राजस्थान की प्रमुख सिंचाई परियोजनाएं एवं उनके लाभ।

 

शिक्षा डेस्क :- नहरें, तालाब, कुएं और नलकूप है।

सबसे अधिक सिंचाई नहरें और कुंओ से होती है। कुएं और नलकूप सिंचाई के सर्वोत्तम साधन है। कुल सिंचित प्रदेश का लगभग 60 प्रतिशत भाग पर सिंचाई कुओं व नलकूपों से होता है। कुएं और नलकूप द्वारा सिंचाई के लिए पानी का मीठा होना, जल स्तर का गहरा नहीं होना तथा उपजाऊ भूमि का होना आवश्यक है। नहरों द्वारा सतही जल का सबसे अधिक उपयोग होता हैं।

राज्य में सतत् प्रवाही नदियों के अभाव में नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र कम है। राज्य के दक्षिण-पूर्वी, पठारी एवं पथरीले भागों में तालाबों द्वारा सिंचाई की जाती है। राजस्थान की बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं और सिंचाई की वृहद एवं मध्यम  परियोजनाओं को आधुनिक भारत के मंदिर की संज्ञा दी गई है। बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के उद्देश्य विद्युत उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, पेयजल, मछली पालन, वृक्षारोपण, अकाल और सूखे के समय जल की सुविधा, क्षेत्रीय आर्थिक विकास आदि निर्धारित किये गये हैं।

भाखड़ा नांगल परियोजना :-भारत की सबसे बड़ी नदी घाटी परियोजनाओं में से एक है यह हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में शिवालिक पहाड़ियों के नीचे सतलज नदी पर स्थित है। साल 1909 में पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सर लुइ डेन भाखड़ा स्थान को देख कर कहा था कि यहां एक विशाल बांध बनाया जा सकता है। उसके बाद साल 1944 में तत्कालीन भारतीय सरकार ने इस योजना को स्वीकार किया और 1946 में बांध का निर्माण कार्य शुरू किया गया। लेकिन भारत की आजादी और विभाजन के कारण काम को रोक दिया गया और बाद में 1948 में इसका निर्माण कार्य पुन: आरंभ किया गया। और साल 1963 में अमेरिकी इंजीनियर हार्वे स्लोकेम ने बांध के निर्माण कार्य को पूर्ण किया।

यह भारत की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना है। यह बांध सतलज नदी पर पंजाब के होशियारपुर ज़िले में बनाया गया है। यह परियोजना पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की संयुक्त परियोजना है। भांखड़ा-नांगल में राजस्थान का हिस्सा 15.2 प्रतिशत है। भांखड़ा मुख्य नहर की सिंचाई क्षमता 14.6 लाख हैक्टेयर है जिसमें राजस्थान का हिस्सा 2.3 लाख हैक्टेयर है। भांखड़ा-नागल से राजस्थान के गंगानगर जिले में सिंचाई सुविधा और बीकानेर और रतनगढ़ में बिजली की आपूर्ति है।

चम्बल परियोजना :– चम्बल मध्यप्रदेश में इंदौर जिले के जानापाव (महु) (विंध्यान क्षेत्र) नामक स्थान से निकलती है यह उत्तर दिशा की और बहती है मध्यप्रदेश से बहते हुये राजस्थान में दक्षिण से पूर्वी दिशा में उत्तरप्रदेश में प्रवेश करती है जो बाद में यमुना नदी में मिल जाती है। चंबल घाटी परियोजना राजस्थान और मध्य प्रदेश का संयुक्त उपक्रम है। इसकी शुरुआत 1954 में चंबल नदी (यमुना की मुख्य सहायक नदी) पर हुई थी। परियोजना का उद्देश्य सिंचाई, बिजली उत्पादन और घाटी में मिट्टी के कटाव की रोकथाम और नियंत्रण के लिए चंबल नदी का उपयोग करना है। गांधी सागर है। यह राजस्थान-मध्य प्रदेश सीमा पर स्थित चंबल नदी पर बने चार बांधों में से पहला है। मुख्य रूप से मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। चम्बल परियोजना में राजस्थान का हिस्सा 50 प्रतिशत है। चम्बल परियोजना के पहले चरण में चौरासीगढ़ और मानपुरी (मध्यप्रदेश) के पास गांधी सागर बांध तथा कोटा में दुर्ग के पास कोटा सिंचाई बाँध बनाया गया। दूसरे चरण में चूलिया झरने के पास राणा प्रताप सागर बांध तथा तीसरे चरण में जवाहर सागर बांध का निर्माण किया गया। चम्बल परियोजना से राजस्थान के कोटा और बून्दी जिलों में सिंचाई होती है।

