मुस्लिम लिंग स्थापना कब हुईं

मुस्लिम लिंग स्थापना
बंगाल के विभाजन ने सांप्रदायिक फुट को जन्म दिया था भारतीय राष्ट्रवाद पर लार्ड कर्जन का सबसे बड़ा हमला था बंगाल का विभाजन करना बंग-भंग राष्ट्रवाद पर हमला होने के साथ ही हिंदू मुस्लिम एकता को तोड़ने और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने की कुटिल नीति का हिस्सा था इस कारण 1904 में बंग भंग की योजना का औचित्य मुस्लिम जनता को समझाते हुए कर्जन ने दावा किया था बंगाली मुसलमानों को एकता का ऐसा अवसर प्रदान किया जा रहा है जो मुसलमान सूबेदारों और बादशाहों के समय से उन्हे नसीब नहीं हुआ था ब्रिटीश सरकार द्वारा मुसलमानों को यह अवसर क्यों प्रदान किया गया इसे पूर्वी बंगाल के नए प्रांत के प्रथम लेफ्टिनेंट गवर्नर ब्लामफील्ड फूलर ने अपने भाषणों मे स्पष्ट किया कि अंग्रेज सरकार की दो पत्नियां हैं हिंदू और मुसलमान इनमें वह मुसलमान को अधिक चाहती है सरकार की यह विभाजनकारी नीति एक बड़ी सीमा तक सफल रही 1906मे पूर्वी बंगाल में हुए दंगे इस नीति का ही नतीजा थे बंगाल विभाजन के विरोध में जो स्वदेशी आंदोलन चलाया उस में मुसलमान बड़ी संख्या में अलग रहे इसका प्रमुख कारण था कि अंग्रेज द्वारा मुसलमानों को समुचित सुविधाएं देकर राष्ट्रीय आंदोलन से अलग हो सरकार के पक्ष में रखा जा सकता है इस प्रकार बंगाल विभाजन में से सांप्रदायिकता का उदय हुआ
30 दिसंबर, 1906 में ब्रिटिश भारत के दौरान ढाका वर्तमान में बांग्लादेश में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना हुई थी। लीग में आगा खां, ख्वाज़ा सलीमुल्लाह और मोहम्मद अली जिन्ना समेत कई नेता शामिल थे। वर्ष 1947 में पाकिस्तान के गठन के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम लीग 'मुस्लिम लीग' बन गई थी।
1 अक्टूबर, 1906 ई. को एच.एच. आगा ख़ाँ के नेतृत्व में मुस्लिमों का एक दल वायसराय लॉर्ड मिण्टो से शिमला में मिला। अलीगढ़ कॉलेज के प्रिंसपल आर्चबोल्ड इस प्रतिनिधिमण्डल के जनक थे। इस प्रतिनिधिमण्डल ने वायसराय से अनुरोध किया कि प्रान्तीय, केन्द्रीय व स्थानीय निर्वाचन हेतु मुस्लिमों के लिए पृथक साम्प्रादायिक निर्वाचन की व्यवस्था की जाय। इस शिष्टमण्डल को भेजने के पीछे अंग्रेज़ उच्च अधिकारियों का हाथ था। मिण्टो ने इनकी मांगो का पूर्ण समर्थन किया। जिसके फलस्वरूप मुस्लिम नेताओं ने ढाका के नवाब सलीमुल्ला के नेतृत्व में 30 दिसम्बर, 1906 ई. को ढाका में ‘मुस्लिम लीग’ की स्थापना की।
सलीमुल्ला ख़ाँ ‘मुस्लिम लीग’ के संस्थापक व अध्यक्ष थे, जबकि प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता मुश्ताक हुसैन ने की। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य था- ‘भारतीय मुस्लिमों में ब्रिटिश सरकार के प्रति भक्ति उत्पत्र करना व भारतीय मुस्लिमों के राजनीतिक व अन्य अधिकारो की रक्षा करना।’ ‘मुस्लिम लीग’ ने अपने अमृतसर के अधिवेशन में मुस्लिमों के पृथक निर्वाचक मण्डल की मांग की, जो 1909 ई. में मार्ले-मिण्टो सुधारों के द्वारा प्रदान कर दिया गया। लीग ने 1916 ई. के ‘लखनऊ समझौते’ के आधार पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन करने के अतिरिक्त कभी भी भारतीयों के राजनीतिक अधिकारों की मांग नहीं की।
मुस्लिम लीग के संस्थापक सदस्य कौन थे ?
संगठन की अक्षमता
मुहम्मद अली जिन्ना तथा ‘मुस्लिम लीग’ ने ब्रिटिश भारत को हिन्दू व मुस्लिम राष्ट्रों में विभाजित करने की माँग वाले आन्दोलन का नेतृत्व किया और 1947 ई. में पाकिस्तान के गठन के बाद लीग पाकिस्तान का प्रमुख राजनीतिक दल बन गई। इसी साल इसका नाम बदलकर ‘ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग’ कर दिया गया, लेकिन पाकिस्तान में आधुनिक राजनीतिक दल के रूप में लीग उतने कारगर ढंग से काम नहीं कर सकी, जैसा यह ब्रिटिश भारत में जनआधारित दबाव गुट के रूप में काम करती थी और इस तरह से धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता व संगठन की क्षमता घटती चली गई। 1954 ई. के चुनावों में ‘मुस्लिम लीग’ ने पूर्वी पाकिस्तान वर्तमान बांग्लादेश में सत्ता खो दी और इसके तुरन्त बाद ही पार्टी ने ‘पश्चिमी पाकिस्तान वर्तमान पाकिस्तान’ में भी सत्ता खो दी। 1960 के दशक के अन्त में पार्टी विभिन्न गुटों में बँट गई और 1970 ई. के दशक तक यह पूरी तरह से ग़ायब हो चुकी थी।
1909 के मार्ले मिंटो सुधारों में साम्राज्यवाद को एक और अवसर प्राप्त हुआ और इस सुधार के द्वारा सांप्रदायिकता में और बढ़ावा हुआ लेकिन मुस्लिम समुदाय में एक ऐसा वर्ग भी मौजूद था जो अलगाववाद के रास्ते को अस्वीकार करता था इस वर्ग में मुस्लिम संगठन के गठन का स्वागत नहीं किया था दिसंबर 1911 में दिल्ली दरबार में घोषणा करके बंगाल विभाजन रद्द कर दिया गया ब्रिटिश शासन द्वारा बंगाल में अभूतपूर्व एकता स्थापित करने वाले तोहफे वापस ले लिए गए ब्रिटिश शासन के इस कार्य से मुस्लिम अभिजन को बहुत बड़ा धक्का लगा और उन्हें एहसास हुआ की सरकार के लिए मुस्लिम नहीं साम्राज्यवादी हित सर्वोपरि है
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