो उनके प्रतिनिधि के तौर पर काम करे और शहज़ादों को हथियार डालने के लिए राज़ी करवा ले तो उसकी जान बख़्श दी जाएगी। उसको शहज़ादों को पहचानने का काम भी दिया गया था क्योंकि हॉडसन ख़ुद किसी शहज़ादे को पहचानते नहीं थे। 

हॉडसन मकबरे से आधा मील पहले ही रुक गए। उन्होंने बादशाह के भतीजे और अपने मुख्य ख़ुफ़िया अधिकारी रजब अली को इस संदेश के साथ शहज़ादों के पास भेजा कि वो बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दें वरना परिणाम झेलने के लिए तैयार रहें। हॉडसन अपनी किताब में लिखते हैं कि उनके नुमाएदों को शहज़ादों को हथियार डालने के लिए मनाने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी। 

आधे घंटे बाद शहज़ादों ने हॉडसन को संदेश भेजकर पूछा कि क्या वो उन्हें न मारने का वादा करते हैं? हॉडसन ने इस तरह का कोई वादा करने से इनकार कर दिया और उनके बिना शर्त आत्मसमर्पण करने की बात दोहराई। इसके बाद हॉडसन ने शहज़ादों को उन तक लाने के लिए दस सैनिकों का एक दल भेजा। 

बाद में लेफ़्टिनेंट मेक्डॉवेल ने लिखा, 'थोड़ी देर बाद तीनों शहज़ादे बैलों द्वारा खींचे जा रहे एक छोटे रथ पर सवार हो कर बाहर आए। उनके दोनों तरफ़ पाँच सैनिक चल रहे थे। उनके ठीक पीछे दो से तीन हज़ार लोगों का हुजूम था। 

उन्हें देखते ही मैं और हॉडसन अपने सैनिकों को पीछे छोड़ कर उनसे मिलने अपने घोड़ों पर आगे बढ़े। उन्होंने हॉडसन के सामने सिर झुकाया। हॉडसन ने भी सिर झुका कर जवाब दिया और रथ चालकों से कहा कि वो आगे बढ़ते चले आएं।  उनके पीछे भीड़ ने भी आने की कोशिश की लेकिन हॉडसन ने अपना हाथ दिखा कर उन्हें रोक दिया। मैंने अपने सैनिकों की तरफ़ इशारा किया और क्षण भर में उन्होंने भीड़ और रथ के बीच पोज़ीशन ले ली। 


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