माही बजाज सागर परियोजना :–माही नदी पर बनी माही बजाज सागर परियोजना राजस्थान और गुजरात राज्यों की संयुक्त परियोजना है। माही नदी पर बोरखेड़ा गाँव के समीप माही बजाज सागर बाँध का निर्माण किया गया। इस परियोजना के अन्तर्गत बांध, विद्युत गृह और नहरों के निर्माण से बांसवाड़ा और डूंगरपुर के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आर्थिक और सामाजिक विकास में गुणात्मक परिवर्तन आया है। माही नदी मध्यप्रदेश के धार जिले में सरदारपुरा गाँव से निकलती है। माही नदी मध्य प्रदेश, राजस्थान व गुजरात से होकर बहती है। इस परियोजना का निर्माण सन 1972 में हुआ था।

यह बांसवाड़ा जिले में स्थित है। बांध का निर्माण 1972 और 1983 के बीच पनबिजली उत्पादन और जल आपूर्ति के प्रयोजनों के लिए किया गया था। यह राजस्थान का सबसे लंबा और दूसरा सबसे बड़ा बांध है। यह राजस्थान एवं गुजरात की संयुक्त परियोजना है। इसका नाम प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल बजाज के नाम पर रखा गया था। मध्यप्रदेश के धार जिले में विंध्यांचल श्रेणी के उत्तरी ढाल से निकल कर माही नदी लगभग 169 किलोमीटर मध्यप्रदेश बहने के पश्चात बांसवाड़ा के निकट राजस्थान में प्रवेश करती है।

जाखम सिंचाई परियोजना :–जाखम परियोजना राजस्थान राज्य की सिंचाई परियोजना है, जो सन 1962 में प्रारम्भ की गई थी। यह परियोजना चित्तौड़गढ़-प्रतापगढ़ मार्ग पर अनुपपुरा गांव में बनी हुई है। यह राजस्थान का सबसे ऊंचाई पर स्थित बांध है। इस परियोजना से प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा के आदिवासी कृषक लाभान्वित होते हैं। यह प्रतापगढ़ तहसील के अनूपपुरा गाँव में स्थित है, जो धरियावाद से 32 किमी और प्रतापगढ़ शहर से 35 किमी दूर है। बांध क्षेत्र की एक मुख्य सिंचाई परियोजना है। जाखम नदी राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के छोटी सादड़ी की पहाड़ियों के दक्षिण-पश्चिम में निकलती है और उदयपुर जिले के पहाड़ी क्षेत्रों से होते हुए दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती है। बिलारा गाँव के पास ये सोम नदी में मिल जाती है। इस नदी पर जाखम परियोजना के अंतर्गत बांध निर्माण किया गया है।

बीसलपुर परियोजना:- राजस्थान राज्य की पेयजल परियोजना है। यह परियोजना बनास नदी पर टोंक ज़िले के टोडारायसिंह कस्बे में है। इसका प्रारम्भ सन 1988-1989 में हुआ। यह राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है, जिससे दो नहरें निकाली गयी हैं। टोंक जिले के बीसलपुर गाँव में बनास नदी पर बाँध का निर्माण किया गया है। राजस्थान के जयपुर, अजमेर, ब्यावर, किशनगढ़, टोंक आदि की पेयजल और सिंचाई की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बीसलपुर परियोजना महत्वपूर्ण है।

