शिक्षा डेस्क : -अशोक 269 ईसा पूर्व के लगभग मौर्य सिहांसन पर आसीन हुआ था। बहुत सारे इतिहासकार उसे प्राचीन विश्व का महानतम सम्राट मानते हैं। उसकी धम्म नीति विद्वानों के बीच निरंतर चर्चा का विषय रही है। इस लेख में हमने अशोक द्वारा भेजे गए धर्म-प्रचारको को सूचीबद्ध किया है।
मौर्य साम्राज्य की धार्मिक स्थिति
मौर्यो के आने से पूर्व बौद्ध तथा जैन धर्म का विकास हो चुका था जबकि दक्षिण में वैष्णव तथा शैव संप्रदाय भी विकसित हो रहे थे चंद्रगुप्त मौर्य ने अपना राज सिंहासन त्याग कर जैन धर्म अपना लिया और एक सच्चा जैन बन गया। सम्राट अशोक ने भी कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म अपना लिया था इसके बाद उन्होंने अपना संपूर्ण ध्यान धर्म के प्रचार में लगा दिया |
अशोक के शिलालेख में अशोक के धम्म का उल्लेख भी मिलता है अशोक के धर्म का मतलब कोई धर्म या मजहब नहीं था बल्कि उनके धम्म का मतलब नैतिक सिद्धांत और शुद्ध आचरण था। उस समय ना तो इस्लाम का जन्म हुआ था और ना ही इसाई धर्म का। सम्राट अशोक में धर्म महामात्र नाम के पद वाले अधिकारियों की नियुक्ति की जिनका काम आम जनता में धम्म का प्रचार करना था ।
धर्म प्रचार के उपदेश से अशोक ने अपने साम्राज्य में धर्मश्रावन ( धर्म सावन ) तथा धर्मोंपदेश ( धम्मानुसथि ) की व्यवस्था करवायी। उसके साम्राज्य के विभिन्न पदाधिकारी जगह - जगह घूमकर धर्म के बारें में लोगों को बताया करते थे तथा राजा की ओर से जो धर्म - संबधी घोषणायें की जाती थी।
अभिलेखों से हमे प्राचीन इतिहास, तात्कालिक परिस्थितियों को जानने में सहायता मिलती है। इन अभिलेखों की सहायता से संबंधित साम्राज्य, राजवंश आदि की सही तिथि और कालक्रम की गणना करने में सहायता मिलती है। ये अभिलेख हमें संबंधित राजवंश में तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक आदि अलग-अलग परिस्थियों को जानने में सहायता मिलती है।
अशोक के 13वें शिलालेख का क्या नाम है?
अशोक ने अपने राज्याभिषेक के आठ वश बाद अर्थात 9वें वर्ष में कलिंग की विजय की। इसका उल्लेख उसके 13वें शिलालेख में मिलता है। हाथीगुम्फा अभिलेख से पता चलता है कि कलिंग विजय के समय संभवतः वहां का राजा नन्दराज था। कलिंग (वर्तमान ओडिशा) युद्ध 261 ईसा पूर्व में लड़ा गया था।
पहला शिलालेख :–इस लेख को गिरनार संस्करण भी कहा जाता है। इसमें पशुबलि की निंदा की गयी और उसे निषेध किया गया है। ऐसे समाज जिनमें पशु वध होता हो, पर भी प्रतिबन्ध लगाया। इसमें अशोक ने कहा है कि अभी राजकीय पक्षाला में एक हिरण व दो मोर मारे जाते हैं। भविष्य में यह भी समाप्त कर दिया जायेगा।
दूसरा शिलालेख :- शाहबाजगढ़ी वर्तमान पाकिस्तान पेशावर (मर्दान जिले) में स्थित है। यहां पर प्राप्त हुए अशोक के शिलालेख की भाषा प्राकृत एवं लिपि खरोष्ठी है। अशोके के इस शहबाजगढी शिलालेख की खोज 1836 में जनरल कोर्ट के द्वारा की गई थी।
तीसरा शिलालेख :- मानसेहरा वर्तमान पाकिस्तान के हजारा जिले में पेशावर के निकट मान सेहरा नामक स्थान है जहां पर अशोक का यह शिलालेख प्राप्त होता है। मान सेहरा में प्राप्त हुए शिलालेख की भाषा प्राकृत तथा लिपि खरोष्ठी है। इस शिलालेख में अशोक ने सज्जन संगति एवं नम्रता पूर्वक व्यवहार करने का उपदेश दिया है। यह शिलालेख तीन अलग अलग शिलाओं पर लिखा गया है। पहली दो शिलाएँ जनरल कनिंघम के द्वारा खोजी गयी।
