ग्रेगोरियन कैलेंडर और विक्रम संवत इतिहास, शुरुआत कैसे हूई
ग्रेगोरी कालदर्शक इसकी शुरुआत विक्रम संवतसंख्या 57 से हूई। दुनिया में लगभग हर जगह उपयोग किया जाने वाला कालदर्शक या तिथिपत्रक है। यह जूलियन कालदर्शक का रूपान्तरण है। इसे पोप ग्रेगोरी XIII ने लागू किया था।
1582 में पोप ग्रेगोरी 13वे ने इस कैलेंडर की शुरुआत की थी। और उनके नाम से ही इस कैलेंडर का नाम ग्रेगोरियन कैलेंडर पड़ा। इस कैलेंडर के मुताबिक 1 जनवरी साल का पहला दिन होता हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से साल के 365 दिन होते हैं, लेकिन हर चौथे साल में 1 दिन बढ़कर साल के 366 दिन हो जाते हैं. और ऐसे साल को लीप वर्ष कहा जाता हैं।
सूर्य पर आधारित ये पंचांग 400 सालों बाद फिर दोहराया जाता हैं। जऔर इन 400 सालों में 303 सामान्य वर्ष होते हैं। और 97 लीप वर्ष होते हैं। 303 सामान्य वर्षों में 365 दिन होते हैं, जबकि 366 दिन वाले वर्ष 97 होते हैं।
अधिवर्ष ऐसा वर्ष होता जिसमे एक दिन या एक माह अधिक होता है। इसका उद्देश्य कलेण्डर या पंचांग के वर्ष को खगोलीय वर्ष के साथ बनाकर रखना है। कलेण्डर या पंचांग वर्ष में पूरे पूरे दिन ही हो सकते है लेकिन खगोलीय घटनाओं को लगने वाला समय पूरे पूरे दिनों में विभाजित नहीं हो पाता है। अगर अधिवर्ष नहीं रखे जाएँ तो वार्षिक प्राकृतिक घटनाएँ। पंचांग या कलेण्डर के सापेक्ष धीरे धीरे अलग समय पर होने लगेंगी । अधिवर्ष में एक दिन या महीन जोड़कर सामाजिक पंचांग और प्राकृतिक घटना के बीच समय का तारतम्य बना रहता है। जो वर्ष अधिवर्ष नहीं होते उनको सामान्य वर्ष कहा जाता है। अधिवर्ष में जो दिन बढ़ाया जाता है उसे अधिदिन कहते हैं। अधिवर्ष में जो माह बढ़ाया जाता है उसे अधिमास कहते हैं।
ग्रेगोरियन कैलेंडर में अधिवर्ष 366 दिन का होता है जबकि सामान्य वर्ष 365 दिन का होता है। हिंदू कैलेंडर में करीब 19 वर्षों में 13 बार एक चान्द्रमास बढ़ाया जाता है । हिन्दू पंचांग में करीब 32 महीनों में एक माह बढ़ा दिया जाता है।
विषुवत अयनांत , मकर संक्रांति इत्यादि की तिथियों पर प्रभाव होता है। हम देख सकते हैं कि कैसे विषुवों , दिसम्बर अयनांत उत्तरायण का आरम्भ , जून अयनांत दक्षिणायन का आरम्भ , और मकर संक्रांति चार वर्षों में एक दिन आगे बढ़ जाते हैं। अधिवर्ष का उद्देश्य है दिसम्बर अयनांत की तिथि को 21 दिसम्बर और जून अयनांत को 21 जून पर उसी समय बनाए रखना। जिससे मौसम और कलेण्डर में सदैव तारतम्य बना रहे। दो जून अयनांत के बीच करीब 365.2422 दिनों का समय होता है , जिसे ग्रेगोरियन कैलेंडर का एक वर्ष का कहा जाता है । वर्ष में केवल 365 दिन होते हैं, 0.2422 दिन की कमी को पूरा करने के लिए चार वर्ष बाद पूरा दिन जोड़ा जाता है। लेकिन 0.2422 दिन को 400 से गुना करें तो लगभग 97 दिन आते हैं अर्थात 400 वर्षों में 100 अधिवर्ष नहीं होने चाहिए केवल 97अधिवर्ष होने चाहिए। इसलिए हर 400 वर्ष में केवल एक शताब्दी वर्ष को अधिवर्ष रखा जाता है और शेष तीन शताब्दी वर्षों को अधिवर्ष नहीं रखा जाता है। इस प्रकार अधिवर्ष की ये प्रणाली कुछ हजार वर्ष तक जून अयनांत और कलेण्डर में तारतम्य बनाकर रख सकती।
दुनिया भर में एकसाथ नहीं अपनाया
आज दुनिया के कोने कोने में स्वीकारा गया ग्रेगोरियन कैलेंडर को पूरी दुनिया ने एकसाथ नहीं अपनाया। बल्कि अलग-अलग देशों ने अलग-अलग समय में इस कैलेंडर को अपनाया। और अपने देश में लागू किया।
ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाने वाले पहले देश हैं इटली, फ्रांस, स्पेन और पोर्तुगाल। इन चारों देशों ने 1582 में ही इस नए कैलेंडर के अनुसार चलना शुरू कर दिया था। बाद में हॉलैंड, स्वीटजरलैंड, प्रशिया और फ्लैंडर्स ने 1583 ई. में, पोलैंड ने 1586 ई. में, हंगरी ने 1587 ई. में और डेनमार्क ने 1700 में इस कैलेंडर को अपनाया।
ब्रिटीश साम्राज्य ने 170 साल बाद यानी 1752 में इस कैलेंडर के हिसाब से चलना शुरू किया। वहीं जापान में 1972 ई. को, चीन में 1912 ई. को, बुल्गारिया में 1915 ई. को, तुर्की ने 1917ई. को और रोमानिया ने 1919 ई को यह कैलेंडर लागू किया गया।
ग्रेगोरियन कैलेंडर बनने के 170 साल बाद यानी 1752 ई. में अंग्रेजों ने भारत में इस कैलेंडर को लागू किया गया। उस साल 11 कम कर दिए गए थे। यानी 2 सितंबर से सीधे 14 सितंबर की तारीख दी गई थी।
आपको बता दे कि, भारत में शक सवंत पर आधारित एक कैलेंडर हैं, जिसे भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या 'भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर' के तौर पर जाना जाता हैं। और इसे ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ-साथ 22 मार्च 1957 को अपनाया गया। और चैत्र भारतीय पंचांग का पहला माह हैं।

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