जानिए स्वामी विवेकानंद के जन्म पर ही राष्ट्रीय युवा दिवस क्यों मनाया जाता है।

 

शिक्षा डेस्क :-महान संत और दार्शनिक स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। स्वामी विवेकानंद की जयंती के उपलक्ष्य में हर वर्ष देश 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाता है। विवेकानंद संत रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।

वह वेदांत और योग पर भारतीय दर्शन से पश्चिमी दुनिया का परिचय कराने वाली प्रमुख हस्ती थे। उन्हें 19वीं सदी के अंत में हिंदू धर्म को दुनिया के प्रमुख धर्मों में स्थान दिलाने का श्रेय जाता है। उन्होंने अपने गुरु की याद में रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।

विवेकानंद की जयंती पर युवा दिवस मनाने का कारण :-स्वामी विवेकानंद को धर्म, दर्शन, इतिहास, कला, सामाजिक विज्ञान, साहित्य के ज्ञाता कहा जाता है। शिक्षा के साथ ही वे भारतीय शास्त्रीय संगीत का भी ज्ञान रखते थे। साथ ही वे एक अच्छे खिलाड़ी भी थे। 

उनके विचार और कार्य आज के समय में भी युवाओं के लिए प्रेरणा है। विवेकानंद ने कई मौकों पर अपने अनमोल और प्रेरणादायक विचारों से युवाओं को प्रोत्साहित किया है। यही कारण है कि स्वामी विवेकानंद की जयंती के दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। 

राष्ट्रीय युवा दिवस का इतिहास:-स्वामी विवेकानंद की जयंती को युवाओं के लिए समर्पित करने यानी इस दिन को युवा दिवस के रूप में मनाए जाने की शुरुआत 1984 में हुई थी। तात्कालिक भारत सरकार द्वारा कहा गया था कि, स्वामी विवेकानंद के दर्शन, आदर्श और काम करने का तरीका भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत हो सकता है। इसके बाद से ही स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर मनाए जाने की घोषणा की गई और हर साल 12 जनवरी के दिन राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। 

शिकागो में दिया था यादगार भाषण:-विवेकानंद को 1893 में अमेरिका के शिकागो में हुई विश्व धर्म संसद में दिए गए उनके भाषण की वजह से सबसे ज्यादा याद किया जाता है। दुनिया भर के धार्मिक नेताओं की मौजूदगी में जब विवेकानंद ने, ''अमेरिकी बहनों और भाइयों'' के साथ जो संबोधन शुरू किया तो आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो में कई मिनट तक तालियां बजती रहीं। इस धर्म संसद में उन्होंने जिस अंदाज में हिंदू धर्म का परिचय दुनिया से कराया, उससे वे पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गए।

रामकृष्ण परमहंस थे विवेकानंद के गुरु:-स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। बचपन से ही उनका झुकाव आध्यात्म की ओर था। 1881 में विवेकानंद की मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई और वही उनके गुरु बन गए। अपने गुरु रामकृष्ण से प्रभावित होकर उन्होंने 25 साल की उम्र में संन्यास ले लिया। संन्यास लेने के बाद उनका नाम स्वामी विवेकानंद पड़ा। 1886 में रामकृष्ण परमहंस का निधन हो गया था।

स्वामी विवेकानंद ने 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। इसके एक साल बाद उन्होंने गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की। 04 जुलाई 1902 को महज 39 वर्ष की अल्पायु में विवेकानंद का बेलूर मठ में निधन हो गया था।

स्वामी विवेकानंद ने साल 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की और 1898 में गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। 11 सितंबर 1893 में अमेरिका में धर्म संसद के आयोजन में स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में हिंदी में कहा ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों' उनके यह कहते ही आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो में पूरे दो मिनट तक तालियां बजती रही। इसे भारत के इतिहास में गर्व और सम्मान की घटना के तौर जाना जाता है। स्वामी विवेकानंद चाय प्रेमी थे लेकिन उस समय कुछ लोग चाय के विरोधी थे। स्वामी विवेकानंद ने अपने मठ में चाय को प्रवेश दिया। एक बार बेलूर मठ में यह कह कर टैक्स बढ़ा दिया गया कि यह एक प्राइवेट गार्डन हाउस है। हालांकि बाद में ब्रिटिश मजिस्ट्रेट की जांच के बाद इस टैक्स को हटा दिया गया। मृत्यु से दो वर्ष पहले 1900 में जब स्वामी विवेकानंद यूरोप से आखिरी बार भारत आए तो बेलूर की ओर चल पड़े।  क्योंकि वे अपने शिष्यों के साथ समय बिताना चाहते थे।  यह उनके जीवन का आखिरी भ्रमण था।  04 जुलाई 1902 को उन्होंने अंतिम सांस ली। 

राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है विवेकानंद का जन्मदिन

1984 में भारत सरकार ने स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन (12 जनवरी) को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया था और 1985 से हर वर्ष विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। विवेकानंद एक सच्चे कर्मयोगी थे और उन्हें इस देश के युवाओं पर पूरा भरोसा था। उनका दृढ़ विश्वास था कि युवा अपनी कड़ी मेहनत, समर्पण और आध्यात्मिक शक्ति के माध्यम से भारत के भाग्य को बदल सकते हैं। युवाओं के लिए उनका संदेश था, "मैं चाहता हूं कि लोहे की मांसपेशियां और स्टील की नसें हों, जिसके अंदर वैसा ही दिमाग रहता है जिससे वज्र बनता है।" इस तरह के संदेशों के माध्यम से उन्होंने युवाओं में बुनियादी मूल्यों को स्थापित करने की कोशिश की।

स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन

उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता। हर आत्मा ईश्वर से जुड़ी है, करना ये है कि हम इसकी दिव्यता को पहचाने अपने आप को अंदर या बाहर से सुधारकर। कर्म, पूजा, अंतर मन या जीवन दर्शन इनमें से किसी एक या सब से ऐसा किया जा सकता है और फिर अपने आपको खोल दें। यही सभी धर्मो का सारांश है। मंदिर, परंपराएं , किताबें या पढ़ाई ये सब इससे कम महत्वपूर्ण है। एक विचार लें और इसे ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार के बारे में सोचे, सपना देखे और इसी विचार पर जिएं। आपके मस्तिष्क , दिमाग और रगों में यही एक विचार भर जाए। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं। एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ



Comments

Popular posts from this blog

25 जनवरी की देश विदेश की घटनाएं इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं।

देश विदेश में 3 फरवरी का इतिहास महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना।

तक्षशिला विद्यालय की स्थापना कब की किसने करवाया थी।