राजस्थान प्रजामण्डल स्थापना

 

राजस्थान प्रजामण्डल स्थापना

प्रजामण्डल का अर्थ है प्रजा का संगठन। सन 1920 के दशक में ठिकानेदारों और जागीरदारों के अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ गए। इस कारण किसानों द्वारा विभिन्न आंदोलन चलाये जा रहे थे, साथ ही देश भर में गांधी जी के नेतृत्व में देश में स्वतंत्रता आन्दोलन भी चल रहा था। इन सभी के कारण राज्य की प्रजा में जागृती आयी और उन्होंने संगठन बना कर अत्याचारों के विरूद्ध आन्दोलन शुरू किया जो प्रजामण्डल आंदोलन कहलाये।

जयपुर प्रजामण्डल 
जयपुर प्रजामण्डल राजस्थान का प्रथम प्रजामण्डल था।
• स्थापना – 1931
• संस्थापक – कपुरचंद पाटनी, चिरंजिलाल मिश्र
• पुर्नगठन – जमनालाल बजाज – 1936-37
• अधिवेशन – 1938 – जयपुर
• अध्यक्ष – जमनालाल बजाज
• अतिथि – कस्तूरबा गांधी
• संदेश – स्वदेशी एवं खादी का प्रयोग
• जननेता – हिरालाल शास्त्री
• जयपुर प्रजामंडल के द्वारा जयपुर महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय के विरुद्ध उत्तरदायी सरकार की स्थापना के लिए संघर्ष प्रारम्भ होता है| इस संघर्ष में 1942 में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के समय मानसिंह द्वितीय का प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल हिरालाल शास्त्री के साथ एक समझौता करते हुए उत्तरदायी सरकार की स्थापना करवाता है इस समझौते को ‘जेन्टलमैन – एग्रीमेंट’ कहा जाता है | जिसमें तय किया गया की जयपुर प्रजामंडल के नेता भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग नहीं लेंगे, परंतु हिरालाल शास्त्री के इस समझौते के विरोध में बाबा हरिशचन्द्र के नेतृत्व में आजाद मोर्चे का गठन किया जाता है |
• आजाद मोर्चे ने भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था |
• ‘प्रत्यक्ष जीवन शास्त्र’ – हिरालाल शास्त्री की आत्मकथा
• ‘प्रलय प्रतीक्षा नमो नमः – गीत

मेवाड़ प्रजामण्डल(24 अप्रेल 1938)
-मेवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना का श्रेय माणिक्यलाल वर्मा को जाता है। उनके -प्रयासों से उदयपुर में 24 अप्रैल 1938 को बलवंतसिंह मेहता की अध्यक्षता में -मेवाड़ परजमण्डल की स्थापना की गयी।
-25-26 नवम्बर 1941 में मेवाड़ प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन उदयपुर की -------शाहपुरा हवेली में माणिक्य लाल वर्मा की अध्यक्षता में हुआ, जिसका उद्घाटन जे.बी. कृपलानी ने किया।
-प्रजामंडल ने बेगार एवं बलेठ प्रथा के खिलाफ अभियान चलाया।
-9 अगस्त 1942 को शुरू किये गए भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण मेवाड़ प्रजामंडल को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया।

-कोटा में प्रजामण्डल: 
• स्थापना – 1934 – हाड़ोती प्रजामंडल
• संस्थापक – प. नयनूराम शर्मा (कोटा की राष्ट्रीयता का जनक)
• पुर्नगठन – 1938 कोटा प्रजामंडल
• सहयोगी – अभिन्न हरी, तनसुखदास मित्तल, शारदा भार्गव

• कोटा प्रजामंडल द्वारा सर्वाधिक बल हाड़ोती क्षेत्र में अक्षय तृतीया पर होने वाले बाल विवाह की रोकथाम के लिए किया गया था|  बाल-विवाह की रोकथाम के लिए अजमेर के डॉ. हरविलास शारदा के प्रयासों से 1 अप्रैल 1930 को शारदा एक्ट लागू हुआ था| कोटा राज्य में जन-जागृति के जनक पं. नयनूराम शर्मा थे। उन्हानें थानेदार के पद से इस्तीफा देकर सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया था। वे विजयसिंह पथिक द्वारा स्थापित राजस्थान सेवा संघ के सक्रिय सदस्य बन गए। उन्होंने कोटा राज्य में बेगार विरोधी आन्दोलन चलाया, जिसके फलस्वरूप बेगार प्रथा की प्रताड़ना में कमी आई। 1939 में पं. नयनूराम शर्मा और पं. अभिन्न हरि ने कोटा राज्य में उत्तरदायी शासन स्थापित करने के उद्देश्य को लेकर कोटा राज्य प्रजामण्डल की स्थापना की। प्रजामण्डल का पहला अधिवेशन पं. नयनूराम शर्मा की अध्यक्षता में मांगरोल (बाराँ) में सम्पन्न हुआ। 