चौथा शिलालेख :-इस अभिलेख में भेरीघोष की स्थान पर धममघोष की स्थापना की गयी। धर्मानुशासन ही अच्छा काम है जिसके लिए मनुष्य को शीलवान होना आवश्यक है।
पाँचवाँ शिलालेख :-इस शिलालेख से धर्म महामात्रों की नियुक्ति की जानकारी मिलती है। अशोक कहता है “मैंने राज्याभिषेक के 13 वें वर्ष धर्म महामात्रों की नियुक्ति की।”
छठा शिलालेख :- धौली नामक स्थान उड़ीसा के पुरी जिले में मिलता है। इस स्थान पर अशोक का वृहद शिलालेख प्राप्त हुआ है। इसकी भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राह्मी है। धौली जगह पर पाए गए इस शिलालेख में अशोक ने पशु हिंसा की निंदा की है। धौली में इस शिलालेख का पता 1837 में किटो ने लगाया था।
सातवां शिलालेख :-इसमें अशोक की तीर्थ यात्राओं का वर्णन किया गया है। वह कहता है “सब जगह सब सम्प्रदाय के मनुष्य निवास करें क्योंकि वे सब संयम व आत्मशुद्धि चाहते हैं।
आठवां शिलालेख :- एर्रिगुडि या एरागुडि शिलालेख आंध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले में मिलता है। इस शिलालेख की भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राह्मी है।
नौवां शिलालेख :-इस शिलालेकह में सच्ची भेंट और सच्चे शिष्टाचार का वर्णन किया गया है। इसमें धम्म मंगल को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया। “दासों और सेवकों से शिष्ट व्यवहार करें तथा श्रमणों, गुरुजनों और ब्राह्मणों का सम्मान करें”।
दसवां शिलालेख :-इसमें आदेश दिया है कि राजा तथा उच्च अधिकारी हमेशा प्रजा के हित में कार्य करें। इसमें यश व कीर्ति की निंदा की तथा धम्मनीति की श्रेष्ठता पर विचार किया गया है।
ग्यारहवां शिलालेख :-इसमें धम्म की व्यवस्था की गयी तथा धम्मदान को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।
बारहवां शिलालेख :-इसमें स्त्री महामात्रों और व्रजभूमिकों की नियुक्ति का उल्लेख किया गया है। इसमें अशोक की धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाया गया है। इसमें सभी सम्प्रदायों के सम्मान की बात कही गयी है। सम्राट अशोक के उपरोक्त मुख्य शिलालेख 8 जगहों पर मिले हैं। उपरोक्त 8 जगहों में से गिरनार एक ऐंसी जगह है जहां पर कि अशोक के पूरे 14 अभिलेख समूह प्राप्त हुए हैं। आइए, अब अशोक के उपरोक्त वृहद शिलालेखों को थोड़ा विस्तार से समझ लीजिए।
तेरहवां शिलालेख :- इसमें कलिंग युद्ध और अशोक के ह्रदय परिवर्तन का वर्णन किया गया है। इसमें धम्म विजय को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। इसी में पड़ोसी राजाओं का भी जिक्र किया गया है। इसी में अशोक ने आटविक जनजातियों को धमकी दी है “धम्म का मार्ग चुनें अन्यथा परिणाम बुरा होगा”।
13वें शिलालेख सबसे लंबा शिलालेख है। इसमें अशोक की कलिंग विजय का वर्णन है। इसके अलावा अशोक के धम्म की ग्रीक, यवन, सीलोन आदि राजाओं पर विजय का वर्णन है।
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