भारत के गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी का निधन 19 दिसंबर 1860 में हुआ।

 

लार्ड हार्डिंग के स्थान पर 1848 में अर्ल ऑफ़ डलहौजी गवर्नर-जनरल नियुक्त किया गया , जिसे भारत में उसके सुधारों के लिए जाना जाता है जिसने भारत में प्रथम रेलगाड़ी, डाक व्यवस्था, तार व्यवस्था जैसी आधुनिक सुविधाएं भारत को प्रदान किन। लेकिन इसके  विपरीत वह एक घोर साम्राज्यवादी था जिसने भारतीय राज्यों को अंग्रेजी राज्य में मिलाने के लिए हड़प नीति, कुशासन का आरोप लगाकर भारतीय राज्यों को अंग्रेजी राज्य में मिलाया। इस ब्लॉग में हम लार्ड डलहौजी के सुधार और उसकी नीतियों की समीक्षा करेंगें। 

  डलहौजी डलहौजी के नौवें अर्ल जॉर्ज रामसे के तीसरे पुत्र थे। उनके परिवार में सैन्य और सार्वजनिक सेवा की परंपरा थी, लेकिन दिन के मानकों के अनुसार, उन्होंने बहुत अधिक धन जमा नहीं किया था, और इसके परिणामस्वरूप, डलहौजी अक्सर वित्तीय चिंताओं से परेशान रहते थे। कद में छोटा, वह कई शारीरिक दुर्बलताओं से भी पीड़ित था। अपने पूरे जीवन में उन्होंने इस विचार से ऊर्जा और संतुष्टि प्राप्त की कि वे निजी बाधाओं के बावजूद सार्वजनिक सफलता प्राप्त कर रहे हैं।

         ऑक्सफोर्ड के क्राइस्ट चर्च में एक स्नातक के रूप में एक विशिष्ट कैरियर के बाद, उन्होंने 1836 में लेडी सुसान हे से शादी की और अगले वर्ष संसद में प्रवेश किया। 1843 से उन्होंने सर रॉबर्ट पील के टोरी (रूढ़िवादी) मंत्रालय में व्यापार बोर्ड के उपाध्यक्ष के रूप में और 1845 से अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उस कार्यालय में उन्होंने कई रेल समस्याओं को संभाला और प्रशासनिक दक्षता के लिए प्रतिष्ठा प्राप्त की। 1846 में जब पील ने इस्तीफा दे दिया तो उन्होंने अपना पद खो दिया। अगले वर्ष उन्होंने भारत के गवर्नर-जनरलशिप के नए व्हिग मंत्रालय के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, जो उस पद पर नियुक्त होने वाले सबसे कम उम्र ( 36 वर्ष ) के व्यक्ति बन गए।

लार्ड डलहौजी भारते गवर्नर जनरल

लार्ड डलहौजी का भारते गवर्नर जनरल के रूपे आगमन 1848 मे हुआ। लार्ड विलियम बैंटिक की भांति ही लार्ड डलहौजी भी एक सुधारवादी गवर्नर जनरल था। यह सही है कि उसके अधिकांश सुधार ब्रिटिश साम्राज्य के संवर्धन एवं उसकी सुरक्षा के स्वार्थी प्रयासों से प्रेरित थे। फिर भी उनका स्थायी लाभ भारतीयों को प्राप्त हुआ। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि हलहौजी के सुधार कार्यों ने आधुनिक भारत की नींव रखी और इसलिए हलहौजी को आधुनिक भारत का जनक माना जाता है। 

 प्रशासनिक सुधार- डलहौजी ने आठ वर्ष के अपने कार्यकाल में बहुत तेजी के साथ शासन सुधार के कार्य किए। 1854 ई० में बंगाल प्रान्त के शासन का भार लेफ्टिनेण्ट गवर्नर को सौंप दिया गया। अत: डलहौजी के केन्द्रीय शासन को अलगअलग विभागों के आधार पर सुसंगठित किया तथा वह प्रत्येक विभाग का स्वयं निरीक्षण किया करता था। उसने अपनी अद्भुत कार्यक्षमता द्वारा कम्पनी के प्रशासन को स्फूर्ति प्रदान की और इसे पहले की अपेक्षा अधिक कुशल बनाया। प्रत्येक प्रान्त में कमिश्नरी तथा चीफ कमिश्नरों की नियुक्ति की गई और इन्हें गवर्नर-जनरल तथा उसकी कौंसिल के प्रति उत्तरदायी बनाया गया। प्रान्तीय सरकारों का काम मुख्यतः शान्ति एवं सुव्यवस्था स्थापित करना, कर वसूलना तथा फौजदारी के मकदमों का निर्णय करना था। इस शासन पद

डलहौजी भारतीय रेल, तार एवं डाक व्यवस्था:

डलहौजी भारतीय रेल, तार एवं डाक व्यवस्था का जन्मदाता था। भारत ब्रिटिश साम्राज्य की रक्षा करने तथा ब्रिटिश व्यापार को बढ़ाने के लिए इन्हें मूलरूप से बढ़ाया गया किन्तु इन सेवाओं ने भारत को अधिक आधुनिक बनाने तथा एकता उत्पन्न करने मे उतना ही योग दिया जितना एक कल्याणकारी प्रशासन व्यवस्था तथा शिक्षा के प्रसार ने। इन देशव्यापी सेवाओं ने शीघ्र ही राष्ट्रीय-सामाजिक तथा भौतिक महत्व प्राप्त कर लिया। प्रथम रेलवे लाइन थाना तथा बम्बई के बीच सन् 1853 मे डाली गयी और 1856 तक पूरे देश मे हजारों मील लम्बी रेलवे लाइनें या तो डाली जा चुकी थी या उनकी नाप-जोख हो रही थी। सन् 1892 तक देश मे 17,768 मील लम्बी रेल लाइनें डल चुकी थी, परन्तु इसके लिए डलहौजी ने ब्रिटिश व्यक्तिगत कम्पनियों को राज्य की रक्षा गारण्टी के साथ अनुबन्धित किया। सन् 1879 तक इन्होंने भारत के लिए 9,80,00,000 पौंड की अंग्रेजी पूंजी का निवेश कर लिया। रेलों के विकास से भारत के व्यापार के साथ साथ सामाजिक व्यवस्था व राष्ट्रीय चेतता भी प्रभावित हुई।


सामाजिक सुधार :- डलहौजी के समय सामाजिक क्षेत्र मे दो प्रमुख कार्य किए गए। ईश्वरचंद विद्यासागर नामक महान भारतीय समाज सुधारक के प्रयासों से भारत मे विधवाओं के प्रति सहानुभूति का माहौल बनने लगा था। विद्यासागर ने विधवाओं के पुनर्विवाह की पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी। लार्ड डलहौजी ने इसे कानूनी रूप देते हुए विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित करवाया। उल्लेखनीय है कि इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप भारत मे पहला कानूनी विधवा पुनर्विवाह दिसंबर 1856 मे सम्पन्न हुआ। डलहौजी का दूसरा सामाजिक कार्य ईसाई धर्म को प्रसारित करने की भावना से प्रेरित था। इसके तहत उसने इसाई धर्म स्वीकार कर लेने वाले हिन्दुओं को उनकी पैतृक संपत्ति से वंचित नहीं किए जाने का पूरजोर समर्थन किया।



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