•अजमेर में प्रजामण्डल:

स्थापना – 4 अक्टूबर, 1936
• संस्थापक – माणिक्य लाल वर्मा
• सहयोगी- बलवन्त सिंह मेहता विजयलक्ष्मी पंडित और जे.पी. कृपलानी                                                 अजमेर में जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में ”राजपूताना मध्य भारत सभा’ का आयोजन (1920) किया गया, जिसमें अर्जुन लाल सेठी, केसरीसिंह बारहठ, राव गोपालसिंह खरवा, विजयसिंह पथिक आदि ने भाग लिया। इसी वर्ष देश में खिलाफत आन्दोलन चला। अक्टूबर, 1920 में ‘राजस्थान सेवा संघ’ को वर्धा से लाकर अजमेर में स्थापित किया गया, उसका उद्देश्य राजस्थान की रियासतों में चलने वाले आन्दोलनों को गति देना था। उसी समय रामनारायण चौधरी वर्धा से लौटकर अपना कार्य क्षेत्र अजमेर बना चुके थे। अजमेर में 15 मार्च, 1921 को द्वितीय राजनीतिक कांफ्रेस का आयोजन हुआ, जिसमें मोतीलाल नेहरू उपस्थित थे। मौलाना शौकत अली ने सभा की अध्यक्षता की थी। सभा में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार का आह्वान किया गया। पंडित गौरीशंकर भार्गव ने अजमेर में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार की अगुवाई कर प्रथम गांधीवादी बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। जब ‘प्रिंस आफ वेल्स’ का अजमेर आगमन (28 नवम्बर, 1921) हुआ, तो उसका स्वागत के स्थान पर बहिष्कार किया गया, हड़ताल की गई तथा दुकाने बन्द की गई। प्रिंस की यात्रा की व्यापक प्रतिक्रिया हुई।

मारवाड़ प्रजामंडल

  स्थापना – 1934
• संस्थापक – जयनारायण व्यास
• अध्यक्ष – भंवर लाल सर्राफ
• राजनैतिक संस्था – मारवाड़ हितकारिणी सभा 1925
• मारवाड़ प्रजामंडल के नेतृत्व में 1934 में श्रीमती कृष्णा के अपहरण के विरोध में ‘कृष्णा दिवस’ मनाया गया| सन् 1937 में मारवाड़ प्रजामण्डल को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया। इसके बाद 1938 में रणछोड़ दास गट्टानी की अध्यक्षता में मारवाड़ लोक परिषद् का गठन हुआ। मारवाड़ लोक परिषद् में महिमा देवी किंकर के नेतृत्व में महिलाओं ने भाग लिया। 1942 में मारवाड़ लोक परिषद् ने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लिया। 3 मार्च 1948 को जयनारायण व्यास के नेतृत्व में एक मिलीजुली लोकप्रिय सरकार का गठन किया गया। ३० मार्च 1949 को जोधपुर रियासत का राजस्थान में विलय हो गया।

डूंगरपुर प्रजामंडल
स्थापना – 26 जनवरी 1944
• संस्थापक – भोगीलाल पाण्ड्या (वागड़ का गांधी)
• अध्यक्ष – भोगी लाल पाण्ड्या
• भोगीलाल पाण्ड्या ने इस क्षेत्र के आदिवासी समाज में शिक्षा के प्रति जनजागृती लाने के लिए ‘आदिवासी छात्रावास’ की स्थापना 1919 में की| सन् 1929 में गोरी शंकर उपाध्याय द्वारा सेवा आश्रम की स्थापना होती है। इसके द्वारा सेवक नामक समाचार पत्र निकाला जाता है। सन् 1935 में भोगीलाल पंड्या द्वारा हरिजन सेवा संघ की स्थापना होती है। सन् 1935 में माणिक्य लाल वर्मा द्वारा खांडलोई आश्रम की स्थापना होती है। सन् 1935 में भोगीलाल पंड्या और माणिक्य लाल वर्मा द्वारा बागड़ सेवा मंदिर की स्थापना होती है। सन् 1938 में डूंगरपुर सेवा संघ की स्थापना होती है।26 जनवरी, 1944 को डूंगरपुर प्रजामंडल की स्थापना होती है। जिसका अध्यक्ष भोगीलाल पंड्या को बनाया जाता है।