पांचना परियोजना:–इस बांध का निर्माण करौली जिले की गुडला गांव के पास पांच नदियों (भद्रावती, अटा, माची, बरखेड़ा तथा भैंसावर) के संगम पर मिट्टी से किया गया है। राजस्थान में यह मिट्टी का बना सबसे बड़ा बांध है। बांध का निर्माण 2004 में हुआ पूरा पांचना बांध करौली जिले की मध्यम सिंचाई परियोजना है, जिसका निर्माण 2004 में पूर्ण किया गया था।  बांध करौली जिले की तहसील करौली के ग्राम गुडला के पास पांचना नदी पर स्थित है। पांचना बांध के 6 गेट खोले जिले का सबसे बड़ा पांचना बांध अभी खाली है। पांचना बांध का जलस्तर 256.30 मीटर पहुंच गया, जबकि अधिकतम जल सूचकांक 258.62 मीटर है। जिले में एकमात्र कालीसिल बांध ओवरफ्लो हुआ है।

इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना :– इसकी मेनफीडर 204 किलोमीटर लंबी है जिसका 35 किलोमीटर हिस्‍सा राजस्‍थान व 170 किलोमीटर हिस्‍सा पंजाब व हरियाणा में है। यह नहर राजस्थान की एक प्रमुख नहर है। इस नहर का पुन: उद्घाटन 31 मार्च 1958 को हुआ जबकि दो नवंबर 1984 को इसका नाम इंदिरा गांधी नहर परियोजना कर दिया गया। राजस्थान के लिए जीवन रेखा बन चुकी इंदिरा गांधी नहर पंजाब के फिरोजपुर के निकट सतलज व ब्यास नदी के संगम पर बने हरिके बैराज से शुरू होती है। देश की सबसे लम्बी यह नहर 649 किलोमीटर लम्बी है। इसमें से पंजाब से राजस्थान तक 204 किलोमीटर फीडर नहर है। इन्दिरा गांधी फीडर नहर के अंतिम छोर से 445 कि. मी. लम्बी इन्दिरा गांधी मुख्य नहर आरम्भ होती है, जो गंगानगर व बीकानेर जिलों से निकलती हुई जैसलमेर जिले में मोहनगढ़ के पास समाप्त होती है।  गांधी नहर (जिसे पहले राजस्थान नहर कहा जाता था), जो पंजाब में ब्यास और सतलज नदियों से लगभग 400 मील (640 किमी) पानी लाती है।  योजना को दो चरणों में बांटा गया है। प्रथम चरण में 204 किलोमीटर लम्बी इन्दिरा गांधी फीड़र व मसीतावाली हैड से पूगल हैड तक 189 किलोमीटर लम्बी मुख्य नहर तथा उससे सम्बन्धित वितरण प्रणाली (साहबा लिफ्ट नहर प्रणाली के अतिरिक्त) सम्मिलित है।

राजस्थान अभिलेखागार में रखी श्यामसिंह राजवी की किताब के आधार पर आजादी के बाद परियोजना का नाम राजस्थान कैनाल रखा गया। 1963 के आस-पास इस परियोजना की नहरों ने काम भी शुरू कर दिया था। 1983 में नहर दाैरे पर आई पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम पर दाे नवंबर 1984 काे नहर का नाम इंदिरा गांधी नहर परियाेजना रख दिया। हिमालय का पानी 649 लम्बी इंदिरा गांधी नहर के जरिये रेगिस्तान में पहुंचता है। जोधपुर थार के रेगिस्तान का सीना चीर कर निकाली गई 649 किलोमीटर लम्बी इंदिरा गांधी नहर अपने आप में किसी आश्चर्य से कम नहीं है।

