30 जनवरी को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को गोली मर कर हत्या क्यों की थी।

शिक्षा डेस्क :-  इस बात की कल्‍पना ही की जा सकती है कि जब नाथूराम गोडसे ने महात्‍मा गांधी की हत्या की होगी, तो मौके पर माहौल क्‍या रहा होगा। लोग स्तब्ध रह गए होंगे।  नफरत से भर उठे होंगे। गोडसे के लिेए द्वेष रहा होगा। चौराहे पर फांसी देने की मांग उठी होगी। कोर्ट के बाहर प्रदर्शन होते होंगे। अपराधियों को भारी सुरक्षा में कोर्ट लाया जाता होगा। गोडसे और उसके साथी तनाव से भरे रहते होंगे। बापू का समाधिस्‍थल राजघाट लोगों से भरा रहता होगा। लेकिन हकीकत में ऐसा तिनका भर भी नहीं हुआ। 

30 जनवरी 1948 को गोडसे ने जो ‘कुकृत्य’ किया, पूरे देश से उसे लानतें मिलीं।  बापू तब दैनिक प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए जा रहे थे।  बिड़ला हाउस में दक्षिणपंथी उग्रवादी नाथूराम गोडसे ने उन्हें गोली मार दी। हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर महात्मा गांधी की हत्या का प्रयास पहले भी हुआ था। 1934 के बाद से उनकी हत्या के लिए 5 बार हमले किए गए थे, जो नाकाम रहे। 

38 वर्षीय जोशीले गोडसे एक दक्षिणपंथी पार्टी हिंदू महासभा के सदस्य थे।  इस पार्टी ने गांधी पर मुसलमान समर्थक होने और पाकिस्तान के प्रति नरमी दिखाकर हिंदुओं के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाया था। उन्होंने विभाजन के वक़्त हुई हिंसा और रक्तपात का आरोप भी गांधी पर लगाया जिसके बाद अगस्त 1947 में ब्रिटेन से आज़ाद होकर पाकिस्तान बना था। 

गांधी की हत्या के एक साल बाद ट्रायल कोर्ट ने गोडसे को सज़ा-ए-मौत सुनाई। हाई कोर्ट की सुनवाई में सज़ा को बरकरार रखने का आदेश दिया गया जिसके बाद नवंबर 1949 को नाथूराम गोडसे को फ़ांसी दे दी गई। गांधी की हत्या के आरोप में गोडसे के साथी नारायण आप्टे को भी मौत की सज़ा ही दी गई थी, जबकि अन्य छह लोगों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी। 

महात्मा गांधी के आदर्श को किया जाता है याद

महात्मा गांधी के आदर्शों को आज भी दुनिया भर में याद किया जाता है। देश और दुनिया में प्यार से लोग महात्मा गांधी को बापू कहकर बुलाते थे। महात्मा गांधी ने जीवन पर्यंत सत्य, अहिंसा, सादगी के साथ जीवन व्यतीत किया। वो भारत को धर्मनिरपेक्ष और अहिंसक राष्ट्र के तौर पर बनाना चाहते थे।

पोरबंदर में हुआ था जन्म

मोहनदास कर्मचंद गांधी के तौर पर जन्म महात्मा गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। महात्मा गांधी की उच्च शिक्षा इंग्लैंड में हुई थी। देश में अंग्रेजों के अत्याचार से परेशान होकर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था। भारत को आजादी दिलाने में महात्मा गांधी की अहम भूमिका हमेशा याद की जाती है। दुर्भाग्य से आजादी के कुछ ही महीनों के बाद उनकी हत्या हो गई थी।

सितंबर 1947 की शुरुआत में, गांधी वहां और पड़ोसी प्रांत पूर्वी पंजाब में हिंसक दंगों को रोकने में मदद करने के लिए दिल्ली चले गए । दंगा ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के विभाजन के मद्देनजर आया था , जो भारत और पाकिस्तान के नए स्वतंत्र प्रभुत्व के निर्माण के साथ हुआ था, और उनके बीच जनसंख्या के बड़े, अराजक स्थानान्तरण शामिल थे। नाथूराम विनायक गोडसे और उनकी हत्या के साथी दक्कन क्षेत्र के निवासी थे । गोडसे ने पहले ब्रिटिश भारत में हैदराबाद राज्य के रियासत दक्कन क्षेत्र के मुस्लिम शासक उस्मान अली खान के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व किया था । गोडसे 1938 में हैदराबाद में एक विरोध मार्च में शामिल हुए, जहां फेदरलिंग के अनुसार हिंदुओं के साथ भेदभाव किया जा रहा था। उन्हें राजनीतिक अपराधों के लिए गिरफ्तार किया गया था और उन्हें जेल की सजा हुई थी। एक बार जेल से बाहर आने के बाद, गोडसे ने अपनी सविनय अवज्ञा जारी रखी और एक पत्रकार के रूप में पाकिस्तान से भाग रहे हिंदू शरणार्थियों की पीड़ा और 1940 के दशक में भड़के विभिन्न धार्मिक दंगों के दौरान काम किया।

अरविंद शर्मा के अनुसार, गांधी की हत्या की ठोस योजना 1948 में गोडसे और उनके सहयोगियों द्वारा शुरू की गई थी, जब भारत और पाकिस्तान ने पहले ही कश्मीर पर युद्ध शुरू कर दिया था । भारत सरकार ने धन रोक लिया क्योंकि पाकिस्तान उनके खिलाफ युद्ध में धन का उपयोग कर सकता था। लेकिन गांधी ने इस फैसले का विरोध किया और  भारत सरकार पर पाकिस्तान को भुगतान जारी करने का दबाव बनाने के लिए13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन पर चले गए । भारत सरकार ने गांधी के सामने झुकते हुए अपने फैसले को उलट दिया। गोडसे और उनके सहयोगियों ने घटनाओं के इस क्रम की व्याख्या महात्मा गांधी द्वारा सत्ता को नियंत्रित करने और भारत को नुकसान पहुंचाने के मामले के रूप में की। 

जिस दिन गांधी भूख हड़ताल पर चले गए, गोडसे और उनके सहयोगियों ने गांधी की हत्या करने की योजना बनाना शुरू कर दिया। नाथूराम विनायक गोडसे और नारायण आप्टे ने एक बेरेटा एम 1934 खरीदा । पिस्टल खरीदने के साथ ही गोडसे और उसके साथियों ने गांधी की गतिविधियों पर छाया डाली।


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