सिरोही प्रजामंडल
• स्थापना – वृद्धि शंकर त्रिवेदी
• स्थान  – बंबई
• अधिवेशन – 1939 – गोकुल भाई भट्ट
• सिरोही प्रजामंडल के नेतृत्व में भूदान-आन्दोलन, गौ रक्षीणी कार्यक्रम तथा मद्य निषेध चेतना जैसे कार्यक्रमों का संचालन किया गया था। प्रारम्भ में सिरोही प्रजामंडल के अधिवेशन प्रवासी राजस्थानी समूह द्वारा बंबई मे आयोजित करवाए जाते है|

जैसलमेर प्रजामंडल
• स्थापना – 1939 जोधपुर – जैसलमेर प्रजा परिषद
• संस्थापक – शिवशंकर गोपा
• स्थानांतरित – 1945 जैसलमेर राज्य प्रजामंडल
• संस्थापक – मिठालाल व्यास
• सहयोगी – सागरमल गोपा, रघुनाथ सिंह
• सागरमल गोपा के द्वारा रघुनाथ सिंह का मुकदमा, आजादी के दीवाने और जैसलमेर का गुंडाराज नामक पुस्तकें लिखी गई थी | जैसलमेर महारावल जवाहरसिंह के आदेश पर सागरमल गोपा को जेल में यातनाए देते हुए 04 अप्रैल 1946 को जेल में जिंदा जला दिया गया था| सागरमल गोपा हत्याकांड पर जांच हेतु ‘पाठक कमेटी’ का गठन किया गया| 16 नवम्बर 1930 को जैसलमेर में जवाहर दिवस मनाया गया था| 
नोट :- एकमात्र प्रजामंडल जिसकी स्थापना राज्य से बाहर हुई थी – बीकानेर
• राज्य का एकमात्र प्रजामंडल जिसकी स्थापना राज्य से बाहर हुई तथा उसके अधिवेशन भी प्रतिवर्ष राज्य से बाहर आयोजित होते – सिरोही
• राज्य का एकमात्र प्रजामंडल जो स्वयं की रियासत में स्थापित नहीं हुआ था – जैसलमेर

बूंदी प्रजामण्डल
सन् 1931 में श्री कांतिलाल द्वारा स्थापित किया गया ।
बूंदी राज्य लोक परिषद की स्थापना 19 जुलाई 1944 में हरिमोहन माथुर एवं बृजसुंदर शर्मा द्वारा की गई।

करौली प्रजामण्डल
18 अप्रैल, 1939 में श्री त्रिलोकचंद माथुर, चिरंजीलाल शर्मा व कुंवर मदन सिंह द्वारा गठित।

धौलपुर प्रजामण्डल
सन् 1936 में कृष्णदत्त पालीवाल, श्री मूलचंद श्री ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु आदि द्वारा गठित।

शाहपुरा प्रजामण्डल
18 अप्रैल, 1938 को श्री रमेशचन्द्र औझा, लादूराम व्यास व अभयसिंह डांगी द्वारा श्री माणिक्य लाल वर्मा के सहयोग से गठित किया गया।
शाहपुरा प्रथम रियासत थी जिसने उत्तरदायी शासन की स्थापना की।

अलवर प्रजामण्डल
सन् 1938 में पं. हरिनारायण शर्मा एवं कुंजबिहारी मोदी द्वारा स्थापित किया गया। सन् 1939 में इसके रजिस्ट्रेशन के बाद सरदार नत्थामल इसके अध्यक्ष बने।

किशनगढ़ प्रजामण्डल
1939 में श्री कांतिलाल चौथानी एवं श्री जमालशाह(अध्यक्ष) द्वारा स्थापित हुआ।
कुशलगढ़ प्रजामण्डल(अप्रेल 1942)
अप्रैल, 1942 में श्री भंवरलाल निगम(अध्यक्ष) व कन्हैयालाल सेठिया द्वारा गठित हुआ।
 
बांसवाड़ा प्रजामण्डल(
सन् 1943 में भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी, धूलजी भाई भावसर, मणिशंकर नागर आदि द्वारा स्थापित।
 
प्रतापगढ़ प्रजामण्डल
सन् 1945 में श्री चुन्नीलाल एवं अमृतलाल के प्रयासों से स्थापित हुआ।
 
झालावाड़ प्रजामण्डल(
25 नवम्बर, 1946 को श्री मांगीलाल भव्य(अध्यक्ष), कन्हैयालाल मित्तल, मकबूल आलम द्वारा गठित गया।



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