सोम, कमला-अम्बा सिंचाई परियोजना :– दक्षिणी राजस्थान के जनजाति बहुल  बाँगड क्षेत्र की समृद्धि के लिए सोम कमला अम्बा सिंचाई परियोजना भाग्य रेखा है। सोम नदी पर कमला अम्बा गाँव के समीप बांध का निर्माण किया गया है। इससे डूंगरपुर और उदयपुर के अनेक गाँवों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध है। यह परियोजना 1995 में शुरू की गई थी और इसकी जल क्षमता 106.1 मिलियन है। संभाग का तीसरे बड़े बांध सोम कमला आम्बा के 2006 में खोल दिए थे सभी गेट। सोम कमला अंबा बांध के 7 गेट है । 

मेजा बाँध परियोजना : – मेजा बांध  राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में कोठारी नदी पर निर्मित है। इस नदी का उद्गम भीलवाड़ा जिले में होरेरा गांव के पास से अरावली पहाड़ियों की पूर्वी ढाल से होता है। कोठारी, बनास नदी की सहायक नदी है। इस परियोजना की स्थापना मुख्यतः सिंचाई हेतु की गई है। भीलवाड़ा में माण्डलगढ़ तहसील के मेजा के निकट कोठारी नदी पर मेजा बांध का निर्माण किया। मेजा बांध भीलवाड़ा का प्रमुख पेयजल स्रोत है। इससे भीलवाड़ा के आसपास के गाँवों में सिंचाई सुविधा भी मुहैया होती है। मेजा बाँध क्षेत्र में गर्मियों में जल सूख जाने के कारण खीरा, कंकड़ी, तरबूज, खरबूज की खेती होती है।

नर्मदा परियोजना :– सरदार सरोवर नर्मदा परियोजना गुजरात राज्य की वृहद परियोजना है। नर्मदा जल में राजस्थान का हिस्सा भी है। इस परियोजना से राजस्थान के जालौर और बाड़मेर जिलों  में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी। गुजरात और मध्य प्रदेश की राज्य सरकारों ने सरदार सरोवर परियोजना (SSP) और नर्मदा सागर परियोजना की 1979 नींव रखी। इन राज्यो के अनुसार इस परियोजना से 1.9 करोड़ हेक्टेयर में सिंचाई, 1,450 मेगावाट बिजली (गुजरात) और 0.14 लाख हेक्टेयर में सिंचाई, 1,000 मेगावाट बिजली (म. प.)

 व्यास परियोजना – व्यास परियोजना राजस्थान, हरियाणा और पंजाब राज्यों की सम्मिलित परियोजना है। यह दो प्रमुख इकाइयों 'व्यास-सतलुज लिंक-1' तथा 'व्यास-सतलुज लिंक-2' से मिलकर बनी है। यह परियोजना रावी, सतलुज और व्यास नदी के जल का उपयोग करने के लिए बनाई गयी है। इसमें भाखड़ा बाँध के ऊपर पनडोह के पास एक बाँध बनाया गया है।
जवाई बांध – पश्चिमी राजस्थान में लूनी की सहायक जवाई नदी पर एरिनपुरा के निकट जवाई बाँध बनाया गया है। इस बांध से जोधपुर, सुमेरपुर और पाली शहर को पेयजल आपूर्ति तथा पाली, जालौर जिलों में सिंचाई होती है।
मोरेल बांध –मोरेल बांध सवाई माधोपुर व दौसा जिले की जीवनरेखा के रूप में माना जाता है। मोरेल बांध में पानी की आवक ढूंढ नदी व मोरेल नदी से होती है यह जयपुर के चैनपुरा (बस्सी) गांव की पहाड़ियों से निकलकर जयपुर, दौसा, सवाईमाधोपुर में बहती हुई करौली के हाड़ौती गांव में बनास में मिल जाती है। ढूंढ इसकी मुख्य नदी है जो जयपुर से निकलती है।  यह बांध दौसा जिले के लालसोट कस्बे से 16 किलोमीटर दूर मोरेल नदी पर मिट्टी से बनाया गया है।




 


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